Tuesday 31 January 2017

छत्तीसगढ़ शासन विरूद्ध गणेशलाल मेश्राम (भ्रष्‍ट्राचार निवारण अधिनियम)

 

उभय-पक्ष के निवेदन पर विचार करते हुये धारा-7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अपराध में अभियुक्त का एक वर्ष के कठोर कारावास और 1,000/-(एक हजार) रुपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया जाता है। अर्थदण्ड नहीं पटाने की दशा में एक माह का कठोर कारावास की सजा पृथक् से भुगताया जावे। अभियुक्त को धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत् दो वर्ष के कठोर कारावास और 2,000/-(दो हजार) रुपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया जाता है एवं अर्थदण्ड नहीं पटाने की दशा में दो माह का कठोर कारावास की सजा पृथक् से भुगतायी जावे। अभियुक्त को दी गई दोनां सश्रम कारावास की सजाएं साथ-साथ भुगतायी जावे।

न्यायालय : विशेष न्यायाधीश (भ्रष्‍ट्राचार निवारण अधिनियम), दुर्ग 
(पीठासीन अधिकारी : सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू)  
विशेष प्रकरण क्रमांक-04/2006
संस्थित दिनांक : 08-05-2006 
छत्तीसगढ़ शासन, 
द्वारा : पुलिस अधीक्षक, एन्टी करप्शन व्‍यूरो, रायपुर (छ0ग0)           ..... अभियोजन 
।। विरूद्ध।। 
गणेशलाल मेश्राम पिता स्‍व.मोहनलाल मेश्राम उम्र 35 साल, 
निवासी : गजानन नगर, दुर्ग थाना मोहन नगर, दुर्ग, 
तहसील व जिला दुर्ग 
हाल- सहायक ग्रेड-2, खण्ड शिक्षा अधिकारी कार्यालय, 
दुर्ग, जिला दुर्ग (छ0ग0)                                                                   ..... अभियुक्त 
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एन्टी करप्शन ब्यूरो, रायपुर द्वारा पंजीबद्ध अपराध क्रमांक-22/2005 से उद्भुत विशेष प्रकरण। 
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राज्य की ओर से सुश्री फरिहा अमीन, विशेष लाक अभियोजक। अभियुक्त की ओर से श्री एस.के.फरहान, अधिवक्ता। 
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।। निणर्य।। 
(आज दिनांक 28-01-2017 का घोषित किया गया) 
1- अभियुक्त के विरूद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा-7, 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के अंतर्गत यह आरोप है कि उसने दिनांक 25-05-2005 के पूर्व छत्तीसगढ़ शासन के अंतर्गत कार्यालय विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग, जिला दुर्ग में सहायक ग्रेड-3 के पद पर, जो कि लोक-सेवक का पद है, पदस्थ रहते हुए प्रार्थी राजू राजपूत, जो कि जवाहर नगर, दुर्ग में ब्राईट 2  मंदबुद्धि विद्यालय का संचालन करता है और जहां के अनुसूचित जाति-जनजाति के छात्रा को विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग द्वारा प्रदान की जाने वाली छात्रवृत्ति के लिये 6,750/-रुपये का चेक जारी किया गया था, जिसे प्रार्थी को देने में लाक-सेवक की पदीय हैसियत में शासकीय कार्य के सम्पादन हेतु वैध पारिश्रमिक से भिन्न 2,000/-रुपये रिश्वत की मांग किया तथा दिनांक 25-05-2005 का प्रातः 8. 00 बजे 2,000/-रुपये रिश्वत के रूप में प्राप्त किया। 


2- अभियोजन कहानी संक्षेप में इस प्रकार है कि प्रार्थी राजू राजपूत द्वारा एन्टी करप्शन व्‍यूरो कार्यालय, रायपुर में दिनांक 20-05-2005 को लिखित में आवेदन प्रस्तुत किया गया कि वह विगत 06 वर्षों से जवाहर नगर, दुर्ग में ब्राईट मंदबुद्धि निःशुल्क विद्यालय एवं पुनर्वास केन्द्र का संचालन कर रहा है। उक्त संस्था समाज कल्याण विभाग से मान्यता प्राप्त हाकर उसका पंजीयन क्रमांक 5275 है, जहां तत्समय में 54 छात्र- छात्राएं अध्ययनरत थे। उक्त संस्था में अध्ययनरत् अनुसूचित जाति-जनजाति के छात्राओ को विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग द्वारा प्रदान की जाने वाली छात्रवृत्ति के लिये 6,750/-रुपये का चेक जारी किया गया था, जिसे प्रार्थी का देने देने के लिये विकासखण्ड शिक्षा कार्यालय लिपिक द्वारा 1,500/-रुपये रिश्वत की मांग की जा रही है, जिसे लेने हेतु उसने उसे कार्यालय में बुलाया है। वह रिश्वत नहीं देना चाहता और रंगे हाथों पकड़वाना चाहता है। उक्त आवेदन के आधार पर शिकायत की सत्यता की जांच हेतु प्रार्थी को माइक्रो कैसेट दिया गया, जिस पर दिनांक 24-05-2005 का प्रार्थी ने रायपुर कार्यालय में आकर बताया कि मेश्राम ने अब उसे 2,000/-रुपये लेकर दिनांक 25-05-2005 का प्रातः 8.00 बजे अपने घर बुलाया है। उसके बाद ट्रेप दल का गठन किया गया और प्रार्थी सहित ट्रेप दल के सभी सदस्य दिनांक 25-05-2005 को प्रातः 6.30 बजे जिला चिकित्सालय, दुर्ग के सामने स्थित पी.डब्ल्यू.डी. रेस्टहाऊस में एकत्रित हुये तथा प्रार्थी एवं ट्रेप दल के सदस्यो का एक-दूसरे से परिचय कराया गया। प्रार्थी द्वारा रिश्वती रकम दिये जाने पर प्रारम्भिक घोल कार्यवाही का पंचनामा तैयार किया गया, रिश्वती रकम पर आरक्षक द्वारा फिनाफ्थलीन पाउडर लगाया गया, आरक्षक का हाथ सोडियम कार्बोनेट के घोल में डुबोकर धुलवाया गया। प्रार्थी द्वारा पहने कपड़ो के सभी जेब की तलाशी ली गई तथा जेब खाली करवाकर फिनाफ्थलीन पाउडर लगे रिश्वती रकम को प्रार्थी की जेब में रखा गया और उसे हिदायत दी गई कि वह आरोपी को रिश्वत देने के पूर्व नोटों को हाथ नहीं लगायेगा और आरोपी द्वारा मांगने पर ही उक्त नोटों को वह आरोपी का देगा तथा रकम देने के पश्चात् वह पूर्व नियोजित इशारा करेगा। 
3- उपरान्त ट्रेप दल के अधिकारियो द्वारा आरोपी का रिश्वती रकम के साथ पकड़ने की रूपरेखा तैयार की जाकर ट्रेप दल के सभी सदस्य आरोपी के घर की ओर रवाना हुये। प्रार्थी, आरोपी के मकान के अन्दर गया और थोड़ी ही देर बाद बाहर निकलकर पूर्व योजनानुसार इशारा किया, तो ट्रेप दल के सदस्य आरोपी के मकान के अन्दर जाकर आरोपी को पकड़ लिये। आरोपी की जेब से रिश्वती रकम निकालकर नोटों के नम्बर पूर्व में लिखाये नोटों के नम्बरो से मिलान करने पर वही नोट पाये गये, जिसके नम्बर पूर्व में लिखाये गये थे। ट्रेप दल में शामिल आरक्षक द्वारा घोल तैयार किया जाकर जप्तशुदा नोटों का डुबाया गया, तो घाल का रंग गुलाबी हो गया, जिससे इस बात की पूर्ण रूप से पुष्टि हो गई कि ये वही रिश्वती रकम हैं, जिसे आरोपी की मांग पर उसे दिये जाने के लिये प्रार्थी द्वारा दी गई थी। ट्रेप दल के अधिकारियां एवं कर्मचारियों द्वारा प्रदर्शन घोल एवं अन्य सम्बंधित सभी कार्यवाहियो के उपरान्त आरोपी के विरूद्ध अपराध दर्ज किया जाकर उसे गिरफ्तार किया गया तथा अपराध सबूत पाये जाने पर अन्य आवश्यक विवेचना उपरान्त अभियुक्त के विरुद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा-7, 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के अंतर्गत अभियोग-पत्र प्रस्तुत किया गया, जो विशेष प्रकरण क्रमांक 04/2006 के रूप में पंजीबद्ध हुआ।
4- तत्कालीन पीठासीन अधिकारी द्वारा अभियुक्त के विरूद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा-7, 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) का आराप विरचित किया जाकर, पढ कर सुनाये व समझाये जाने पर अभियुक्त ने आरोप अस्वीकार करते हुये विचारण किये जाने का निवेदन किया। 5- अभियोजन की ओर से अपने पक्ष-समर्थन में साक्षी त्रिभुवन सिंह वर्मा (अ.सा-1), वासुदेव चौधरी (अ.सा-2), पवन कुमार पाठक (अ.सा-3), हेमन्त अरोरा (अ.सा-4), राजू राजपूत (अ.सा-5), अनुज शर्मा (अ.सा-6), जागेन्द्र सिंह गम्भीर (असा-7), अगमराम वर्मा (अ.सा-8), एस.के.सेन (अ.सा-9) एवं माधव प्रसाद शर्मा (असा-10) का कथन कराया गया है।  
6- अभियोजन की ओर से नजरी नक्शा प्रदर्श पी-1, विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग द्वारा एन्टी करप्शन व्‍यूरो को अभियुक्त की सेवा पुस्तिका के सम्बंध में जारी पत्र प्रदर्श पी-2, सेवा पुस्तिका प्रदर्श पी-3, जिला शिक्षा अधिकारी, दुर्ग द्वारा जारी आरोपी की पदस्थापना आदेश प्रदर्श पी-4, विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग द्वारा एन्टी करप्शन ब्यूरो को दी गई जानकारी दिनांक 03-08-2005 प्रदर्श पी-5, छात्रवृत्ति पंजी प्रदर्श पी-6, चेक की पावती देने सम्बंधी पत्र प्रदर्श पी-7, विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग द्वारा एन्टी करप्शन ब्यूरो का दी गई जानकारी दिनांक 09-06-2005 प्रदर्श पी-8, छात्रवृत्ति के चेकां की पावती के सम्बंध में जानकारी चाहने बावत् आरोपी द्वारा विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी को प्रेषित पत्र प्रदर्श पी-9, उक्त पत्र की पावती प्रदर्श पी-10 व प्रदर्श पी-11, छात्रां का दी जाने वाली छात्रवृत्ति का विवरण प्रदर्श पी-12 से प्रदर्श पी-17, ब्राईट मंदबुद्धि स्कूल संस्था के नाम पर जारी चेक की पावती प्रदर्श पी-18, संस्था की ओर से लिखा गया पत्र प्रदर्श पी-19, प्रार्थी का टेप देने का पंचनामा प्रदर्श पी-20, प्रार्थी का आवेदन प्रदर्श पी-21, रिश्वती रकम पर फिनाफ्थलीन पाउडर लगाने वाले आरक्षक के हाथो को सोडियम काबार्नेट घोल में डुबोने के पश्चात् रंग परिवर्तन घोल एवं फिनाफ्थलीन पाउडर का नमूना पुडि़या की जप्ती प्रदर्श पी-22, प्रार्थी की तलाशी पंचनामा प्रदर्श पी-23 प्रदर्शाकित कराया गया है। 
7- इसी प्रकार प्रार्थी को टेप देने के सम्बंध में पंचनामा प्रदर्श पी-24, प्रारम्भिक पंचनामा प्रदर्श पी-25, आरोपी से रिश्वती रकम जप्ती का पंचनामा प्रदर्श 6  पी-26, घोल प्रदर्शन की कार्यवाही से सम्बंधित शीशियों की जप्ती प्रदर्श पी-27, आरोपी से चेक जप्ती का पंचनामा प्रदर्श पी-28, प्रार्थी से टेपरिकार्डर और कैसेट का जप्ती पत्र प्रदर्श पी-29, प्रार्थी एवं आरोपी के मध्य टेपरिकार्डर में हुई बातचीत का लिप्यान्तरण प्रदर्श पी-30, आरोपी का गिरफ्तारी पंचनामा प्रदर्श पी-32, आरोपी के ट्रेप पश्चात् कार्यवाही पंचनामा प्रदर्श पी-33, प्रार्थी द्वारा एन्टी करप्शन ब्यूरो, रायपुर को दिया गया लिखित शिकायत प्रदर्श पी-34, आवेदन के आधार पर पंजीबद्ध प्रथम सूचना-पत्र प्रदर्श पी-34ए, देहाती नॉलिसी प्रदर्श पी-35, जप्तशुदा घोल को राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला, रायपुर भेजने का आवेदन प्रदर्श पी-36, आवेदन की पावती प्रदर्श पी-39 व प्रदर्श पी-40 एवं राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयागशाला, रायपुर का प्रतिवेदन प्रदर्श पी-37 व प्रदर्श पी-38, अभियोजन स्वीकृति आदेश प्रदर्श पी-41 के दस्तावेजों को प्रदर्शांकित कराया गया है। 8- अभियोजन साक्षियों के कथनों के उपरान्त, धारा 313 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत अभियुक्तगण का परीक्षण कराया गया। धारा-233 दण्ड प्रक्रिया संहिता के उपबंधो के अनुसार प्रतिरक्षा में प्रवेश कराये जाने पर अभियुक्तगण ने अभियोजन साक्षियों के कथनां को झूठा फंसाने का कथन करते हुए प्रतिरक्षा में साक्षी किशोर (ब.सा-1) तथा डॉ.कु.सुनंदा ढेंगे (ब.सा-2) का कथन कराया जाकर अपने समर्थन में आरक्षक पवन पाठक का बयान प्रदर्श डी-1, साक्षी हेमन्त अरोरा का बयान प्रदर्श डी-2, हस्तलिपि विशेषज्ञ की रिपार्ट प्रदर्श डी-3 के दस्तावेजां का प्रदर्शांकित कराया गया है।
9- प्रकरण के निराकरण के लिये विचारणीय बिंदु यह है कि :- 1. क्या अभियुक्त द्वारा लोक-सेवक के पद पर रहते हुए प्रार्थी राजू राजपूत से अवैध पारिश्रमिक से भिन्न, 2,000/-रुपये दिनांक 25-05- 2005 का अपने घर में प्राप्त किया गया ? 2. क्या अभियुक्त द्वारा उक्त रकम 6,750/-रुपये का चेक प्रदान करने के लिये प्रार्थी से 2,000/-रुपये रिश्वती रकम की मांग किया गया ? 3. क्या उक्त कार्य के द्वारा अभियुक्त ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा-7, 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के तहत् अपराध कारित किया ?
।। निष्कर्ष के आधार।।
10- उपरोक्त विचारणीय बिंदुओं के सह-सम्बंधित होने से तथा साक्ष्य की पुनरावृत्ति से बचने के लिये साक्ष्य एवं दस्तावेजां के विवेचना उपरान्त सभी विचारणीय बिंदुओ ं पर एक साथ निष्कर्ष, आगामी कंडिकाओं में दिया जा रहा है।
11- अभियुक्त की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया है कि 6,750/-रुपये का चेक प्राप्त करने की पावती, प्रार्थी द्वारा पूर्व से प्रदान कर दिया गया था। प्रार्थी ने दिनांक 20-05-2005 को 1,500/-रुपये अभियुक्त द्वारा मांग किये जाने का शिकायत किया तथा उसी दिनांक को 2,000/-रुपये की मांग किया जाना बताया है। प्रार्थी स्वय ं वित्तीय अनियमितता का दाषी रहा है, जिसने स्वयं को बचाने के लिये अभियुक्त को झूठा फंसाया है। अ.सा-2 वासुदेव चौधरी ने कथन किया है कि अभियुक्त दिनांक 21-05-2005 से 23-05-2005 तक अवकाश पर था, जिससे अभियुक्त के दिनांक 20-05-2001 से दुर्ग मुख्यालय से बाहर रहने के कारण प्रार्थी का दिनांक 20-05-2005 का अभियुक्त के घर जाकर उससे मिलने का कथन झूठा है। प्रार्थी के दोनां शिकायत में सारभूत विराधाभास है। रिश्वत की मांग का रिकार्ड करने में प्रार्थी असफल रहा है। प्रकरण में ट्रेप पूर्व बातचीत के टेपरिकार्डर व कैसेट की जप्ती का दस्तावेज संलग्न नहीं है। बातचीत रिकार्ड नहीं होने के सम्बंध में कोई पंचनामा तैयार नहीं किया गया है। रिश्वत की मांग प्रमाणित नहीं हुआ है, इसलिये यदि रकम की जप्ती होती है, तो भी अभियाजन, आरोप प्रमाणित करने में असफल रहा है। प्रदर्श पी-10 और प्रदर्श पी-11 की पावती के अनुसार प्रार्थी को चेक दिनांक 24-05-2005 ट्रेप की तिथि के पूर्व ही प्राप्त हो चुका था, पंच साक्षियों तथा अन्य साक्षियों ने अभियुक्त से रकम प्राप्त होने के सम्बंध में अथवा किस स्थान में रकम रखे होने के सम्बंध में तथा पायजामे के सम्बंध में पृथक्-पृथक् कथन किया है। उक्त संबंध में अभियोजन साक्षियां के कथनों में गम्भीर विसंगतियां हैं। प्रदर्श पी-30 के लिप्यान्तरण के अतिरिक्त पूरे प्रकरण में रिश्वत की मांग और प्राप्ति के सम्बंध में प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है। अभियोजन की ओर से धारा-65(बी) भारतीय साक्ष्य अधिनियम का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है। अभियाजन, अभियुक्त के द्वारा रिश्वती रकम मांग कर, रिश्वत प्राप्त करने के आरोप को प्रमाणित करने में असफल रहा है। रिश्वती रकम की बरामदगी तथा अभियुक्त द्वारा उस समय पहने हुये कपड़ों के सम्बंध में गम्भीर विराधाभास है। अभियाजन के, अभियुक्त द्वारा रिश्वत की मांग कर, प्राप्त किये जाने के आराप का सन्देह से परे प्रमाणित नहीं किये जाने पर अभियुक्त को दोषमुक्त किया जावे।;
12- अभियुक्त की ओर से अपने पक्ष-समर्थन में न्याय दृष्टान्त व्ही.सेजप्पा विरुद्ध राज्य, 2016 क्रि.लॉ.ज. 2589 प्रस्तुत किया गया है, जिसमे निर्धारित किया गया है कि रिश्वती रकम के मांग के अभाव तथा अभियुक्त के अन्यत्र उपस्थित रहने एवं अभियुक्त द्वारा रिश्वती रकम प्राप्त करने के साक्ष्य में विसंगति के आधार पर विचारण न्यायालय द्वारा उचित रूप से अभियुक्त को दोषमुक्त किया गया है। अन्य न्याय दृष्टान्त क्रिमिनल अपील नंबर 342/92 रामकुमार वर्मा विरुद्ध मध्यप्रदेश राज्य, निर्णय दिनांक 24-08-2009 (2009(4) क्राईम्स-244 सी.जी.) प्रस्तुत किया गया है, जिसमे निर्धारित किया गया है कि यदि अभियुक्त का बचाव अधिक सम्भावित प्रतीत हाता है, तो उसे स्वीकार किया जाना चाहिये। अन्य न्याय दृष्टान्त पंडरी राव सावलकर विरुद्ध छ0ग0राज्य, 2015( प्ट) एमपीजेआर (सी.जी.)-5 प्रस्तुत किया गया है, जिसमें निर्धारित किया गया है कि अभियुक्त के जेब से किसने रिश्वती रकम निकाली, के विश्वसनीय साक्ष्य के अभाव में दोषसिद्धि निरस्त कर, अपील स्वीकार की जाती है। अन्य न्याय दृष्टान्त जुगलकिशार विरुद्ध मध्यप्रदेश राज्य, 2007 क्रि.लॉ.रि. (एम.पी.) 284 प्रस्तुत किया गया है, जिसमें निर्धारित किया गया है कि रिश्वत के लिये कोई कार्य लम्बित नहीं रहने पर मांग का अवसर उपलब्ध नहीं होने से रिश्वती रकम की मांग प्रमाणित नहीं है, जिससे विचारण न्यायालय द्वारा की गई दोषसिद्धि निरस्त करते हुए अपील स्वीकार की जाती है।
13- इसी प्रकार अभियुक्त की ओर से अन्य न्याय दृष्टान्त क्रिमिनल अपील नंबर- 2325/2006, कु0अर्चना नागर विरुद्ध मध्यप्रदेश राज्य, निर्णय दिनांक 10  07-04-2016 (2016(4) एम.पी.जे.आर. 22) प्रस्तुत किया गया है, जिसमें निर्धारित किया गया है कि लिप्यान्तरण के सत्यता हेतु धारा-65(बी) भारतीय साक्ष्य अधिनियम का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत नहीं करने से उक्त दस्तावेजां का काई साक्ष्यिक महत्व नहीं है। अन्य न्याय दृष्टान्त अशोक कुमार चंद्राकर विरुद्ध छ0ग0राज्य, LAWS (CHH)-2011-1-15/2011(2) C.G.L.J. 23 प्रस्तुत किया गया है, जिसमें निर्धारित किया गया है कि अभियुक्त से राशि प्राप्त होने पर भी दोषसिद्धि के लिये हेतुक तथा रिश्वती रकम का मांग, अभियोजन द्वारा सन्देह से परे प्रमाणित किया जाना चाहिये, केवल अभियुक्त से रिश्वती रकम जप्त होना ही दोषसिद्धि का आधार नहीं होगा। अन्य न्याय दृष्टान्त पंजाब राज्य विरुद्ध सोहन सिंह, 2009(2) सी.सी.एस.सी.-929 (एस.सी.) प्रस्तुत किया गया है, जिसमें निर्धारित किया गया है कि रिश्वती रकम प्रदान करने के पूर्व की घटनाओं के सम्बंध में अभियाजन साक्षियां द्वारा गम्भीर विपरीत कथन किये गये हैं, जिससे उचित रूप से अभियुक्त के विरुद्ध की गई दाषसिद्धि निरस्त की गई है।
14- विशेष लोक अभियाजक की ओर से तर्क प्रस्तुत किया गया है कि अभियोजन ने अभियुक्त के विरुद्ध आरोप सन्देह से परे प्रमाणित किया है। यदि प्रार्थी द्वारा चेक प्राप्त करने के पावती के रूप में हस्ताक्षर किया गया है, तो भी यह साबित नहीं हाता है कि अभियुक्त ने प्रार्थी का चेक प्रदान कर दिया था। अभियाजन का पक्ष अभियुक्त द्वारा प्रस्तुत बचाव साक्षियों के साक्ष्य से भी पुष्ट हाता है। अभियुक्त से रिश्वती रकम बरामद की गई है तथा अभियोजन साक्षियां ने रिश्वती रकम की मांग तथा मांग करने के कारण को अपने साक्ष्य में स्पष्ट रूप से कथन किया है। अभियुक्त द्वारा लिये गये बचाव, साक्ष्य से स्थापित नहीं हुये हैं। अभियोजन ने अपना आरोप साक्ष्य एवं दस्तावेजो ं से प्रमाणित किया है, अतः अभियुक्त को आरापित अपराध में कठोर दण्ड से दण्डित किया जावे।
15- अभियुक्त पर आराप लगाया गया है कि उसके द्वारा दिनांक 25-05-2005 के पूर्व छत्तीसगढ ़ शासन के अंतर्गत कार्यालय विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग, जिला दुर्ग में सहायक ग्रेड-3 के पद पर, जो कि लोक-सेवक का पद है, पदस्थ रहते हुए प्रार्थी राजू राजपूत, जा कि जवाहर नगर, दुर्ग में ब्राईट मंदबुद्धि विद्यालय का संचालन करता है और जहां के अनुसूचित जाति-जनजाति के छात्रां को विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग द्वारा प्रदान की जाने वाली छात्रवृत्ति के लिये 6,750/-रुपये का चेक जारी किया गया था, जिसे प्रार्थी को देने में लोक- सेवक की पदीय हैसियत में शासकीय कार्य के सम्पादन हेतु वैध पारिश्रमिक से भिन्न 2,000/-रुपये रिश्वत की मांग किया गया तथा दिनांक 25-05-2005 को प्रातः 8.00 बजे रिश्वत के रूप में प्राप्त कर, आपराधिक अवचार कारित किया गया।
16- उक्त आरोपित आराप के सम्बंध में प्रकरण में उपलब्ध साक्ष्य एवं दस्तावेजों का विश्लेषण आगामी कंडिकाओं में इस प्रकार है :-
17- अ.सा-5 प्रार्थी राजू राजपूत का न्यायालयीन कथन है कि वह ब्राईट मूक बधिर ब्राईट स्कूल में शिक्षक के पद पर कार्यरत् होकर मूक बधिर बच्चो का मिलने वाली कन्या प्रोत्साहन राशि प्राप्त करने के लिये अभियुक्त से सम्पर्क किया था, तो अभियुक्त ने आने-जाने के खर्च के लिये उससे 2,000/-रुपये प्राप्त किया था तथा 3,000/-रुपये एवं 1,500/-रुपये का चेक दिया था। 6,750/-रुपये पास होने पर अभियुक्त ने उससे 2,000/-रुपये की मांग किया, इसलिये उसने एन्टी करप्शन ब्यूरो से प्रदर्श पी-34 का शिकायत किया था तथा टेपरिकार्डर लेकर बातचीत रिकार्ड करने गया था, परन्तु टेप का बटन खराब हाने पर बातचीत रिकार्ड नहीं हो पायी थी। आरोपी द्वारा 2,000/-रुपये की मांग किये जाने पर वह टेपरिकार्डर लेकर आरोपी के घर गया था और 500 के 3 नोट एवं 100 के 5 नोट का रकम दिया था, तब आरोपी ने पायजामे के घुटने के पास का चैन खालकर उसे चेक दिया था, फिर ट्रेप दल के आदमी आकर अभियुक्त को पकड़ लिये। उसने ट्रेप दल के पूछने पर अभियुक्त के पायजामे के दाहिने पैर के ऊपर के पॉकेट से पैसा निकाला गया था। एन्टी करप्शन वालों ने उसकी जेब से चेक (वस्तु ’अ’) निकालकर जप्त कर, जप्ती पत्रक प्रदर्श पी-28 तैयार किया था। नोटों का मिलान कर, घाल में आरोपी का हाथ धुलवाने से घाल का रंग गुलाबी हो गया था। उसके हाथ का घाल का रंग भी गुलाबी हो गया था। टेप रिकार्ड में बातचीत सुनाई नहीं आ रही थी, जिसका लिप्यान्तरण प्रदर्श पी-30 किया गया था। टेप रिकार्ड की जप्ती प्रदर्श पी-29 तथा पटवारी द्वारा नक्शा तैयार किया गया था। दोनां चेक के पावती के संबंध में प्रदर्श पी-10 और प्रदर्श पी-11 को काट-छांटकर पावती बनाकर पेश किया गया है, उसमें उसके हस्ताक्षर को किसी दस्तावेज से काटकर लगा दिया गया है। लिखित शिकायत प्रदर्श पी-21, टेप देने का पंचनामा प्रदर्श पी-24 है।
18- इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में कथन किया है कि स्कूल के मकान मालिक नम्मूराम साहू का किराये की राशि नहीं देने पर उसने उसके विरुद्ध केस किया है। प्रदर्श पी-12 में सविता वानखेड़े तीसरी कक्षा में थी, जिसे चौथी कक्षा में ले लिया गया। स्कूल के बच्चों का छात्रवृत्ति चेक के माध्यम से प्राप्त हाती है। अन्वेषण अधिकारी ने पास-बुक की जांच नहीं किया है। प्रदर्श पी-34 के आवेदन पत्र में कितने रुपये, किस दिनांक को लेकर आने के लिये कहा गया है, इसका उल्लेख नहीं है। प्रदर्श पी-34 में 1,500/-रुपये की मांग लिखी गई है। रकम चेक के माध्यम से जमा होने पर भी वह आरोपी के घर इसलिये गया, क्योंकि चेक को आरोपी रख लिया था और आरोपी ने चेक देने के लिये पैसे की मांग किया था। उसने चेक प्राप्ति का हस्ताक्षर नहीं किया था। प्रदर्श पी-10 में उसके हस्ताक्षर हैं। यदि चेक उसे मिला हाता, ता वह लिखता कि उसे चेक मिला है। प्रारम्भिक पंचनामा में उसने आरोपी ने पैसे की मांग कहां, कितने समय, किस तारीख को किया, इसे नहीं बताया है। चेक की जप्ती उसी से हुई है, परन्तु जप्ती पत्र में यह बात नहीं लिखी गई है। उसने आरोपी का तलाशी नहीं दिया था और न ही आरोपी का पैसे देने के बाद आरोपी से उसकी तलाशी करवायी गई थी। मांग करने की बात स्पष्ट रिकार्ड नहीं हुआ था। प्रदर्श पी-6 के अनुसार आरोपी दिनांक 18-05-2005 तक कार्य किया है तथा राशि 6,750/-रुपये का उल्लेख, दिनांक 17-05-2000 की तिथि में है। प्रकरण के पूर्व के चेक का भुगतान पालकां को किये जाने और उनसे पावती लेने का कोई अभिलेख उसने ए.सी.बी. को नहीं दिया था।
19- पंचसाक्षी अ.सा-4 हेमन्त अरोरा का कथन है कि कलेक्टर, रायपुर से आदेश प्राप्त हाने पर वह एन्टी करप्शन ब्यूरो के अधिकारियों के साथ गया था तथा प्रार्थी से रिश्वती रकम मांग की सन्तुष्टि होने पर आवेदन-पत्र प्रदर्श पी-21 में हस्ताक्षर किया था। नोटों के नम्बर नोट कर उसमें फिनाफ्थलीन पाउडर लगाया गया था। प्रार्थी का तलाशी लेकर तलाशी पंचनामा प्रदर्श पी-23 तैयार किया गया था तथा उसे टेप रिकार्ड देकर पंचनामा प्रदर्श पी-24 तैयार किया गया था। पी.डब्ल्यूडी. रेस्टहाउस में सम्पूर्ण कार्यवाहियों का प्रारम्भिक पंचनामा प्रदर्श पी-25 तैयार किया गया था। आरोपी के मकान पहुंचने पर प्रार्थी के इशारा करने पर वह अन्य लागों के साथ अन्दर गया था, जहां अनुज शर्मा के द्वारा आरोपी के पायजामे की जेब से रिश्वती रकम निकाली गई थी तथा नोटों का नम्बर का मिलान करने से एक ही नम्बर होना पाया गया था। नोटों तथा प्रार्थी के हाथ का घाल में डुबाने से घाल का रंग गुलाबी हा गया था। आरोपी का पायजामा जप्त कर, जप्ती पंचनामा प्रदर्श पी-26, घाल प्रदर्शन की कार्यवाही के शीशियां का जप्ती पत्र प्रदर्श पी-27, आरोपी से चेक जप्ती का पंचनामा प्रदर्श पी-28, प्रार्थी से टेप रिकार्ड और कैसेट जप्त करने का जप्ती पत्र प्रदर्श पी-29, बातचीत का लिप्यान्तरण प्रदर्श पी-30 तैयार किया गया था। पटवारी को बुलाकर नक्शा प्रदर्श पी-1 तैयार कर, आरोपी को गिरफ्तारी पंचनामा प्रदर्श पी-31 के द्वारा गिरफ्तार किया गया था। आरोपी के सम्बंधित रिकार्ड और रजिस्टर को प्रदर्श पी-32 के जप्ती पत्र के द्वारा जप्त किया गया था। आरोपी के मकान का ट्रेप पश्चात् की गई कार्यवाही का पंचनामा प्रदर्श पी-33 तैयार किया गया था।
20- इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में कथन किया है कि उसने प्रार्थी के दोनां आवेदनों को देखा था, किन्तु प्रदर्श पी-21 में अभियुक्त ने प्रार्थी से किस तारीख का पैसे की मांग किया और कहां पर मांग किया, यह नहीं लिखा है। प्रार्थी को उसके सामने टेप रिकार्ड दिनांक 25-05-2005 को दिया गया था। प्रार्थी को दिये गये नोट 500 के 3 और 100 के 5 नाट थे। 6,750/-रुपये का एकाउंटपेयी चेक दिनांक 17-05-2005 प्रधानाचार्य, ब्राईट मंद बुद्धि निःशुल्क शिक्षण संस्थान के लिये जारी किया गया था। उसे याद नहीं है कि पैसा, प्रार्थी के पेंट या शर्ट के किस जेब में डाला गया था। उसने अभियुक्त के घर के अन्दर के लेनदेन और बातचीत का न तो देखा है, और न सुना है। जब वह भीतर गया, तो प्रार्थी लुंगी और बनियान पहना हुआ था। उसे बताया गया कि पायजामे से पैसे की बरामदगी की गई है। नोटों का मिलान उन लोगां ने किया था।
21- अन्य पंचसाक्षी अ.सा-6 अनुज शर्मा द्वारा मुख्य परीक्षण में कथन असा-4 हेमन्त अरोरा के अनुसार ही किया गया है तथा प्रार्थी की जामातलाशी पंचनामा प्रदर्श पी-23, टेप रिकार्ड देने का पंचनामा प्रदर्श पी-24, रेस्टहाऊस में घाल सम्बंधी कार्यवाहियां के बाद शीशियां की जप्ती पत्र प्रदर्श पी-22, रेस्टहाऊस के कार्यवाहियों का प्रारम्भिक पंचनामा प्रदर्श पी-25 के कार्यवाहियों की पुष्टि किया गया है। यह भी कथन किया है कि प्रार्थी द्वारा इशारा करने पर वह अन्य लागो ं के साथ आरोपी के घ् ार पहुंचा, आरोपी के तलाशी लिये जाने पर उसके पेंट की जेब से 500-500 के 3 नोट तथा 100-100 के 5 नोट बरामद हुये थे, जिसके नम्बरां का मिलान करने पर रेस्टहाऊस में लिखे गये नम्बर एक ही होना पाया गया था। आरोपी एवं प्रार्थी का हाथ किसी लिक्विड में धुलाये जाने पर गुलाबी रंग निकला था। नोटों की जप्ती की कार्यवाही प्रदर्श पी-26 कर, पटवारी का बुलाकर नजरी नक्शा प्रदर्श पी-1 तैयार किया गया था। टेप रिकार्डर के लिप्यान्तर की कार्यवाही प्रदर्श पी-30 कर, कैसेट की जप्ती पत्रक प्रदर्श पी-29 तैयार किया गया था। पूरी कार्यवाही कर, कार्यवाही पंचनामा प्रदर्श पी-33 तैयार किया गया था। आरोपी के कार्यालय से रजिस्टर की जप्ती प्रदर्श पी-32, आरोपी द्वारा प्रार्थी को दिया गया चेक का जप्ती पत्र प्रदर्श पी-28 तैयार किया गया था। आरोपी के पेंट को धुलाने पर भी घोल का रंग गुलाबी हो गया था। सभी घाल की शीशियां की जप्ती प्रदर्श पी-27 तैयार कर, गिरफ्तारी पंचनामा प्रदर्श पी-31 तैयार किया गया था।
22- इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में कथन किया गया है कि उसके सामने प्रार्थी ने आरोपी को कोई रकम नहीं दिया और न ही आरोपी ने प्रार्थी को कोई चेक दिया है। दिनांक 25-05-2005 का उसकी मुलाकात ए.सी.बी.कार्यालय में प्रार्थी से नहीं हुई थी। प्रार्थी ने प्रदर्श पी-21 का आवेदन-पत्र पहले से लिखकर लाया था, जिसमें यह नहीं लिखा है कि आरोपी ने प्रार्थी को पैसा लेकर कहां और किस समय बुलाया है। प्रदर्श पी-21 में नोटों का नम्बर नहीं लिखा गया है। दिनांक 25-05-2005 को 10.05 पर प्रार्थी ने चेक ए.सी.बी. के अधिकारी के समक्ष पेश किया था, जिसका जप्ती पत्र प्रदर्श पी-28 है। उसने प्रार्थी को अभियुक्त द्वारा चेक देते हुए नहीं देखा है। घटनास्थल में उपस्थित सभी लोगों के हाथ नहीं धुलवाये गये थे। हेमन्त अरोरा भी पंचसाक्षी के रूप में साथ गये थे। घटना के समय आरोपी, रात को पहनकर साने वाला फूलपेंट, बरमूड़ा पहना था, जिसके साईड में पॉकेट था। चेक वस्तु ’अ’ में दिनांक 17-05-2005 की तिथि अंकित है। आरोपी ने उसकी तलाशी नहीं लिया था। मौके पर जो कार्यवाही की गई थी, उसको देखकर, पढ ़कर हस्ताक्षर किये थे, कार्यवाही पंचनामा घटनास्थल पर तैयार नहीं किया गया था।
23- छाया साक्षी अ.सा-3 पवन पाठक का न्यायालयीन कथन है कि प्रार्थी द्वारा दिनांक 20-05-2005 को शिकायत किये जाने पर प्रार्थी को रिश्वती रकम मांगने के सम्बंध में बातचीत को टेप करने के लिये टेप देने का पंचनामा प्रदर्श पी-20 तैयार किया गया था। उक्त कथन के बाद इस साक्षी ने पंच साक्षियों द्वारा किये गये मुख्य कथन के अनुसार ही न्यायालयीन कथन किया है तथा अतिरिक्त में कथन किया है कि ट्रेप दल के सदस्य होकर प्रार्थी द्वारा इशारा प्राप्त होने पर सभी सदस्य आरोपी के निवास स्थान में प्रवेश किये, जहां इंस्पेक्टर सेन आरोपी का दाहिना हाथ तथा आरक्षक अलेक्जेण्डर बांया हाथ पकड़े हुये थे, आरोपी ने अपना नाम गणेशलाल मेश्राम बताया था। आरक्षक अगम वर्मा द्वारा तैयार किये गये घाल में रिश्वती रकम व आरोपी के हाथ तथा आरोपी के पहने हुये पायजामे के बांये जेब तथा प्रार्थी राजू राजपूत के हाथों को धुलवाने पर घाल का रंग गुलाबी हो गया था। 6,750/-रुपये का चेक प्रार्थी से जप्त किया गया था। पटवारी को बुलाकर नक्शा तैयार करवाया गया था।
24- इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में कथन किया है कि उसने दिनांक 20-05-2005 के प्रार्थी की शिकायत को नहीं पढ़ा था। प्रदर्श पी-20 में सीलबंद नया कैसेट दिया गया, इसका उल्लेख नहीं है तथा उसमें प्रार्थी के हस्ताक्षर नहीं हैं। उक्त कार्यवाही लोकायुक्त कार्यालय में की गई थी। प्रार्थी अकेले आरोपी के घर नहीं गया था। इशारा करने के बाद आरोपी के घर सबसे पहले इंस्पेक्टर सेन गये थे तथा आरोपी के पायजामे से पंच गवाह अरारा ने रिश्वती रकम निकाला था। उसने प्रार्थी को पैसा देते हुये नहीं देखा है। आरोपी के घर जाने के पहले हुये बातचीत और हरकत की जानकारी उसे नहीं है। प्रदर्श पी-20 के अलावा अन्य कार्यवाहियां में उसके हस्ताक्षर नहीं हैं। अन्दर पहुंचने पर अभियुक्त पायजामा पहना हुआ था, जिसका जप्ती तैयार किया गया था।
25- ट्रेप दल के सदस्य अ.सा-8 अगमराम वर्मा, प्रधान आरक्षक का साक्ष्य है कि दिनांक 25-05-2005 को साडियम काबार्नेट के घोल में अभियुक्त का पायजामा और प्रार्थी का हाथ धुलवाया गया था तथा साडियम कार्बोनेट के पाउडर एवं लिफाफा, जप्ती पत्र प्रदर्श पी-27 के अनुसार तैयार किया गया था। प्रार्थी के आवेदन के साथ रिश्वती रकम 2,000/-रुपये दिये जाने पर उसमें उसने फिनाफ्थलीन पाउडर लगाकर प्रार्थी के बांये जेब में रखा था। ट्रेप दल के सदस्य अभियुक्त के घर गये थे तथा प्रार्थी द्वारा इशारा करने पर कि अभियुक्त ने रिश्वत ले लिया है, अभियुक्त को जाकर पकड़े थे। रिश्वती रकम 500-500 के 3 नोट तथा 100-100 के 5 नाट, अभियुक्त का हाथ एवं पायजामा का सोडियम कार्बोनेट के घोल में डुबाने पर घाल का रंग गुलाबी हो गया था, जिसे सीलबंद किया गया था। प्रति- परीक्षण में कथन किया है कि ट्रेप दल के सदस्यो द्वारा कितनी शीशियां, गिलास, सोडियम काबार्नेट और फिनाफ्थलीन पाउडर व अन्य चीजें ले जाने का पंचनामा नहीं बनाया गया था। उसने अभियुक्त और प्रार्थी के बीच रिश्वत लेते समय क्या बातचीत हुआ था, नहीं सुना था। ट्रेप करते समय अभियुक्त पायजामा पहना था।
26- प्रथम सूचना दर्ज करने के साक्षी अ.सा-7 जोगेन्द्र सिंह गम्भीर, निरीक्षक, राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो का साक्ष्य है कि उसने दिनांक 26-05-2005 को पुलिस अधीक्षक, एन्टी करप्शन ब्यूरो, रायपुर के मेमो क्रमांक 1746, दिनांक 26-05-2005 के माध्यम से गणेशलाल मेश्राम, लिपिक, कार्यालय खण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग के विरुद्ध नम्बरी अपराध पंजीबद्ध करने हेतु देहाती नालिसी प्राप्त होने पर अपराध क्रमांक-22/2005, प्रदर्श पी-34ए पंजीबद्ध किया था। प्रतिपरीक्षण में कथन किया है कि देहाती नालिसी और प्रदर्श पी-34 में प्रार्थी के हस्ताक्षर नहीं हैं।
27- घटनास्थल के नजरी नक्शा तैयार करने के साक्षी अ.सा-2 त्रिभुवन सिंह वर्मा, पटवारी का साक्ष्य है कि दिनांक 25-05-2005 का तहसीलदार द्वारा गजान ंद नगर, दुर्ग पहुंचकर नक्शा तैयार करने के निर्देश पर उसने 9-10.00 बजे जाकर गवाह हेमन्त अरोरा, राजू राजपूत और अन्य साक्षियों से पूछकर घटनास्थल का नजरी नक्शा प्रदर्श पी-1 तैयार किया था। प्रतिपरीक्षण में कथन किया है कि घटनास्थल आरोपी का बैठक स्थल है। उसने नजरी नक्शा में दीवाल या खिड़की होने का उल्लेख नहीं किया है। घटनास्थल से अन्य स्थल की दूरी का उल्लेख भी 20  नहीं किया है। चिन्हित स्थान ’ए’ और ’ई’ के बीच में एक दीवाल है।
28- अभियुक्त की पदस्थापना से सम्बंधित साक्षी अ.सा-2 वासुदेव चौधरी, विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग का कथन है कि अभियुक्त के उसके कार्यालय में कार्य करने सम्बंधी आदेश की सत्यापित प्रति प्रदर्श पी-4 है। उसने दिनांक 27-05-2005 का एन्टी करप्शन ब्यूरो के पत्र के जवाब में पत्र प्रदर्श पी-2 लिखा था तथा सेवा-पुस्तिका प्रदर्श पी-3सी संलग्न किया था। इसके अतिरिक्त इस साक्षी ने दिनांक 03-08-2005 को पुलिस अधीक्षक, दुर्ग द्वारा मांगी गई जानकारी के सम्बंध में लिखा गया पत्र प्रदर्श पी-5, प्रकरण में संलग्न छात्रवृत्ति पंजी प्रदर्श पी-6, छात्रवृत्ति की चेक राशि के सम्बंध में पावती देने सम्बंधी पत्र प्रदर्श पी-7, पुलिस अधीक्षक, एन्टी करप्शन ब्यूरो द्वारा मांगी गई जानकारी के सम्बंध में लिखा गया पत्र दिनांक 09-05-2008 प्रदर्श पी-8, अभियुक्त गणेशलाल मेश्राम द्वारा छात्रवृत्ति के चेकों की पावती के सम्बंध में जानकारी प्रदर्श पी-9, उक्त पत्र के साथ संलग्न चेकों  की दो पावतियां प्रदर्श पी-10 एवं प्रदर्श पी-11, छात्रवृत्ति के वितरण हेतु बैंक का भेजे लाने वाला सूची प्रदर्श पी-12 से प्रदर्श पी-17, ब्राईट मंद बुद्धि स्कूल के नाम पर जारी पुनः चेक की पावती प्रदर्श पी-18 तथा उक्त केन्द्र की ओर से लिखा गया पत्र प्रदर्श पी-19 की कार्यवाही की पुष्टि किया है।
29- इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में कथन किया है कि कार्यालय से जिन संस्थाओं के चेक जारी किये जाते थे, उन्हें सम्बंधित क्लर्क, कार्यालय में उपस्थित होने पर चेक प्रदान करता था। कई बार प्यून के माध्यम से चेक सम्बंधित संस्था को भिजवाकर पावती लिया गया है। चेक एकाउंटपेयी रहता था, जिसका उपयोग अभियुक्त नहीं कर सकता था। आरोपी ने उसे दिनांक 19-05-2005 का दिनांक 20-05-2005 से मुख्यालय से बाहर जाकर गोंदिया, महाराष्ट्र में साला-साली के विवाह में सम्मिलित होने का आवेदन दिया था। दिनांक 20-05-2005 को अभियुक्त आकस्मिक अवकाश पर था तथा दिनांक 21-05-2005 से दिनांक 23-05-2005 तक शासकीय अवकाश था।
30- अभियोजन स्वीकृति के साक्षी अ.सा-10 माधव प्रसाद शर्मा, तत्कालीन अतिरिक्त सचिव, विधि एवं विधायी कार्य विभाग, छ0ग0शासन का साक्ष्य है कि उसने एन्टी करप्शन व्‍यूरो के पत्र दिनांक 30-01-2006 के आधार पर अभियुक्त गणेशलाल मेश्राम के विरुद्ध दिनांक 18‘-4-2006 को अभियाजन स्वीकृति प्रदर्श पी-41 प्रदान किया था। प्रतिपरीक्षण में कथन किया है कि उसने सीडी को नहीं सुना था और न ही सम्बंधित सीडी प्रदान किया गया था, परन्तु लिप्यान्तरण उसे दिया गया था। अभियोजन स्वीकृति देने के पूर्व अभियुक्त के विभाग के सचिव से पृथक् अभिमत लिये जाने की बात उसे याद नहीं है।
31- विवेचना के साक्षी अ.सा-9 एस.के.सेन ने कथन किया है कि उसने राजू राजपूत की रिपोर्ट के आधार पर देहाती नालिसी प्रदर्श पी-35 लेखबद्ध किया था। अभियुक्त के विरुद्ध की गई ट्रेप कार्यवाहियां की पुष्टि करते हुये इस साक्षी ने प्रार्थी को टेपरिकार्डर देने का पंचनामा प्रदर्श पी-20, प्रार्थी की जामातलाशी प्रदर्श पी-23, पुनः टेपरिकार्डर देने का पंचनामा प्रदर्श पी-24, फिनाफ्थलीन पाउडर का 22  नमूना एवं सोडियम कार्बोनेट का गुलाबी रंग का जप्ती पत्र प्रदर्श पी-22, प्रारम्भिक कार्यवाही पंचनामा प्रदर्श पी-25, अभियुक्त से रिश्वती रकम 2,000/-रुपये का जप्ती पत्र प्रदर्श पी-26, आरक्षक अगमराम वर्मा से घाल, सोडियम काबार्नेट का पाउडर एवं नमूना-सील का जप्ती पत्रक प्रदर्श पी-27, प्रार्थी से इलाहाबाद बैंक के चेक का जप्ती पत्र प्रदर्श पी-28, अभियुक्त से रजिस्टर जप्ती का जप्ती पत्र प्रदर्श पी-32, अभियुक्त का गिरफ्तारी पंचनामा प्रदर्श पी-31, प्रार्थी से माईक्रो कैसेट जप्त किये जाने का जप्ती पत्र प्रदर्श पी-29, गवाहों के समक्ष बातचीत का लिप्यान्तरण प्रदर्श पी-30, कार्यवाही पंचनामा प्रदर्श पी-33, जप्त घाल को राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयागशाला, रायपुर भेजने का ज्ञापन प्रदर्श पी-36, राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयागशाला, रायपुर का प्रतिवेदन प्रदर्श पी-37 एवं प्रदर्श पी-38, जप्त सम्पत्ति राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला भिजवाने का पावती प्रदर्श पी-39 एवं प्रदर्श पी-40 की कार्यवाही किये जाने का साक्ष्य, न्यायालय में दिया है।
32- इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में कथन किया है कि प्रार्थी ने अपने लिखित आवेदन में रिश्वत की मांग कब किया, इसका उल्लेख नहीं किया है, परन्तु अपने कार्यालय में रिश्वत लेकर बुलाना लिखा है। टेप रिकार्डर चालू अवस्था में होने का उल्लेख, प्रारम्भिक पंचनामा में है। प्रकरण के पूर्व ही चेक प्रार्थी को देने के लिये तैयार किया जा चुका था। प्रार्थी ने दिनांक 17-05-2005 का चेक प्राप्त होने का पावती दिया था, जो प्रकरण में संलग्न है। प्रार्थी ने पावती फर्जी होने का शिकायत किया था तथा बगल में हस्ताक्षर किये जाने से पावती फर्जी रूप से तैयार किया गया 23  है। ट्रेप के दौरान ट्रेप किट् में सोडियम कार्बोनेट का पाउडर, शीशियां, गिलास लेकर जाते हैं। पंच साक्षियां को शीशी का साडियम कार्बोनेट के घोल में धोकर रखने के सम्बंध में नहीं बताया गया था। अभियुक्त को कार्यालय से नहीं, उसके घर से ट्रेप किया गया था। कार्यवाही पंचनामा में अभियुक्त के घर सुबह 8-8.30 बजे पहुंचने का उल्लेख नहीं है। चेक जिसके नाम से होता है, वह उसका उपयोग करता है। चेक समय पर न पहुंचने पर सम्बंधित अधिकारी के ऊपर विभागीय कार्यवाही हो सकती है। प्रार्थी और अभियुक्त के बीच अभियुक्त के घर में हुये बातचीत को उसने नहीं सुना है। ट्रेप के बाद पूरी कार्यवाही अभियुक्त के घर में किये थे। कार्यवाही पंचनामा में कार्यवाही हाने के समय का उल्लेख नहीं है। ट्रेप करते समय अभियुक्त का एक हाथ वह और दूसरा हाथ अलेक्जेण्डर एक्का पकड़े हुये थे। अभियुक्त की तलाशी नहीं करवाया गया था।
33- बचाव साक्षी क्रमांक-1 किशोर का साक्ष्य है कि दिनांक 25-05-2005 को सुबह 8-8.30 बजे वह अभियुक्त के घर न्यूज पेपर पढ़ने गया था। उस समय राजू राजूपत आया, तो उसे वह उसे अन्दर बिठाकर गणेशराम को बुलाने गया, जब वापस आया तो देखा कि वह आदमी खूंटी में टंगे हुये पायजामे में पैसा डाल रहा था। थोड़ी देर बाद गणेशराम हाथ में पानी लेकर बाहर आया, तो राजू राजपूत, गणेशराम से हाथ मिलाकर पानी पीकर चले गया। पांच मिनट बाद वह अन्य व्यक्तियां के साथ आया और उन लोगों ने वहां से जाने के लिये कहा, तो वहां से वह चला गया। प्रतिपरीक्षण में कथन किया है कि आरोपी स्वयं राजू राजपूत के लिये पानी लेकर आया था। वह नहीं बता सकता है कि राजू राजपूत ने कितने के नोट आरोपी के पायजामे की जेब में डाला था। आरोपी का बुलाने के बाद पुनः वह पेपर पढ़ने बैठ गया था।
34- ब.सा-2 कु. सुनंदा ढेंगे का साक्ष्य है कि उसने अपना विशेषज्ञ मत दिनांक 19-10-2016 प्रदर्श डी-3 प्रस्तुत किया है, जिसके अनुसार क्यू-1 से क्यू-7 तक के दस्तावेजों का मिलान करने पर हस्ताक्षरों का लेखक वह व्यक्ति नहीं है, जिसने तुलनात्मक हस्ताक्षर एन-1 से एन-21 में हस्ताक्षर अथवा लेखन किया है। प्रतिपरीक्षण में कथन किया है कि रिपार्ट उसके द्वारा आरोपी के व्यक्तिगत निवेदन पर दिया गया है। क्यू-1 से क्यू-7 एवं एन-1 से एन-21 के हस्ताक्षरों में भिन्नता है तथा प्रदर्श डी-1 के अनुसार ’एन’ श्रृंखला में ’आर’ अक्षर अनियमित और फैला हुआ पाया गया है।
35- प्रकरण में संलग्न दस्तावेजां के अवलाकन से स्पष्ट होता है कि नक्शा प्रदर्श पी-1 में ’ई’ स्थान घटनास्थल, अभियुक्त के घर का बैठक-कक्ष दर्शाया गया है, जिसे अभियुक्त की ओर से विवादित नहीं किया गया है। प्रदर्श पी-2 के पत्र दिनांक 26-05-2005 में अभियुक्त की सेवानिवृत्ति की तारीख 60 वर्ष की आयु उपरान्त 31-05-2031 दर्शायी गई है तथा निलम्बन का अधिकार जिला शिक्षा अधिकारी, दुर्ग को होने का कथन किया गया है एवं साथ में सेवा-पुस्तिका की सत्यापित प्रति संलग्न किया गया है। प्रदर्श पी-4 के जिला शिक्षा अधिकारी, दुर्ग के आदेश दिनांक 29-09-2003 के द्वारा अभियुक्त का विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में संलग्न किया गया है। विकासखण्ड अधिकारी, दुर्ग द्वारा पुलिस अधीक्षक, एन्टी करप्शन ब्यूरो को पत्र दिनांक 03-06-2005 के द्वारा यह जानकारी दी गई है कि अभियुक्त, छात्रवृत्ति की राशि का चेक क्रमांक-644582, राशि 6,750 रुपये अपने घर ले जाने के लिये अधिकृत नहीं था और कार्यालयीन अभिलेख के अनुसार पंजी में दी गई पावती ही विधिसंगत मान्य पावती है तथा सम्बंधित संस्था प्रमुख को चेक क्रमांक, दिनांक, राशि का उल्लेख कर, परिपत्र जारी कर, पावती देने के लिये निर्देशित किया गया है, जो कार्यालय द्वारा मान्य है। 36- प्रदर्श पी-7 के पत्र दिनांक 01-06-2005 के द्वारा ब्राईट संस्था, जवाहर नगर, दुर्ग को विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग द्वारा चेक क्रमांक-644598, दिनांक 01-06-2005, राशि 6,750/-रुपये की पावती देने के लिये लिखा गया है। विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग द्वारा पुलिस अधीक्षक, एन्टी करप्शन ब्यूरो को पत्र दिनांक 08-06-2005, प्रदर्श पी-8 के द्वारा जानकारी दिया गया है कि चेक क्रमांक 644582, दिनांक 17-05-2005, राशि 7,750/-रुपये की पावती की प्रमाणित छाया- प्रति पेश किया जा रहा है। उक्त संस्था द्वारा कार्यालय को सूचित किया गया है कि उनके द्वारा किसी प्रकार की पावती नहीं दिया गया है, यदि श्री मेश्राम द्वारा पावती प्रस्तुत की जाती है, तो वह पावती फर्जी है।
37- प्रदर्श पी-9 का पत्र अभियुक्त द्वारा विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग को लेख किया गया है, जिसके द्वारा चेक क्रमांक 644582, दिनांक 17-05-2005, राशि 6,750/-रुपये की पावती की फोटा प्रति प्रस्तुत किया गया है, जिसमें चेक 26  दिनांक 24-05-2005 को प्रदान किया जाना बताया गया है, जिसे प्रदर्श पी-10 अंकित किया गया है। उक्त पावती में हस्ताक्षर के बाजू में चेक क्रमांक-644582, दिनांक 24-05-2005, राशि 6,750/- रुपये प्राप्त किया, लेख किया गया है। प्रदर्श पी-18 चेक क्रमांक-644598, दिनांक 01-06-2005, राशि 6,750/-रुपये प्राप्त किये जाने की पावती है। प्रार्थी द्वारा प्रदर्श पी-19 के शिकायत दिनांक 20-05- 2005 द्वारा विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी, दुर्ग को सूचित किया गया है कि अभियुक्त द्वारा घर में चेक देने के बाद पावती नहीं लिया गया था और अगर उसके द्वारा पावती पेश किया जाता है, तो वह पावती फर्जी है। प्रदर्श पी-21 के शिकायत दिनांक 25-05-2005 में दिनांक 20-05-2005 को अभियुक्त के घर में हुई बातचीत रिकार्ड नहीं होने का लेख किया गया है तथा दिनांक 20-05-2005 को 1,500/-रुपये एवं दिनांक 24-05-2005 को 2,000/- रुपये की मांग किये जाने का लेख किया गया है।
38- प्रदर्श पी-23 के प्रार्थी के जामातलाशी में उसकी जेबां में रिश्वती रकम के अतिरिक्त और कुछ नहीं रहने देने का उल्लेख है। प्रदर्श पी-26 के जप्ती पत्र में 500-500 के 3 नोट तथा 100-100 के 5 नोट का नम्बर लिखा गया है तथा उक्त नोटों तथा क्रीम रंग का नाईट सूट का पायजामा, जिसकी बांयी तरफ की जेब में रिश्वती रकम रखने का उल्लेख है, को जप्त करने का उल्लेख है। प्रदर्श पी-27 के जप्ती पत्रक में आरोपी गणेशलाल मेश्राम के दोनां हाथ की उंगलियां, रिश्वती रकम, आरोपी के पायजामा को सोडियम काबार्नेट के घाल में डुबाने से प्राप्त गुलाबी रंग के घोल का जप्त किये जाने का उल्लेख है। प्रदर्श पी-28 के जप्ती पत्र में इलाहाबाद बैंक का चेक क्रमांक-644582, राशि 6,750/-रुपये प्रधानाचार्य, ब्राईट मंदबुद्धि शिक्षण संस्थान का प्रार्थी से जप्त किये जाने का उल्लेख है। प्रदर्श पी-30 रिश्वत लेते समय हुये बातचीत का लिप्यान्तरण है, जिसमें लेख है कि प्रार्थी ने कथन किया है कि अच्छा देख ला दो हजार है न, जिसमें अभियुक्त द्वारा कथन किया गया है कि जो भी है। प्रार्थी की ओर से एक शपथ-पत्र भी प्रस्तुत किया गया है कि छात्रवृत्ति के सम्बंध में गणेशराम द्वारा फर्जी पावती प्रस्तुत किया गया है, जिसमें लिखावट उसका नहीं है। इसी दस्तावेज को काट-छांटकर हस्ताक्षर एवं सील का उपयोग कर, पावती तैयार किया गया है। छात्रवृत्ति चेक की पावती संस्था द्वारा नहीं दिया गया है। प्रदर्श पी-35 के प्रथम शिकायत-पत्र में प्रार्थी ने शेष 6,750/-रुपये प्राप्त करने के लिये 1,500/- रुपये रिश्वत की मांग किये जाने का कथन किया है।
39- प्रार्थी राजू राजपूत ने आरोपी द्वारा रिश्वती रकम मांगे जाने का शिकायत प्रदर्श पी-34 एवं प्रदर्श पी-21 एन्टी करप्शन ब्यूरो, रायपुर में किया है तथा न्यायालय में कथन किया है कि अभियुक्त ने उससे मूक बधिर बच्चों का कन्या प्रोत्साहन राशि प्राप्त करने के लिये पूर्व में 2,000/- रुपये भी प्राप्त किया था एवं 6,750/-रुपये का चेक प्रदान करने के लिये पहले दिनांक 20-05-2005 को 1,500/-रुपये तथा दिनांक 24-05-2005 को 2,000/-रुपये की मांग किया था। प्रतिपरीक्षण में अभियुक्त की ओर से यह तथ्य लाने का प्रयास किया गया है कि प्रार्थी द्वारा किये गये शिकायत प्रदर्श पी-21 में दिनांक, समय और स्थान का उल्लेख नहीं है, परन्तु शिकायत प्रदर्श पी-34 में स्पष्ट रूप से प्रार्थी द्वारा स्पष्ट रूप से दिनांक 20-05-2005 को 1,500/-रुपये तथा बाद में दिनांक 24-05-2005 को 2,000/- रुपये अभियुक्त द्वारा मांगे जाने का कथन किया है। प्रार्थी ने अपने न्यायालयीन कथन में स्पष्ट रूप से साक्ष्य दिया है कि रकम, चेक के माध्यम से जमा हाने पर भी वह आरोपी के घर इसलिये गया था, क्योंकि चेक को आरोपी ने रख लिया था तथा चेक देने के लिये उससे पैसे की मांग किया था। प्रार्थी का उक्त कथन, प्रतिपरीक्षण में अखण्डित रहा है। इस प्रकार मांग के सम्बंध में प्रकरण में प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध है।
40- अ.सा-5 प्रार्थी राजू राजपूत की ओर से शिकायत करते हुये यह कथन किया गया है कि दिनांक 25-05-2005 का उसने अभियुक्त के मांगे जाने पर 500 के 3 नोट और 100 के 5 नोट प्रदान किया था। उक्त नोटों के नम्बर का उल्लेख, जप्ती पत्र प्रदर्श पी-26 में उल्लेखित किया गया है। प्रार्थी का यह भी कथन है कि अभियुक्त, रिश्वती रकम देते समय पायजामा पहना हुआ था और पायजामे के घुटने के पास का चैन खोलकर उसे चेक दिया था। ट्रेप दल के द्वारा आकर पकड़ने पर अभियुक्त के पायजामे के दाहिने पैर के पॉकेट में से रुपये निकाले गये थे। नोटो का और अभियुक्त का हाथ धुलवाने से घाल का रंग गुलाबी हो गया था।
41- पंचसाक्षी अ.सा-6 अनुज शर्मा तथा अ.सा-4 हेमन्त अग्रवाल का साक्ष्य है कि प्रार्थी के इशारा करने पर वे लाग अभियुक्त के घर पहुंचे थे, जहां अभियुक्त के पायजामे की जेब से रिश्वती रकम निकाली गई थी। यद्यपि पंचसाक्षी अ.सा-4 हेमन्त अग्रवाल ने पायजामे की जेब से रिश्वती रकम निकालना तथा अन्य पंचसाक्षी अनुज शर्मा ने अभियुक्त के पेंट की जेब से नोट बरामद होने का कथन किया है। उक्त विरोधाभास तात्विक नहीं है, क्योंकि साक्षीगण घर में पहने जाने वाले कपड़े को पायजामा, पेंट या बरमूड़ा कहकर सम्बोधित कर सकते हैं। दोनां साक्षियां के द्वारा स्पष्ट रूप से कथन किया गया है कि अभियुक्त से प्राप्त रकम के नोटों के नम्बर का मिलान करने पर एक ही नम्बर का हाना पाया गया था। इन पंचसाक्षियों द्वारा प्रदर्श पी-26 एवं प्रदर्श पी-27 की जप्ती की कार्यवाही की पुष्टि किया गया है। अ.सा-4 राजू राजपूत द्वारा भी प्रदर्श पी-26, प्रदर्श पी-27 की कार्यवाहियों की पुष्टि किया गया है।
42- अभियुक्त का हाथ तथा नोटों का घाल में डुबाने पर घाल का रंग गुलाबी हा गया था। नोटों की जप्ती की कार्यवाही प्रदर्श पी-26 की गई थी और प्रदर्शन घोल की कार्यवाही प्रदर्श पी-27 भी की गई थी। छाया साक्षी अ.सा-3 पवन पाठक, अ.सा-8 अगमराम वर्मा तथा विवेचक अ.सा-9 एस.के.सेन ने भी कथन किया है कि प्रार्थी के इशारा पाने पर वे लाग अभियुक्त के घर गये थे और अभियुक्त का जाकर पकड़े थे। रिश्वती रकम, अभियुक्त का हाथ और उसके पायजामा का सोडियम काबार्नेट के घाल में डुबाने पर घाल का रंग गुलाबी हो गया था। इन साक्षियों ने भी प्रदर्श पी-26 एवं प्रदर्श पी-27 की कार्यवाहियां की पुष्टि किया है। विवेचक ने न्यायालयीन विज्ञान प्रयोगशाला के प्रतिवेदन प्रदर्श पी-37 एवं प्रदर्श पी-38 की कार्यवाहियों का पुष्टि किया है, जिसके अनुसार अभियुक्त के हाथ तैयार घोल में डुबाये जाने पर रंग गुलाबी होने तथा नोटों पर लगाये गये रासायनिक तत्व पाये जाने का निष्कर्ष दिया गया है। इसी प्रकार प्रारम्भिक कार्यवाही पंचनामा प्रदर्श पी-25 की कार्यवाही की भी पुष्टि हुई है। ट्रेप दल द्वारा कार्यवाही करने के पश्चात् घटनास्थल का नजरी नक्शा तैयार करने के लिये साक्षी अ.सा-2 त्रिभुवन सिंह वर्मा, पटवारी का आहूत किया गया, जिसने घटनास्थल का नजरी नक्शा प्रदर्श पी-1 तैयार किया है। घटनास्थल अभियुक्त के मकान का बैठक-कक्ष है।
43- अभियुक्त की ओर से बचाव साक्षी क्रमांक-1 किशोर का साक्ष्य है कि दिनांक 25-05-2005 को वह अभियुक्त के घर उपस्थित था। उस दिन प्रार्थी राजू राजपूत आकर अभियुक्त को बुलाने के लिये कहा, तब उसने देखा कि प्रार्थी खुंटी में टंगे हुये पायजामे में पैसा डाल रहा था। इस प्रकार दिनांक 25-05-2005 को प्रातः 8.00 बजे से 9.00 बजे के मध्य प्रार्थी राजू राजपूत, अभियुक्त एवं ट्रेप दल के सदस्यों की उपस्थिति, इस साक्षी के साक्ष्य से प्रमाणित होती है। प्रार्थी राजू राजपूत के अतिरिक्त अन्य साक्षी अ.सा-4 हेमन्त अरारा, अ.सा-6 अनुज शर्मा, अ.सा-3 पवन पाठक, अ.सा-8 अगमराम वर्मा तथा अ.सा-9 एस.के.सेन का साक्ष्य है कि उन्होने घटनास्थल पर अभियुक्त तथा प्रार्थी के मध्य क्या बातचीत हुई, अथवा क्या लेनदेन हुआ, इसे नहीं देखा था और न ही सुना था। उपरोक्त स्थिति में प्रार्थी राजू राजूपत द्वारा अभियुक्त को रिश्वती रकम प्रदान किये जाने का तथ्य, बाद की परिस्थितियां पर निर्भर हो जाता है। साक्षी अ.सा-4 हेमन्त अरोरा, अ.सा-6 अनुज शर्मा, अ.सा-3 पवन पाठक, अ.सा-8 अगमराम वर्मा तथा अ.सा-9 एस.के.सेन का साक्ष्य है कि उनके 31  द्वारा अभियुक्त के पायजामे की जेब से रिश्वती रकम 500 के 3 नोट व 100 के 5 नोट जप्त किया गया था तथा उसी समय 6,750/-रुपये का चेक क्रमांक-644582 जप्त किया गया था। चेक का जप्ती-पत्र प्रदर्श पी-28 है। उक्त सम्बंध में भी अभियोजन पक्ष अखण्डित रहा है।
44- अभियुक्त द्वारा अपने अभियुक्त कथन की प्रश्न क्रमांक-28 में कथन किया गया है कि ट्रेप के पश्चात् दो व्यक्तियों ने उसका हाथ पकड़कर रखा था, परन्तु वह उनका नाम नहीं जानता है। इसी प्रकार प्रश्न क्रमांक-87 में कथन किया है कि प्रार्थी ने उससे पानी मांगा था और पानी लाने जाने के दौरान प्रार्थी ने खूंटी में टंगे पायजामे में पैसा डाल दिया था। वस्तुतः अभियुक्त द्वारा उससे रिश्वती रकम बरामद हाने के सम्बंध में खण्डन में काई कथन नहीं किया गया है, परन्तु प्रतिरक्षा में यह आधार लिया है कि रिश्वत की मांग का कोई अवसर ही नहीं था, क्योंकि ट्रेप दिनांक 25-05-2005 के पूर्व चेक तैयार किया जाकर पूर्व में प्रार्थी को प्रदान किया जा चुका है, जिसकी पावती उसके द्वारा संलग्न की गई है।
45- अभियुक्त के लाक-सेवक के रूप में पदस्थापना के सम्बंध में अ.सा-2 वासुदेव चौधरी, विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी का साक्ष्य है कि विकासखण्ड कार्यालय, दुर्ग में अभियुक्त के कार्य करने के सम्बंध में आदेश की प्रति प्रदर्श पी-4 है। अभियुक्त शिक्षा विभाग में सहायक ग्रेड-3 के पद पर पदस्थ है, जो कि एक लाक -सेवक का पद है। अभियुक्त द्वारा अभियाजन स्वीकृति प्रदर्श पी-41 को काई चुनौती नहीं दी गई है। शासकीय सेवा में वेतन तथा अन्य भत्तां के अतिरिक्त अन्य कोई वैध पारिश्रमिक शासन की ओर से देय नहीं होता है। अभियुक्त द्वारा दिनांक 25-05-2005 को 2,000/-रुपये किस मद में प्रार्थी से प्राप्त किया गया, इस संबंध में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है, जिससे स्पष्ट है कि उक्त दिनांक का प्रार्थी से उसे प्राप्त 2,000/-रुपये वैध पारिश्रमिक नहीं था, जिसे अभियुक्त वैधानिक रूप से प्रार्थी से प्राप्त करने का अधिकारी नहीं था। ब.सा-1 किशार ने कथन किया है कि प्रार्थी ने खूंटी में टंगे अभियुक्त के पायजामा में पैसा डाला था। उल्लेखनीय है कि इस साक्षी ने अपने साक्ष्य में यह कथन नहीं किया है कि जैसे ही अभियुक्त गणेशलाल पानी लेकर बाहर आया, तो उसने उसे इस घटना के बारे में उसे तुरन्त बताया। इस साक्षी ने यह भी कथन किया है कि प्रार्थी द्वारा कितने का नोट अभियुक्त के पायजामे में डाले गये इसकी जानकारी उसे नहीं है, जिससे इस साक्षी का साक्ष्य विश्वसनीय नहीं रह जाता है। इसी प्रकार घटनास्थल अभियुक्त के घर का बैठक-कक्ष बताया गया है, जो प्रदर्श पी-1 के नजरी नक्शा से प्रमाणित हुआ है। सामान्यतः बैठक-कक्ष में किसी व्यक्ति के द्वारा पायजामा टांगकर नहीं रखा जाता है। उपरोक्त साक्ष्य एवं दस्तावेजां से यह प्रमाणित होता है कि घटना दिनांक 25-05- 2005 का अभियुक्त ने लाक-सेवक के पद पर रहते हुये प्रार्थी राजू राजपूत से अवैध पारिश्रमिक से भिन्न 2,000/-रुपये अपने घर के बैठक-कक्ष में प्राप्त किया। 46- अभियोजन द्वारा अभियुक्त के रिश्वती रकम प्राप्त करने के तथ्य का प्रमाणित करने से अभियुक्त के विरुद्ध धारा-20 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम का विपरीत उपधारणा लागू हो जाता है। अभियुक्त द्वारा उसे प्राप्त पारितोषिक के सम्बंध में अथवा उपधारणा के खण्डन करने में कोई विश्वसनीय साक्ष्य एवं दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया है, परन्तु यह आधार लिया गया है कि प्रार्थी द्वारा जो आरोप लगाया गया है, उसके अनुसार प्रार्थी की ओर से वांछित कार्य पूर्ण हो चुका था, जिससे रिश्वत की रकम मांग किये जाने का काई अवसर उपलब्ध नहीं है। चेक क्रमांक-644582 राशि 6,750/-रुपये दिनांक 17-05-2005 को तैयार किया जा चुका था। इस सम्बंध में उसके द्वारा प्रदर्श पी-10 का पावती प्रस्तुत किया गया है, जिसमें प्रार्थी की ओर से घटना के पूर्व ही चेक प्राप्त करने का पावती दिया गया है। प्रदर्श पी-10 के अवलाकन से स्पष्ट है कि प्रार्थी के हस्ताक्षर के बगल में पावती का लेख किया गया है, जिसमें अन्य व्यक्ति के हस्तलिपि में चेक प्राप्त होना लेख किया जाना स्पष्ट होता है।
47- अभियुक्त की ओर से बचाव साक्षी क्रमांक-2 सुनंदा ढेंगे का साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है, जिसके विशेषज्ञ मत प्रदर्श डी-3 के अनुसार राजू राजपूत का लिप्यान्तरण, प्रार्थी जामातलाशी पंचनामा, प्रारम्भिक पंचनामा, टेपरिकार्डर देने का पंचनामा में प्रार्थी के हस्ताक्षर के सम्बंध में अभिमत दिया गया है कि उक्त दस्तावेजों में प्रार्थी राजू राजपूत के हस्ताक्षर नहीं हैं। प्रदर्श पी-11 में प्रार्थी के हस्ताक्षर के सम्बंध में विशेषज्ञ साक्षी ब.सा-2 सुनंदा ढेंगे का साक्ष्य विश्वसनीय प्रतीत नहीं होता है, क्यांकि उनके द्वारा कथन किया गया है कि क्यू-1 से क्यू-7 एवं एन-1 से एन-21 के हस्ताक्षरों में भिन्नता है तथा प्रदर्श डी-1 के अनुसार ’एन’ श्रृंखला में ’आर’ अक्षर अनियमित और फैला हुआ पाया गया है। विशेषज्ञ साक्षी के साक्ष्य के द्वारा उक्त कार्यवाहियां का सन्देहपूर्ण बनाने का प्रयास किया गया है, किन्तु कई बार हस्ताक्षर में स्वाभाविक अन्तर आने अथवा संक्षिप्त हस्ताक्षर किये जाने पर भी किये गये हस्ताक्षरों में अन्तर आ सकता है।
48- इसके अतिरिक्त उक्त दस्तावेजां की कार्यवाही अन्य स्वतंत्र साक्षियों के साक्ष्य से भी प्रमाणित हुई है, जिससे अभियुक्त का उक्त दस्तावेजों में प्रार्थी के हस्ताक्षर को चुनौती देने से भी कोई लाभ प्राप्त नहीं होता है। प्रार्थी द्वारा प्रकरण में शपथ-पत्र प्रस्तुत कर, पूरक कथन किया गया है कि उसके द्वारा चेक क्रमांक-644582 रुपये 6,750/- का कोई पावती अभियुक्त को नहीं दिया गया है और यदि अभियुक्त की ओर से कोई पावती प्रस्तुत किया जाता है, तो वह फर्जी होगा। प्रकरण के तथ्यों में यह स्पष्ट है कि चेक क्रमांक-644582 6,750/-रुपये दिनांक 17-05-2005 को तैयार किया जा चुका था, किन्तु प्रार्थी ने शिकायत एवं न्यायालयीन कथन में यह साक्ष्य दिया है कि अभियुक्त चेक देने के लिये रिश्वत की मांग कर रहा था। यद्यपि एकाउण्टपेयी चेक ब्राईट स्कूल के नाम से जारी किया गया था तथा अभियुक्त उक्त चेक का कोई व्यक्तिगत लाभ प्राप्त करने में सक्षम नहीं था।
49- अभियुक्त के अनुसार प्रार्थी द्वारा दिये गये तथाकथित चेक की पावती प्रदर्श पी-10 को विश्वसनीय नहीं पाया गया है तथा न्यायालय द्वारा प्रदर्श पी-21 और प्रदर्श पी-34 में प्रार्थी के लेखन के अवलोकन करने से निष्कर्ष प्राप्त होता है कि प्रदर्श पी-10 की पावती के बगल में लिखी गई लिखावट प्रार्थी की लिखावट नहीं है। यदि तर्क के लिये यह मान भी लिया जावे कि प्रार्थी द्वारा चेक प्राप्त करने की पावती दी गई है, इसलिये रिश्वत की मांग करने का कोई अवसर उपलब्ध नहीं था। उल्लेखनीय है कि प्रार्थी ने अपने न्यायालयीन कथन तथा शिकायत प्रदर्श पी-21 एवं प्रदर्श पी-34 में स्पष्ट कथन किया है कि अभियुक्त ने उसे चेक देने के लिये रिश्वत की मांग किया है। यह भी कथन किया है कि अभियुक्त, चेक को अपने पास रखकर उससे रिश्वत की रकम की मांग कर रहा था। घटना दिनांक को अभियुक्त द्वारा दिया गया चेक प्रार्थी से जप्त किया गया है। अ.सा-4 हेमन्त अग्रवाल एव ं अ.सा-6 अनुज शर्मा ने कथन किया है कि ट्रेप के लिये रिश्वत की राशि रखते समय प्रार्थी की जामतलाशी लेते हुये पंचनामा प्रदर्श पी-23 तैयार किया गया था। उक्त जामातलाशी में प्रार्थी की जेब में पूर्व से चेक क्रमांक-644582, रुपये 6,750/-रखे होने का काई उल्लेख नहीं है। अभियुक्त की ओर से साक्षियों को प्रदर्श पी-23 की कार्यवाही के खण्डन के सम्बंध में सुझाव नहीं दिये गये हैं। यदि कार्यालयीन प्रक्रिया के अनुसार अभियुक्त द्वारा प्रार्थी से हस्ताक्षर कराते हुये चेक को अपने पास रखा गया होगा, तो भी स्पष्ट रूप से यह मांग का अवसर बनाता है कि अभियुक्त ने रिश्वती रकम प्राप्त होने के पश्चात् ही चेक देने के लिये चेक को अपने आधिपत्य में रखा था। इस प्रकार विवादित पावती के विवाद में कोई निष्कर्ष न देते हुये यह न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि दिनांक 17-05-2005 को चेक तैयार किये जाने के पश्चात् भी चेक को अभियुक्त द्वारा अपने पास रखे जाने पर उसके द्वारा रिश्वत की रकम की मांग का अवसर उपलब्ध था।
50- अभियुक्त के द्वारा यह भी आधार लिया गया है कि अभियुक्त ने दिनांक 19-05-2005 को दिनांक 20-05-2005 से मुख्यालय से बाहर जाकर गो ंदिया, महाराष्ट्र में साला-साली के विवाह में सम्मिलित होने का आवेदन दिया था। दिनांक 20-05-2005 का अभियुक्त आकस्मिक अवकाश पर था तथा दिनांक 21-05-2005 से 23-05-2005 तक शासकीय अवकाश था। इस प्रकार वह प्रार्थी द्वारा रिश्वत की मांग करने के लिये उक्त दिनांक को सक्षम नहीं था। अभियुक्त की ओर से ऐसा कोई साक्ष्य एवं दस्तावेज भी प्रस्तुत नहींं किया गया है कि वह उपराक्त उल्लेखित अवधि में दुर्ग मुख्यालय से बाहर था। अनेक बार शासकीय सेवक अनुमति प्राप्त करने के पश्चात् भी मुख्यालय से बाहर नहीं जा पाते हैं। इस प्रकार अभियुक्त का यह आधार भी स्वीकार करने याग्य नहीं है।
51- अभियुक्त की ओर से यह आधार प्रस्तुत किया गया है कि अभियुक्त द्व ारा रिश्वती रकम का मांग नहीं किया गया है। प्रार्थी तथा विवेचक अ.सा-9 एस.केसेन का साक्ष्य है कि ट्रेप पूर्व की बातचीत रिकार्ड नहीं हो पायी थी, किन्तु ट्रेप पश्चात् प्रार्थी एवं अभियुक्त के मध्य हुये बातचीत का लिप्यान्तरण प्रदर्श पी-30 किया गया है, जिसमें अभियुक्त द्वारा प्रार्थी से यह पूछे जाने पर कि दो हजार है, जिस पर सहमति दी गई है। अ.सा-5 प्रार्थी राजू राजपूत ने कथन किया है कि अभियुक्त ने पूर्व में 3,000/-रुपये एवं 1,500/-रुपये का चेक प्रदान करने के लिये उससे 2,000/- रुपये प्राप्त किया था तथा पुनः 6,750/-रुपये प्रदान करने के लिये 2,000/-रुपये की मांग किया था। प्रार्थी की ओर से प्रस्तुत लिखित शिकायत प्रदर्श पी-21 तथा पूर्व का शिकायत प्रदर्श पी-34 के अनुसार अभियुक्त के द्वारा उससे 2,000/-रुपये की राशि की मांग की गई थी। यद्यपि उक्त शिकायत में पूर्व में 1,500/-रुपये तथा बाद में 2,000/-रुपये मांगे जाने का उल्लेख है। उक्त तथ्य के बाद भी अभियुक्त द्वारा प्रार्थी से राशि की मांग किये जाने का तथ्य प्रमाणित होता है। इसके अतिरिक्त प्रार्थी ने अपने साक्ष्य में स्पष्ट रूप से चेक, अभियुक्त द्वारा अपने आधिपत्य में रखकर रिश्वत की मांग किये जाने का कथन किया है।
52- अभियुक्त की ओर से यह भी आधार लिया गया है कि प्रार्थी स्वयं अपने संस्था में वित्तीय अनियमितता करते रहा है तथा अपने मकान मालिक एवं अन्य व्यक्तियां से व्यर्थ विवाद करते रहा है एवं प्राप्त राशि का वितरण नहीं करता है तथा शासन के दो विभागां से छात्रवृत्ति प्राप्त करता है, इसलिये उसने स्वयं का बचाने के लिये उसे झूठा फंसाया है। उल्लेखनीय है कि प्रार्थी का चरित्र एवं व्यवहार इस न्यायालय के विचार-विमर्श का विषय नहीं है। इस प्रकरण में केवल अभियुक्त पर आरोपित अपराध के परिप्रेक्ष्य में साक्ष्य एवं दस्तावेजों  का विश्लेषण किया जाना है। अभियुक्त द्वारा अपने अभियुक्त कथन में कथन किया गया है कि प्रार्थी राजू राजूपत द्वारा उसे झूठे तरीके से फंसाया गया है। अभियुक्त की ओर से प्रार्थी राजू राजपूत और उसके मध्य ऐसा कोई रंजिश होने का कथन नहीं किया गया है कि उसके आधार पर प्रार्थी द्वारा उसे झूठा फंसाया गया है। वस्तुतः अभियुक्त की ओर से ऐसा कोई विश्वसनीय साक्ष्य एवं दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया है कि प्रार्थी द्व ारा उसे किस कारण से इस प्रकरण में झूठा फंसाया गया है।
53- अभियुक्त पर आराप है कि उसने मूक बधिर बच्चां को प्राप्त होने वाली छात्रवृत्ति का चेक प्रदान करने के लिये प्रार्थी से 2,000/-रुपये की रिश्वत की मांग किया। अ.सा-2 वासुदेव चौधरी के साक्ष्य के अनुसार उसके कार्यालय से छात्रवृत्ति सम्बंधी चेक संस्थाओं को जारी किये जाते थे तथा निर्धारित समयावधि में चेक पहुंचाने के कारण सम्बंधित संस्था को प्यून के द्वारा चेक भिजवाया जाता था। अभियुक्त उस कार्यालय में संलग्न था तथा छात्रवृत्ति सम्बंधी चेक वितरण का दायित्व उस पर होने के तथ्य का उसकी ओर से विवादित नहीं किया गया है। असा-2 वासुदेव चौधरी के द्वारा ब्राईट मंद बुद्धि स्कूल के नाम पर पुनः चेक क्रमांक 644598, 6,750/-रुपये जारी किया गया, जिसकी पावती प्रदर्श पी-18 प्रस्तुत किया गया है। प्रदर्श पी-18 एवं प्रदर्श पी-10 की पावती में स्पष्ट अन्तर दर्शित है। मूक बधिर बच्चों के लिये प्राप्त हाने वाली छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिये अभियुक्त द्वारा रिश्वत की मांग की गई, जो नैतिक रूप से गम्भीर अपराध है।
54- अभियुक्त, उसकी ओर स प्रस्तुत न्याय दृष्टान्त व्ही.सेजप्पा विरुद्ध राज्य, 2016 क्रि.लॉ.ज. 2589, क्रिमिनल अपील नंबर 342/92 रामकुमार वर्मा विरुद्ध मध्यप्रदेश राज्य, निर्णय दिनांक 24-08-2009 (2009(4) क्राईम्स-244 सी.जी.), पंडरी राव सावलकर विरुद्ध छ0ग0राज्य, 2015( IV) एमपीजेआर (सी.जी.)-5, जुगलकिशार विरुद्ध मध्यप्रदेश राज्य, 2007 क्रि.लॉ.रि. (एम.पी.) 284, क्रिमिनल अपील नंबर- 2325/2006, कु0अर्चना नागर विरुद्ध मध्यप्रदेश राज्य, निर्णय दिनांक 07-04-2016 (2016(4) एम.पी.जे.आर. 22), अशोक कुमार चंद्राकर विरुद्ध छ0ग0राज्य, LAWS  39 (CHH)-2011-1-15/2011(2) C.G.L.J. 23, पंजाब राज्य विरुद्ध साहन सिंह, 2009(2) सी.सी.एस.सी.-929 (एस.सी.) में प्रतिपादित सिद्धान्तों का लाभ, इस प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियां में प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है, क्योंकि इस प्रकरण में अभियुक्त का बचाव अधिक सम्भावित नहीं होना पाया गया है। साक्ष्य में विसंगति होने पर भी अभियोजन पक्ष सारभूत रूप से अखण्डित रहा है। विवादित चेक अभियुक्त द्वारा स्वयं के पास रखे जाने से उसके पास रिश्वत का मांग का अवसर उपलब्ध था। रिश्वत मांगे जाने के सम्बंध में प्रकरण में प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध है, जिससे धारा-65(बी) भारतीय साक्ष्य अधिनियम का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत नहीं किये जाने से अभियोजन पक्ष का कोई हानि नहीं हुई है।
55- इसके विपरीत, माननीय छ0ग0उच्च न्यायालय द्वारा न्याय दृष्टान्त गयाप्रसाद तेलगाम विरुद्ध मध्यप्रदेश राज्य (वर्तमान में छत्तीसगढ़ राज्य), 2013 क्रिलॉ.ज. 3831 में निर्धारित किया गया है कि रिश्वती रकम अभियुक्त से बरामद होने पर उसकी ओर से उचित स्पष्टीकरण नहीं आने पर न्यायालय यह उपधारणा करेगी कि उसके द्वारा अवैध पारिश्रमिक लोक कर्तव्य के दौरान प्राप्त किया गया, जैसा कि कंडिका-23 में उल्लेखित है :- 23. In the instant case, currency notes of Rs. 200/- were recovered from the appellant and the numbers thereof were compared with the numbers mentioned in the Pre-Trap Panchanama (Ex. P-2), which were found to be similar. The appellant did not offer any proper and plausible explanation for recovery of money from him. It is proved that tainted money was recovered from the appellant, therefore, in the facts and circumstances of the case, a presumption can be drawn against him that he demanded and accepted illegal gratification. In such a situation, this Court is under a legal compulsion to draw a legal presumption that such gratification was accepted as a reward for doing the public duty.   माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मुख्तयार सिंह विरुद्ध पंजाब राज्य,  Criminal Appeal No. 618 of 2012  निर्णय दिनांक 05.07.2016 में निर्धारित किया गया है कि भ्रष्टाचार के आरोप में दोषसिद्धि के लिये रिश्वत की मांग तथा रिश्वत के रूप में स्वेच्छया रिश्वत प्राप्त करने के तथ्य को प्रमाणित करना होगा। अभियुक्त का, घटना असम्भावित होने का प्रतिरक्षा स्वीकार करने योग्य नहीं है, जैसा कि कंडिका-18 एवं 19 में लेख है :-
18. It is a settled principle of law laid down by this Court in a number of decisions that once the demand and voluntary acceptance of illegal gratification knowing it to be the bribe are proved by evidence then conviction must follow under Section 7 of the PC Act against the accused.
Indeed, these twin requirements are sine qua non for proving the offence under Section 7 of the PC Act. In the light of our own re-appraisal of the evidence and keeping in view the abovesaid principle in mind, we have also come to a conclusion that twin requirements of demand and acceptance of illegal gratification were proved in the case on hand on the basis of evidence adduced by the prosecution against the appellant and hence the appellant was rightly convicted and sentenced for the offences punishable under Section 7 read with Section 13(1)(d) and Section 13(2) of the Act. 
Conclusion:
19. On the face of the specific and positive evidence which cannot be said to be inherently improbable, the plea of the appellant-accused that the prosecution case is fit to be rejected on the ground of improbability does not appeal to us. The courts below, in our opinion, have rightly rejected
the defence evidence. Therefore, in our opinion, the prosecution in this case has proved the guilt of the appellant-accused beyond all reasonable doubt. 

56- धारा-13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अनुसार लोक-सेवक, आपराधिक अवचार का अपराध करने वाला तब कहा जाता है, जब वह अपने लिये धारा-7 में उपबंधित वैध पारिश्रमिक से भिन्न पारितोषण प्राप्त करता है, या प्राप्त करने के लिये सहमत होता है। धारा-7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अनुसार वैध पारिश्रमिक वह पारिश्रमिक है, जिसकी मांग कोई लाक-सेवक विधिपूर्ण रूप से कर सकता है, अथवा वह समस्त पारिश्रमिक है, जिसे प्राप्त करने के लिये वह नियाक्ता सरकार अथवा संगठन द्वारा लोक-सेवक प्राप्त कर सकता है।
57- अभियुक्त द्वारा चेक क्रमांक-644582, राशि 6,750/-रुपये, दिनांक 17-05-2005 तैयार कर प्रार्थी को प्रदान नहीं किया गया और उक्त चेक का प्रदान करने के लिये प्रार्थी से 2,000/-रुपये रिश्वत की मांग किया। इस प्रकार चेक तैयार करने के पश्चात् भी स्वयं के पास रखे जाने तथा दिनांक 25-05-2005 का प्रदान किये जाने से यह स्पष्ट होता है कि अभियुक्त का भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के तहत् आपराधिक अवचार का अपराध कारित करने का आपराधिक आशय था। विवेचना एवं विचारण की कार्यवाही में कुछ विसंगतियां दर्शित हुई हैं, किन्तु उक्त विसंगतियों के पश्चात् भी अभियाजन पक्ष मूलतः अखण्डित रहा है। इस प्रकार अभियोजन द्वारा आरोपित अपराध को सन्देह से परे प्रमाणित किया गया है। अतएव विचारणीय बिंदु क्रमांक-2 और 3 का निष्कर्ष ’’प्रमाणित’’ में दिया जाता है, अतः अभियुक्त को आरोपित अपराध में दाष-सिद्ध पाया जाता है। अभियुक्त और शासन को दण्ड के प्रश्न पर सुने जाने के लिये निर्णय लिखना स्थगित किया गया।

सही/- (सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू) 
विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) दुर्ग (छ0ग0) 

58- दण्ड के प्रश्न पर आरोपी और उसके अधिवक्ता का निवेदन है कि यह उसका प्रथम अपराध है, पूर्व से कोई दोष-सिद्धि नहीं है तथा उसका परिवार है और वह अपने परिवार का एकमात्र आय अर्जित करने वाला व्यक्ति है, अतः उसे न्यूनतम दण्ड से दण्डित किया जावे।
59- शासन की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक का निवेदन है कि अपराध की प्रकृति को देखते हुये अभियुक्त का कठोर दण्ड से दण्डित किया जावे।
60- उभय-पक्ष के निवेदन पर विचार किया गया। अभियुक्त को दिनांक 25-05-2005 का किये गये अपराध के परिप्रेक्ष्य में दण्डित किया जाना है। धारा-7 एवं धारा-13 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में उल्लेखित दण्डादेश में वर्ष 2014 में संशोधन हुआ है, जिसमें धारा-7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में न्यूनतम अवधि 06 माह के स्थान पर 03 वर्ष तथा अधिकतम अवधि 05 वर्ष के स्थान पर 07 वर्ष प्रतिस्थापित किया गया है एवं कारावास के दण्ड के साथ ही अर्थदण्ड का भी प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार धारा-13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में न्यूनतम अवधि 01 वर्ष के स्थान पर 04 वर्ष तथा अधिकतम अवधि 07 वर्ष के स्थान पर 10 वर्ष प्रतिस्थापित किया गया है। इस धारा में भी कारावास के दण्ड के साथ अर्थदण्ड का भी प्रावधान किया गया है। अभियुक्त, स्थापित सिद्धान्तों के अनुसार घटना दिनांक 25-05-2005 को अभियुक्त द्वारा अपराध कारित करने की स्थिति को देखते हुये धारा-7 एवं धारा-13 भ्रष्टाचार अधिनियम में संशोधन पूर्व उल्लेखित दण्डादेश के अंतर्गत दण्डित किये जाने का अधिकारी है।
61- अतः उभय-पक्ष के निवेदन पर विचार करते हुये धारा-7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अपराध में अभियुक्त का एक वर्ष के कठोर कारावास और 1,000/-(एक हजार) रुपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया जाता है। अर्थदण्ड नहीं पटाने की दशा में एक माह का कठोर कारावास की सजा पृथक् से भुगताया जावे। अभियुक्त को धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत् दो वर्ष के कठोर कारावास और 2,000/-(दो हजार) रुपये के अर्थदण्ड से दण्डित किया जाता है एवं अर्थदण्ड नहीं पटाने की दशा में दो माह का कठोर कारावास की सजा पृथक् से भुगतायी जावे। अभियुक्त को दी गई दोनां सश्रम कारावास की सजाएं साथ-साथ भुगतायी जावे। अभियुक्त के अभिरक्षा की अवधि का पृथक् से धारा-428 दण्ड प्रक्रिया संहिता का प्रमाण-पत्र बनाया जावे।
62- प्रकरण में जप्त रिश्वती रकम 500-500 के 03 नोट तथा 100-100 के 05 नोट हैं। भारत सरकार द्वारा 500 के पुराने नोटों का प्रचलन बंद कर दिया गया है, जिसके कारण जप्त 500/-रुपये के 3 नोट मूल्यहीन हो गये हैं, जिसे रिजर्व बैंक में जमा किया जावे तथा शेष 100-100 के 5 नोट प्रार्थी राजू राजपूत को प्रदान किया जावे। अभियुक्त द्वारा अर्थदण्ड की राशि 3,000/-रुपये जमा करने पर उसमें से 1,500/-रुपये प्रार्थी राजू राजपूत को क्षतिपूर्ति के रूप में प्रदान किया जावे। अन्य जप्तशुदा सम्पत्ति प्रदर्शन घाल की सीलबंद शीशी, अभियुक्त गणेशलाल मेश्राम का जप्त पायजामा, अन्य घोलों की 06 शीशियां मूल्यहीन होने से नष्ट किया जावे। सम्बंधित संस्था एवं विकासखण्ड शिक्षा अधिकारी के कार्यालय के जप्त दस्तावेज 44  वापस किया जावे। उपराक्त आदेश का क्रियान्वयन अपील अवधि पश्चात् लागू किया जावे, अपील होने की स्थिति में माननीय अपीलीय न्यायालय के आदेशानुसार सम्पत्तियों का निराकरण किया जावे।
दुर्ग, दिनांक : 28-01-2017
सही/-
(सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू)
विशेष न्यायाधीश
(भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) दुर्ग (छ0ग0)

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