Monday 31 October 2016

छत्तीसगढ़ लोक सेवा गारंटी अधिनियम, 2011

छ.ग. लोक सेवा गारंटी अधिनियम वर्ष 2011 से छत्तीसगढ़ राज्य में लागू किया गया है। जिसे छ.ग.शासन के कार्यों के संबंध में किन्ही सिविल सेवाओं अथवा पदों पर नियुक्त व्यक्तियों, स्थानीय निकायों, लोक प्राधिकारियों या अभिकरणों जो शासन के स्वामित्व, नियंत्रण में हैं या सारवान् रूप से वित्तीय सहायता प्राप्त हैं, उन पर लागू किया गया है।
स्थानीय निकाय से आशय है कि कोई प्राधिकारी, नगर पालिका, पंचायत या कोई अन्य निकाय जिसे किसी भी नाम से जाना जाता हो, जिसे छ.ग. राज्य के भीतर लोक सेवा प्रदान किये जाने के लिए निहित किया गया है या जो उसके स्थानीय सेवा में ऐसी सेवाओं का नियंत्रण, प्रबंधन या विनियमन करता हो।
नियत समय में लोक सेवा प्राप्त करने का अधिकार
प्रत्येक व्यक्ति को इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर यथा अधिसूचित नियत समय के भीतर छ0ग0 राज्य में लोक सेवा प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है। नियत समय में लोक सेवा प्रदाय करने का दायित्व, परिव्यय का अधिरोपन, वसूली एवं भुगतान  
1. प्रत्येक विभाग इस अधिनियम के प्रारंभ होने के तिथि से लोक सेवा प्रदान करने के लिए उत्तरदायी व्यक्ति के पद को नामित किया जायेगा (पदाविहीत) तथा ऐसे तथ्य को सर्वसाधारण की जानकारी के लिए विभाग के किसी सहज दृश्य स्थान पर प्रदर्शित किया जायेगा।
2. उत्तरदायी व्यक्ति आवेदन प्राप्त होने पर आवेदक को एक अभिस्वीकृति देगा। आवेदक अपने आवेदन के संबंध में क्या कार्यवाही हुई, जानने का हकदार होगा।
3. लोक सेवा प्रदाय करने वाला उत्तरदायी प्रत्येक व्यक्ति निश्चित समय के भीतर सेवा प्रदान करने में असफल रहता है तो विलंब की अवधि के लिए 100/-रू. की दर से प्रत्येक दिन के लिए अधिकतम 1000/-रू. परिव्यय भुगतान करने का दायी होगा। यदि उत्तरदायी व्यक्ति आवेदक को सेवा प्रदान करने में असफल रहा तो उक्त राशि आवेदक को दिलाये जाने हेतु उत्तरदायी व्यक्ति से वसूली योग्य होगा।
सक्षम अधिकारी की नियुक्ति
प्रत्येक विभाग इस अधिनियम के प्रयोजन के लिए एक या एक से अधिक व्यक्तियों को सक्षम अधिकारी के रूप में अधिसूचित करेगा जो लोक सेवा प्रदाय करने के लिए उत्तरदायी व्यक्ति की श्रेणी से निम्न का न हो।
लोक सेवा प्राप्त करने हेतु असत्य जानकारी प्रस्तुत करने पर दायित्व
कोई व्यक्ति लोक सेवा प्राप्त करने के लिए ऐसा आवेदन नहीं देगा जिसमें ऐसा तथ्य या जानकारी अंतर्विष्ट हो जिसे वह जानता है या विश्वास करने का कारण है कि वह असत्य है तथा वह जो ऐसा तथ्य या जानकारी प्रस्तुत करता है, उसम समय प्रवृत्त विधि के अधीन आपराधिक कार्यवाही के लिए दायी हो सकेगा।
अपील का अधिकार
कोई व्यक्ति जो इस अधिनियम के अधीन सक्षम अधिकारी द्वारा पारित आदेश से व्यथित हो आदेश की प्राप्ति से 30 दिवस के भीतर अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील प्रस्तुत कर सकता है।
अपीलीय अधिकारी अपील संस्थित होने के दिनांक से 45 दिवस की अधिकतम अवधि के भीतर अपील निराकृत करेगा, अपीलीय प्राधिकारी का आदेश अंतिम एवं बाध्यकारी होगा।

झगड़ों को कैसे रोकें

(दण्ड प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत प्रतिबंधात्मक उपाय)
झगड़ों को कैसे रोकें ?
कभी-कभी छोटी-सी बात के लिए लोग आपस में झगड़ने लगते हैं और यह झगड़ा विकराल रूप धारण कर लेता है, जो अप्रिय घटना को निमंत्रित कर लेता है। इसलिए चिंगारी भीषण आग का रूप न ले, उसे वहीं दबा देना लाभकारी होता है। अतः झगड़ों को रोकने दंड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की विभिन्न धाराओं की व्यवस्था की गई है। जैसे जब किसी व्यक्ति के द्वारा लोक शांति भंग करने का कार्य किया जाता है अथवा इसकी संभावना व्यक्त की जाती है तो उसके विरूद्ध धारा 107/116 के अंतर्गत कार्यपालक मजिस्ट्रेट के सामने कार्यवाही कर उसे शांति कायम करने हेतु एवं सदाचार बनाए रखने के लिए जमानत सहित वचनबद्ध किया जा सकता है।
यदि किसी व्यक्ति के द्वारा किसी स्थान या मार्ग में बाधा उत्पन्न किया जाता है, जिसके गंभीर परिणाम होने की संभावना व्यक्त की जाती है तो ऐसी स्थिति में सी.आर.पी.सी. की धारा 133 एवं 144 के तहत यह व्यवस्था की गई है, जिससे झगड़ा शुरू होने से पहले रोका जा सके एवं न्यूसेंस को हटाने की व्यवस्था की जाती है। इसी प्रकार जमीन जायदाद के जबरन कब्जे को लेकर उत्पन्न विवाद को शांत करने के लिए सी.आर.पी.सी. की धारा 145 का प्रावधान है। झगड़ों को रोकने के लिए सी.आर.पी.सी. की मुख्य धाराएं 107/116, 133, 144 एवं 145 है।
दंड प्रक्रिया संहिता (सी.आर.पी.सी.) की धारा 107/116 धारा 107:- यदि किसी व्यक्ति के विरूद्ध परिशांति भंग करने की संभावना व्यक्त करते हुए कार्यपालक मजिस्ट्रेट को सूचना दी जाती है तो सी.आर.पी.सी. की धारा 107 के तहत कार्यवाही की जाती हैं
कार्यपालक
यदि किसी व्यक्ति के विरूद्ध परिशांति भंग करने की संभावना व्यक्त करते हुए कार्यपालक मजिस्ट्रेट को सूचना दी जाती है तो सी.आर.पी.सी. की धारा 107 के तहत कार्यवाही की जाती है।
कार्यपालक मजिस्ट्रेट परिशांति भंग करने वाले व्यक्ति के विरूद्ध पर्याप्त आधार मिलने पर उसे नोटिस भेजकर अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए कहता है कि उसे शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए क्यों नहीं उपबंधित किया जाए। इस धारा के तहत कार्यवाही कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष तब तक चलती है, जब तक शांति व्यवस्था बहाल न हो जाए। यदि व्यक्ति झगड़ालू चरित्र का है और उसके व्यवहार से शांति भंग होने की संभावना है तो कार्यपालक मजिस्ट्रेट के द्वारा उसे जमानत सहित बंधपत्र भरवाकर एक वर्ष की अवधि तक अपने व्यवहार को ठीक रखकर शांति भंग नहीं करने के लिए पाबंद किया जाता है।
धारा 107 के अंतर्गत प्रार्थना पत्र दाखिल करना -
शांति भंग करने वाले व्यक्ति के विरूद्ध सी.आर.पी.सी. की धारा 107 के तहत दाखिल किया जाता है। प्रार्थना पत्र में लोक शांति भंग करने वाले व्यक्ति के झगड़ालू चरित्र होने का प्रमाण भी देना होता है, जिसके आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा उक्त व्यक्ति को नोटिस जारी किया जाता है, वह कारण पेश करे कि उन्हें शांति भंग करने की संभावना के आरोप में क्यों न उपबंधित किया जाए। 
जब एस.डी.एम. को धारा 107 के अंतर्गत कार्यवाही करने की गुहार करते हुए प्रार्थना पत्र प्राप्त होता है तो मजिस्ट्रेट धारा 111 के अंतर्गत कार्यवाही शुरू करते हुए उस व्यक्ति को जिसके विरूद्ध आरोप दाखिल किया गया है, कारण पेश करने हेतु नोटिस जारी करता है। धारा-111 के अंतर्गत शांति भंग करने वाले व्यक्ति को कारण पेश करने के लिए धारा-114 के अंतर्गत सम्मन या वारंट के माध्यम से भी नोटिस तामिल किया जा सकता है। वारंट जारी करने पर उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया जाता है। तब इसकी जांच धारा 116 के अंतर्गत जांचः धारा-107 की कार्यवाही शुरू करते हुए धारा-116 के अंतर्गत शांतिभंग करने संबंधी साक्ष्य लेखबद्ध किया जाता है तथा इसकी कार्यवाही छः माह के अंदर पूरी करने का प्रयास किया जाता
है, क्योंकि छः महीने पूरे हो जाने पर यह कार्यवाही स्वतः समाप्त हो जाती है।
धारा-107 के तहत जमानत दाखिल करना
धारा-116 के अंतर्गत जांच पूरी होने के बाद उक्त शांति भंग करने वाले व्यक्ति को शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए धारा-117 के अंतर्गत आदेश दिया जाता है कि वह बंध पत्र एवं जमानत के साथ एक वर्ष तक शांति बनाए रखे।
धारा-107/117 की कार्यवाही का एक दृष्टांत:-
यदि कोई व्यक्ति ’क’ अपने पड़ोसी ’ख’ की शांति भंग करता है तथा समझाने पर भी नहीं मानता है तो ’क’ विरूद्ध परिशांति भंग करने के एवं शांति कायम करने की गुहार करते हुए ’ख’ एस.डी.एम. के न्यायालय में प्रार्थना पत्र दाखिल करता है। जिसे धारा 107 की कार्यवाही करने हेतु ’क’ के विरूद्ध पर्याप्त सबूत भी उपलब्ध कराया जाता है। प्रार्थना पत्र का अवलोकन कर उससे संतुष्ट होकर एस.डी.एम. धारा-111 के तहत ’ख’ को नोटिस जारी करता है। यदि नोटिस की तामिल सम्मन या गिरफ्तारी शांति कायम करने के हित में हो, गिरफ्तारी वारंट किया जा सकता है अन्यथा नहीं। इसके बाद धारा 116 के तहत कार्यवाही शुरू की जाती है। कार्यवाही पूरी होने पर यदि ’ख’ के विरूद्ध शांति भंग करने की संभावना सही साबित होती है तो धारा-117 सी.आर.पीसी. के अंतर्गत एक वर्ष या एक निश्चित अवधि के लिए ’ख’ से शांति कायम रखने हेतु बंध पत्र जमानत ली जाती है।
चोरी जैसे अपराध को रोकने संदेहास्पद व्यक्ति पर जमानत द्वारा पाबंदी रखना -
जिस व्यक्ति पर यह आशंका हो कि वह चोरी जैसे अपराध को अंजाम दे सकता है, उस पर पाबंदी लगाने के लिए धारा-109 और नंबरी बदमाशों के लिए धारा-110 के तहत उनके विरूद्ध पुलिस द्वारा रिपोर्ट पेश की जाती है, जिस पर एस.डी.एम. द्वारा धारा-107 की कार्यवाही की तरह पूरी कार्यवाही के बाद धारा-11 के तहत जमानत दाखिल करने का आदेश जारी किया जाता हैं
सार्वजनिक मार्ग में रूकावट, सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा एवं दूसरे प्रकार के लोक न्यूसेंस का निवारण:-
जब कोई व्यक्ति सार्वजनिक मार्ग में रूकावट डालता है अथवा सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरा पहुंचाता है या दूसरे प्रकार का लोक न्यूसेंस पैदा करता है तो इसके निवारण के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-133 की व्यवस्था की गई है। इस धारा के तहत न्यूसेंस हटाने के सशर्त आदेश इस प्रकार हैंः-
(क) किसी सार्वजनिक स्थान या मार्ग, नदी या जलखंड से जो जनता द्वारा उपयोग में लायी जा सकती है, कोई विधि विरूद्ध बाधा या न्यूसेंस हटाया जाना चाहिए।
(ख) किसी व्यापार या उपजीविका को चलाना या माल या व्यापारिक वस्तु को रखना समाज के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। उसे रखना निषिद्ध किया जाना चाहिए।
(ग) किसी भवन निर्माण या किसी विस्फोटक का व्ययन जिससे खतरा पैदा हो सके तो उसे बंद कर दिया जाना चाहिए।
(घ) कोई मकान या संरचना या वृक्ष इस दशा में हो कि उसके गिरने से पड़ोसी को क्षति की संभावना हो तो उसकी मरम्मत या उसे हटाने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
(ड.) किसी मार्ग या सार्वजनिक स्थान के पास स्थित तालाब, कुएं या खड्डे जिससे जनता को खतरा होने की संभावना हो, उसमें बाड़ लगाना चाहिए, ताकि खतरे का निवारण हो।
(च) किसी भयानक जंतु से लोक स्वास्थ्य को खतरा हो तो उसे नष्ट या व्ययन किया जाना चाहिए। उपरोक्त दशाओं से संबंधित व्यक्ति से सशर्त आदेश द्वारा खतरे के निवारण की अपेक्षा की जाती है। यदि संबंधित व्यक्ति को किसी आदेश को मानने में कोई आपत्ति है तो वह कार्यपालक मजिस्ट्रेट के समक्ष उपस्थित होकर आपत्ति के कारण उपबंधित प्रकार से उपस्थित करें।
नोट - सार्वजनिक स्थान के अंतर्गत राज्य की संपत्ति, पड़ाव के मैदान और स्वच्छता या आमोद-प्रमोद के लिए खाली छोड़े गए मैदान भी हैं।
लोक न्यूसेंस हटाने की प्रक्रिया -
किसी व्यक्ति के द्वारा सार्वजनिक रास्ते या स्थान में रूकावट डाला जाता है अथवा लोक स्वास्थ्य को खतरा पैदा किया जाता है अथवा अन्य प्रकार का लोक न्यूसेंस पैदा किया जाता है तो उसके विरूद्ध धारा-133 के तहत एस0डी0एम0 के न्यायालय में प्रार्थना पत्र के द्वारा किया जाता है जिस पर न्यायालय द्वारा उक्त न्यूसेंस को हटाने का आदेश दिया जाता है। यदि संबंधित व्यक्ति को आदेश मानने से आपत्ति है तो वह अपनी आपत्ति का कारण न्यायालय में उपस्थित होकर दिखाता है। ऐसा नहीं करने पर भा.दं.वि. की धारा धारा 188 के अंतर्गत न्यायालय के आदेश की अवहेलना के अपराध के लिए व्यक्ति के लिए विरूद्ध मुकदमा चलाया जा सकता है। जब उक्त व्यक्ति न्यायालय में उपस्थित होकर पब्लिक रास्ता होने से इंकार करता है तो न्यायालय द्वारा
रूकावट हटाने के लिए धारा-136 के तहत आदेश जारी किया जाता है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा-144 के अंतर्गत रूकावट हटाने की व्यवस्था -
दं.प्र.सं. की धारा-144 के तहत अविलम्ब रूकावट हटाने के आदेश जारी करने की व्यवस्था है।
1- इस धारा के तहत उन मामलों में रूकावट तुरंत हटाने का आदेश जारी किया जाता है, जिनमें जिला मजिस्ट्रेट या उपखंड मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार द्वारा नियुक्त कार्यपालक मजिस्ट्रेट की राय में कार्यवाही करने हेतु पर्याप्त आधार हो तथा रूकावट तुरंत हटाना वांछनीय हो।
2- इस धारा के तहत आपात की दशाओं में या उन दशाओं में जब परिस्थितियों में ऐसी है कि उस व्यक्ति पर जिसके विरूद्ध आदेश निर्दिष्ट है, सूचना की तामील सम्यक् समय में करने की गुंजाइश न हो, एकपक्षीय रूप में आदेश पारित किया जा सकता है।
3- इस धारा के तहत किसी विशिष्ट व्यक्ति को या किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को अथवा आम जनता को, जब वे किसी विशेष स्थान क्षेत्र में जाते हैं, या जाएं निषिद्ध किया जा सकता है।
4- इस धारा के तहत कोई आदेश उस आदेश के दिए जाने की तारीख से दो माह से आगे प्रवृत्त नहीं रहेगा, किंतु यदि राज्य सरकार मानव जीवन या स्वास्थ्य को होने वाले खतरे का निवारण या किसी बलवे या दंगे का निवारण करने के लिए ऐसा करना आवश्यक समझती है तो अधिक से अधिक महीने की अतिरिक्त अवधि के लिए उक्त आदेश प्रभावी हो सकता है।
5- कोई मजिस्ट्रेट स्वप्रेरणा से या किसी व्यक्ति के आवेदन पर इस आदेश को परिवर्तित कर सकता है, जो स्वयं उसने या उसके पूर्ववर्ती या अधीनस्थ ने धारा-144 के तहत जारी किया है।
6- राज्य सरकार उपधारा-4 के परंतु-क, के अधीन अपने द्वारा किए गए आदेश को या तो स्वप्रेरणा से या किसी व्यक्ति के आवेदन पर परिवर्तित कर सकती है।
7- जहां उपधारा-5 या उपधारा-6 के अधीन आवेदन प्राप्त होता है, वहां यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदक का या स्वयं या वकील के द्वारा उसके समक्ष उपस्थित, मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदक का या तो स्वयं या वकील के द्वारा उसके समक्ष उपस्थित होने और आदेश के विरूद्ध कारण दर्शित करने पर उसके कारणों को लेखबद्ध किया जाता है।
अचल संपत्ति को लेकर उत्पन्न विवाद के निवारण हेतु धारा-145 
जब किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट के पास पुलिस अधिकारी की रिपोर्ट या अन्य इत्तिला द्वारा यह उल्लेख किया जाता है कि उसकी संपत्ति की स्थानीय अधिकारिता के अंदर किसी भूमि या जल या उसकी सीमाओं से संबद्ध ऐसा विवाद विद्यमान है, जिससे परिशांति भंग होने की संभावना है। न्यायालय द्वारा धारा-145 की कार्यवाही कर झगड़े का निवारण किया जाता है। इस धारा के प्रयोजनों के लिए भूमि या जल पद के अंतर्गत भवन, बाजार, मछली का क्षेत्र, फसलें भूमि की अन्य उपज आम है।
धारा-145 के अंतर्गत की जाने वाली कार्यवाही:-
जब कोई व्यक्ति किसी अचल संपत्ति के कब्जे को हटाने का प्रयास करता है और इस प्रकार की शांति भंग होती है तो ऐसे व्यक्ति के विरूद्ध अशांति को रोकने और कब्जे में किसी प्रकार की गड़बड़ी करने से रोकने के लिए एस.डी.एम. के पास द.प्र.सं. की धारा 145 के अंतर्गत प्रार्थना पत्र देकर कार्यवाही की जा सकती है। एस.डी.एम. द्वारा इस धारा के अंतर्गत दाखिल प्रार्थना पत्र की जांच रिपोर्ट से पुष्टि होने पर एस.डी.एम. दोनों पक्षों को नोटिस भेजते हैं कि वे न्यायालय में उपस्थित होकर अपने-अपने पक्ष प्रस्तुत करें। दोनों पक्षों का साक्ष्य लेने के बाद न्यायालय यह मत व्यक्त करता है कि अचल संपत्ति पर झगड़े की तिथि तथा उसे दो माह पहले से किस पक्षकार का कब्जा था और इस तरह कब्जे को उस व्यक्ति का कायम रखते हुए ऐसा आदेश पारित किया जाता
है कि झगड़े को लेकर शांति भंग होने की संभावना व्यक्त की गई थी, उसका निवारण हो सके।
कोई भी झगड़ा अपराध का रूप न धारण कर ले, उससे पहले उसका निवारण आवश्यक है। झगड़ों के निवारण हेतु उपरोक्त धाराओं के तहत एस.डी.एम. के पास प्रार्थना पत्र दिया जा सकता है।

अंतर्राज्यिक प्रवासी श्रमिक (नियोजन तथा सेवा परिस्थितियों का विनियमन) अधिनियम, 1979

अधिनियम के अंतर्गत परिभाषाएं -
1- अंतर्राज्यिक प्रवासी श्रमिक - हर वह व्यक्ति जो एक ठेकेदार द्वारा भर्ती किया जाता है और, और किसी एक राज्य से दूसरे राज्य में कार्य करने के लिए किसी कारखाने में या किसी व्यवस्था के अंतर्गत किसी जगह में चाहे नियोजक की जानकारी से हो या बिना जानकारी के, अंतर्राज्यिक प्रवासी श्रमिक कहलाया जाएगा।
2- प्रतिष्ठान का पंजीकरण आवश्यक है - ऐसे प्रतिष्ठान जिन पर यह अधिनियम लागू होता है, उनका पंजीकरण करवाना अनिवार्य है।
3- ठेकेदारों को अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) - केवल वह ठेकेदार जिनको लाइसेंस जारी हुआ है, प्रवासी श्रमिकों की भर्ती कर सकते हैं, इसके अलावा कोई दूसरा व्यक्ति श्रमिकों की भर्ती नहीं कर सकता।
ठेकेदारों के कर्तव्य -
1- ठेकेदार प्रवासी श्रमिकों के बारे में वह सभी जानकारियां जो निश्चित की गई हों, दोनों राज्य की सरकारों को, अर्थात् जिस राज्य से वे आए हैं और जिस राज्य में का कर रहे हैं, काम पर लगाए जाने के पंद्रह दिनों के अंदर देगा।
2- ठेकेदार सभी प्रवासी श्रमिकों को एक पासबुक, जारी करेगा, जिसमें उस श्रमिक की एक फोटो लगी होगी तथा हिंदी और अंग्रेजी या उस भाषा में जो मजदूर जानता हो, निम्न सूचना भी दी जाएगी -
  • कार्य का नाम और जगह का नाम जहां काम हो रहा हो।
  • नियोजन की अवधि।
  • दी जाने वाली मजदूरी की दर एवं मजदूरी देने का तरीका।
  • विस्थापन भत्ता, वापसी का किराया जो कि मजदूरी को दिया जाता है तथा कटौती आदि के बारे में जानकारी।

प्रवासी श्रमिकों के अधिकार -
वेतन एवं कार्य की शर्तें -
प्रवासी श्रमिक की मजदूरी दर, छुट्टियां, काम करने का समय एवं अन्य सेवा शर्ते, वहां पर काम करने वाले अन्य मजदूरों के समान होंगी। प्रवासी श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम में बताई गई मजदूरी से कम मजदूरी नहीं दी जाएगी। सामान्य तौर पर प्रवासी श्रमिकों को मजदूरी नगद रूप में दी जाएगी।
विस्थापन भत्ता - भर्ती के समय ठेकेदार प्रवासी श्रमिकों को विस्थापन भत्ता जो उसके एक महीने के वेतन का पचास प्रतिशत या 75/- रूपये इनमें जो भी ज्यादा होगा, देना होगा। और यह भत्ता उसे उसकी मजदूरी के अलावा मिलेगा।
यात्रा भत्ता - ठेकेदार प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह राज्य के निवास स्थान से काम करने की जगह तक आने व जाने के लिए यात्रा भत्ता भी प्रदान करेगा, जो उसकी मजदूरी के अलावा दिया जाएगा। यात्रा के दौरान मजदूर को काम पर समझा जाएगा।
सुविधाएं - इस अधिनियम के अंतर्गत कुछ सुविधाएं ठेकेदार के द्वारा मजदूर को देनी होंगी, जैसे 1. मजदूरी का नियमित भुगतान। 2. पुरूष और महिला को समान वेतन।
3. कार्य स्थल पर अच्छी सुविधाएं।
4 कार्य के दौरान मजदूरों के रहने की व्यवस्था करना।
5. मुफ्त चिकित्सीय सुविधाएं। 6. सुरक्षात्मक कपड़ों को उपलब्ध कराना।
7. किसी प्रकार की कोई दुर्घटना होने पर उसके सगे-संबंधियों एवं दोनों राज्यें के संबंधित अधिकारियों को सूचना देगी।
यदि ठेकेदार द्वारा यह जिम्मेदारी पूरी नहीं की जाती है तो प्रधान नियोजक पूरी व्यवस्था करेगा।
वेतन की जिम्मेदारी - ठेकेदार की जिम्मेदारी है कि प्रत्येक प्रवासी श्रमिक को नियत समय में वेतन दें। इसके साथ-साथ प्रधान नियोजक भी इसकी देख-रेख के लिए किसी व्यक्ति को नामित करेगा जो कि यह प्रमाणित करेगा कि मजदूर को जितना वेतन मिलना चाहिए उतना मिला है या नहीं। ठेकेदार इस नामित व्यक्ति के सामने वेतन बांटेगा यदि ठेकेदार वेतन नहीं देता है तो प्रधान नियोजक उनको वेतन देने के लिए जिम्मेदार होगा। अगर इस अधिनियम के अंतर्गत दी जाने वाली सुविधाएं नहीं दी जाती है, तो सुविधाओं के बदले भत्ता देना होगा।
निरीक्षक - सरकार इस अधिनियम के अंतर्गत निरीक्षकों की नियुक्ति कर सकती है, जो किसी भी समय किसी भी कार्य स्थान जहां प्रवासी श्रमिक काम करते हों, प्रवेश कर सकता है, कोई भी रिकार्ड मंगवा अथवा देख सकता है, किसी भी श्रमिक से पूछताछ कर सकता है।
उल्लंघन पर सजा एवं दण्ड - यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम का उल्लंघन करता है तो उसे एक वर्ष तक की जेल या 1000/- रूपये तक का जुर्माना या दोनों भी हो सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति दोबारा ऐसे अपराध का दोषी पाया जाता है, तो उसे 100/- रूपये का जुर्माना रोज देना होगा, जब तक वह उल्लंघन करता है।
यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के ऐसे नियमों का उल्लंघन करता है, जिसके लिए इस अधिनियम में कोई दंड या प्रावधान नहीं है तो वह अधिकतम दो साल की जेल या 2000/- रूपये के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
शिकायत दर्ज करने की समय सीमा:- इस अधिनियम के अंतर्गत शिकायत अपराध घटित होने के दिन से तीन महीने के अंदर दर्ज करवा सकते हैं।

कानून को जानें व समझें

1. हिन्दू दत्तक एवं भरण-पोषण कानून में यह प्रावधान है कि कोई भी हिन्दू चाहे पुरूष हो या स्त्री, उनका दायित्व होगा कि वे अपने अन्य रिश्तेदारों के अतिरिक्त अपने संतान व वृद्ध माता-पिता की परवरिश करेंगे, जिसमें सौतेली मां भी परवरिश पाने की अधिकारिणी है। ऐसा न करने पर उनके विरूद्ध दीवानी अदालत में आवेदन दिया जा सकता है, जिसके लिए निःशुल्क विधिक सहायता प्रदान करने का भी प्रावधान है।
2. हिन्दू दत्तक तथा भरण-पोषण कानूनों के तहत विवाहित पत्नी, पति की मृत्यु के पश्चात अपने ससुर से भरण-पोषण पाने की हकदार होती है, बशर्ते उसके पास आय का कोई साधन न हो।
3. शासन की शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना, सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना, राष्ट्रीय परिवार सहायता योजना, निःशक्त जन छात्रवृत्ति योजना चलायी जाती है, जिसकी सम्पूर्ण जानकारी नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत तथा ग्राम पंचायत से प्राप्त कर उसका सम्पूर्ण लाभ नागरिक प्राप्त कर सकता है।
4. माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका क्रमांक-173, 177/99 में दिनांक 17.10.2006 को पारित आदेश के अनुसार राज्य शासन के महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा महिला उत्पीड़न मामले की सतत निगरानी करने, महिला अत्याचार के विरूद्ध कारगर कार्यवाही कर पीड़ित महिलाओं को समुचित मार्गदर्शन एवं सहायता दिलाने के लिये प्रत्येक जिले में महिला उत्पीड़न निवारण समिति का गठन करना आवश्यक किया गया है।
5. राज्य शासन द्वारा समेकित बाल विकास सेवा योजना, पोषण आहार कार्यक्रम, किशोरी शक्ति योजना, स्वयंसुधा, एकीकृत महिला सशक्तीकरण कार्यक्रम, आयुष्मती योजना, बालिका समृद्धि योजना, दत्तक पुत्री शिक्षा योजना, महिला जागृति शिविर, महिला कोष्ठ की़ ऋण योजना, महिला सशक्तीकरण मिशन, स्व-शक्ति परियोजना कार्यक्रम महिला एवं बाल कल्याण हेतु दिलाया जाता है। इसके साथ ही नारी निकेतन, बाल संरक्षण गृह, शासकीय झूला घर, मातृ कुटीर, बालवाड़ी सह संस्कार केन्द्र भी संचालित होते हैं। इन सारी योजनाओं के संबंध में जिला महिला बाल विकास अधिकारी, बाल विकास परियोजना अधिकारी, पर्यवेक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
6. यदि आपके द्वारा लिखा गया चैक, बैंक द्वारा बिना भुगतान किये इस कारण वापस लौटा दिया जाता है कि आपके खाते में भुगतान हेतु पर्याप्त धनराशि नहीं है या उस रकम से अधिक है, जिसका बैंक के साथ किये गये करार के द्वारा उस खाते में से संदाय करने का ठहराव किया गया है तो आपका यही कृत्य चैक के प्रति अनादरण तथा अपेक्षापूर्ण कृत्य होगा, जो धारा 138 चैकों का अनादरण अधिनियम के अंतर्गत दण्डनीय अपराध है।
7. किसी भी नागरिक को उसके धर्म, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर किसी दुकान, भोजनालय, होटल, मनोरंजन स्थान, कुआं, तालाब, घाट, स्नान घाट, सड़क पर प्रवेश करने या आने-जाने से नहीं रोका जा सकता है। उसे रोकना उसके मौलिक अधिकारों का हनन है।
8. जहां किसी मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के अभिभावक की ईच्छा है कि उस मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति को मनोचिकित्सालय में चिकित्सा हेतु भर्ती करवाया जावे, वहां वह प्रभारी स्वास्थ्य अधिकारी से उस संबंध में निवेदन कर सकता है। उस मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति के देखभाल का समस्त खर्च शासन को वहन करना पड़ेगा। इसके अलावा प्रत्येक पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी, जिनके थाने की सीमाओं में स्वच्छंद विचरण करते हुये मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति दिखता है तो उसे अपने संरक्षण में लेकर दो घण्टे के अंदर निकटतम मजिस्टेªट के समक्ष प्रस्तुत करना उसका कानूनी दायित्व बताया गया है।
9. जिला उपभोक्ता फोरम, जिसका कार्यालय कलेक्टेªट परिसर में स्थित है, वहां पर कोई भी उपभोक्ता, जिसने उपभोग हेतु सामग्री क्रय की है और उसकी कीमत चुकायी है और उसके पास उस सामग्री को क्रय करने की रसीद है तो वह सामग्री के खराब होने, आशा से कम प्रकृति की होने, गुण या महत्व का कम होने, सामग्री के हानिकारक होने, गंदी या रोगयुक्त होने, सही पैकिंग न होने, अस्वच्छ अवस्था में तैयार होने, विष या कोई हानिकारक वस्तु के मिले होने, जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो, जिस डिब्बा में रखी गई हो वह डिब्बा स्वास्थ्य के लिये हानिकारक व जहरीला हो, मिठाई में मिलाया गया रंग या अनुमति से अधिक मात्रा में मिलाया गया रंग, पदार्थ के गुण, महत्व व शुद्धता तय मानक से कम हो, तो उसकी शिकायत सादे आवेदन में पूर्ण विवरण सहित कर सकता है।
इसके अलावा खाद्य पदार्थ को गलत नाम देकर बेचे जाने, अगर उसका नाम किसी दूसरे पदार्थ से ऐसे मेल खाता हो कि ग्राहक धोखा खा जाय, अगर झूठ बोलकर उस पदार्थ को विदेशी बताया गया हो, अगर वह किसी और पदार्थ के नाम से बेचा जाय, अगर उसमें किसी भी प्रकार का बदलाव करके उसे ज्यादा मूल्य का बताया जाय, अगर उसके पैकिंग के अंदर विवरण न दिया गया हो या गलत विवरण दिया गया हो अथवा लेबल झूठी
कम्पनी बताता हो, अगर वह पोषक आहार के रूप में बनाया गया हो और उसका लेबल उसमें प्रयोग की गई सामग्रियों के बारे में न बताता हो, अगर उसमें कोई भी बनावटी रंग, खुशबू या स्वाद का प्रयोग हुआ हो, जिसके बारे में लेबल पर न लिखा गया हो, अगर उसका लेबल उपभोक्ता संरक्षण नियम, 1986 के बनाये गये नियमों के अनुसार न हो, तो उसकी लिखित शिकायत जिला उपभोक्ता फोरम में पेश कर संबंधित व्यापारी व कम्पनी
को दण्डित कराया जा सकता है।
10. किसी सामान्य जाति का व्यक्ति अगर किसी अनुसूचित जाति या जनजाति वर्ग के व्यक्ति को जातिगत आधार पर उसके साथ छुआछूत के तहत तथा अन्य घिनौने कृत्य अथवा उत्पीड़ित किया जाता है तो उसका कृत्य अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (उत्पीड़न एवं छुआछूत निवारण) अधिनियम, 1989 के प्रावधानों के तहत दण्डनीय अपराध है।
11. रिश्वत लेना ही नहीं, बल्कि रिश्वत देना भी दण्डनीय अपराध है। यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को रिश्वत देता है या लोक सेवक को भ्रष्ट आचरण या अवैध साधनों द्वारा पदेन कृत्य अनुग्रह करने के लिये उत्प्रेरित करता है तो ऐसी रिश्वत देकर लोक सेवक को गुमराह करने वाले व्यक्तियों को कानून के तहत 5 वर्ष के लिये कारावास से दण्डित किये जाने का प्रावधान है।
12. लोक सेवक के अंतर्गत शासकीय सेवक के अलावा ऐसे सभी व्यक्ति आते हैं जो शासन के किसी पद पर आसीन हैं जिसके आधार पर वे किसी लोक कर्तव्य का पालन करने के लिए प्राधिकृत हैं, जैसे गांव का प्रधान, एम.एल.ए., एम.पी., न्यायालय द्वारा नियुक्त सरकारी वकील भी लोक सेवक है। भ्रष्टाचार का मतलब घूस या रिश्वत लेना अथवा उसके पदीय कृत्य के पालन के साथ परितोषण या ईनाम, अपने पदेन कार्य में अपने पदीय कर्तव्यों के प्रयोग में अनुग्रह दिखाने के लिये, यदि कोई लोक सेवक प्राप्त करता है तो वह पद का दुरूपयोग करता है, जिसके लिए दण्ड का प्रावधान कानून में किया गया है।
13. भारत सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के तहत प्रत्येक गांव के वयस्क व्यक्तियों को प्रति वर्ष 100 दिन का रोजगार प्रदान करने का प्रावधान किया गया है, जिसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रहे वयस्क व्यक्ति, अकुशल व्यक्ति, जो शारीरिक कार्य करने हेतु इच्छुक हो, उसे ग्राम पंचायत में अपना नाम, पता व उम्र लिखाकर पंजीयन कराना होगा, जो 5 वर्ष के लिये मान्य होगा। उसे पंचायत द्वारा एक फोटोयुक्त जाब कार्ड जारी किया जायेगा। काम करने के लिये उसे ग्राम पंचायत या कार्यक्रम अधिकारी को कम से कम 14 दिनों तक लगातार काम करने हेतु आवेदन देना होगा, जिसकी प्राप्ति के 15 दिनों के अंदर ही उसे रोजगार प्राप्त होगा। ग्राम पंचायत के सूचना पटल तथा कार्यक्रम अधिकारी के कार्यालय पर सूचना टांगी जायेगी, जिसमें काम करने वाले व्यक्ति का नाम, काम का स्थान और काम के लिये कब से जाना है, से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी रहेगी।
महिलाओं को रोजगार प्रदान करने में प्राथमिकता रहेगी और कम से कम एक तिहाई संख्या में महिलायें वहां रोजगार पर रहेंगी। मजदूरी कम से कम 75/-रूपये प्रतिदिन की रहेगी। उसका भुगतान साप्ताहिक होगा। अधिकतम 15 दिनों में भुगतान निश्चित करना होगा। मजदूरी का भुगतान नगद या किसी वस्तु के रूप में होगा। फिर भी एक चौथाई भुगतान नगद के रूप में होगा। काम के समय दुर्घटना की स्थिति में मुफ्त ईलाज का
प्रावधान है। श्रमिक का बैंक या पोस्ट ऑफिस में खाता खोलकर मजदूरी की राशि उसमें जमा कराये जाने का भी प्रावधान है।
14. सूचना के अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक किसी भी लोक निकाय के दैनिक क्रियाकलापों के संबंध में आवश्यक सूचना प्राप्त कर सकता है। वह निर्माण कार्यों का निरीक्षण कर सकता है। लोक अधिकारी के पास मौजूद दस्तावेजों और अभिलेखों का निरीक्षण कर सकता है और उनकी प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त कर सकता है।
विकास कार्यों या योजनाओं के निर्माण में लगायी गयी सामग्री के प्रमाणित नमूने ले सकता है। डिस्केट, फ्लापी, टेप, वीडियो कैसेट के रूप में या अन्य किसी इलेक्ट्रानिक रूप से भंडारित की गई सूचनाओं को भी प्राप्त कर सकता है। संबंधित सूचनायें वह उस विभाग के लोक सूचना अधिकारी, सहायक लोक सूचना अधिकारी के समक्ष हिन्दी अथवा अंग्रेजी में आवेदन लिखकर आवश्यक विवरण देकर 10/-रूपये नगद/चालान (जो मुख्य
शीर्ष-0070-उपमुख्य शीर्ष 800-अन्य प्राप्तियों में लोक प्राधिकारी के नाम देय हो) मनीआर्डर, ज्युडिसियल स्टाम्प देकर 10 दिवस के अंदर प्राप्त कर सकता है, अन्यथा अपीलीय अधिकारी के पास 10 दिवस में आवेदन दे सकता है। उसके आदेश से संतुष्टि न हो तो द्वितीय अपील 90 दिन के अंदर राज्य सूचना आयोग, मुख्यालय रायपुर में भी कर सकता है। गरीबी रेखा के नीचे के व्यक्ति को कोई भी फीस नहीं लगती है। समय-समय पर सूचना न देने पर, आवेदन लेने से इंकार करने पर, असद्भावपूर्वक सूचना देने पर, इंकार करने पर, गलत या अपूर्ण या गुमराह करने वाली सूचना देने, सूचना को नष्ट करने पर, आर्थिक दण्ड का प्रावधान है।

Sunday 30 October 2016

आप सबके फायदे का कानून, समझें और जानें

1. कोई भी असामाजिक व्यक्ति चाहे वह स्कूल, कालेज का छात्र हो, गुंडा तत्व हो, वह किसी भी महिला अथवा लड़की के साथ किसी भी तरह की छेड़खानी करता है, तो बिल्कुल चुप न रहिये। अपने परिवार के सदस्यों, पुलिस अथवा समाज के लोगों की जानकारी में लायें।
अपने सहयोगी अथवा सहेलियों को भी बतायें, अन्यथा ऐसे तत्वों के हौसले बढ़ेंगे और कोई बड़ी घटना भी वे घटित कर सकते हैं।
2. पति के पास जो भी जायदाद (खेती की जमीन, घर, प्लाट) है, वह पत्नी या दोनों के संयुक्त नाम पर भी रजिस्टर हो सकती है।
3. पत्नी को अपनी शादी के समय और बाद में माता-पिता और ससुराल से मुंह दिखाई के तौर पर जो कुछ भी मिला हो, वह स्त्री धन कहलाता है, उस पर कानूनी हक पत्नी का ही होता है।
4. कानून के तहत कोई भी गैर शादीशुदा या शादीशुदा औरत अनचाहा गर्भपात करवा सकती है। गर्भपात कराना औरत का निजी फैसला है, जिसके लिए उसे कोई भी नहीं रोक सकता है।
5. मॉं-बाप के बीच तलाक हो जाने के बावजूद बच्चे का पिता की जायदाद में हक/हिस्सा बराबर बना रहता है।
6. शादीशुदा पति-पत्नी संयुक्त रूप से अदालत में अर्जी पेश कर आपसी सहमति से बिना विलम्ब के तलाक प्राप्त कर सकते है।
7. जन्म, मुत्यु और विवाह का पंजीयन अवश्य करायें। इससे आप भविष्य में होने वाली परेशानियों से बचे रहेंगे।
8. किसी को टोनही कहना काननून गम्भीर अपराध है। आप दंडित हो सकते हैं।
9. किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य के विरूद्ध कोई अपमानजनक बात न करें, जातिगत गाली न दें, ऐसा करना गम्भीर प्रकृति का अपराध होता है, जो दण्डनीय तथा अजमानतीय है।
10. पी.आई.एल. द्वारा आम लोगों के फायदे या सार्वजनिक महत्व के मामले, जो मौलिक अधिकार से संबंधित हों, उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में पेश किये जा सकते हैं।
11. किसी भी मिलावटी पदार्थ, जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हो, उसके आयात करने, बनाने, रखने, बेचने या बांटने से प्रतिकूल असर हो तथा झूठी वारन्टी देना आदि कानूनन अपराध है। इसमें कम से कम 6 माह और अधिकतम 3 वर्ष तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
12. प्रत्येक नागरिक को संविधान, उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का पूर्ण आदर करना चाहिये। ध्वज फहराने से ठीक पहले सावधान हो जाना चाहिये। ध्वज अभिवादन के बाद राष्ट्रगान (जन,गण,मन) पूर्ण होने तक उसी अवस्था में ही रहना चाहिये।
13. कोई व्यक्ति, जो अनुसूचित जाति या जनजाति का सदस्य है, स्त्री या बालक है, मानसिक अस्वस्थता, विनाश, जातीय हिंसा, बाढ़, सूखा का शिकार है या वार्षिक एक लाख रूपये से कम है, उसे विधिक सेवा प्राधिकरण जिला न्यायालय, तहसील सिविल कोर्ट में निःशुल्क कानूनी सहायता पाने का अधिकार है।
14. महिला के नाम पर जमीन, मकान की रजिस्ट्री कराये जाने पर शासन द्वारा पंजीयन शुल्क में छूट का प्रावधान किया गया है।
15. रैगिंग एक गम्भीर अपराध है, जिसके लिये कानून में कारावास और जुर्माने के दण्ड का प्रावधान है। ध्यान रहे दंडित होने पर शासकीय सेवा के अयोग्य होने की स्थिति भी निर्मित हो सकती है।
16. शासन द्वारा नागरिकों के हितों के लिये मानव अधिकार आयोग, महिला अधिकार आयोग का भी गठन किया गया है। जहां मानवीय/स्त्री अधिकारों के हनन की शिकायत सीधे भेजी जा सकती है।
17. राज्य शासन ने संपूर्ण छत्तीसगढ़ में 9 से 12 कक्षा तक के शासकीय विद्यालयों में अध्ययनरत अनुसूचित जाति-जनजाति की छात्राओं को शाला आवागमन हेतु निःशुल्‍क सायकल प्रदाय योजना लागू की है। जिसने सुविधा प्राप्त नहीं की है, वे अपने शिक्षा केन्द्र से सुविधा प्राप्त कर सकते हैं।
18. प्रसव पूर्व लिंग निर्धारण हेतु चिकित्सीय परीक्षण कराना कानूनन अपराध घोषित किया गया है। परीक्षण कराने वाला और परीक्षण करने वाला चिकित्सक, दोनों को ही दंडित किये जाने का प्रावधान कानून में है।
19. बालिग व्यक्ति, जो कम से कम 21 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुका है, स्त्री, जो कम से कम 
18 वर्ष की आयु प्राप्त कर चुकी है, वे अविवाहित रूप में भी साथ-साथ रह सकते हैं।
उनका साथ रहना किसी भी कानून के तहत जुर्म नहीं है। उन्हें कोई (पुलिस प्रशासन या रिश्तेदार) प्रताड़ित करने का हक नहीं रखता है।
20. हिन्दू पति-पत्नी क्रूरता, जारता, परित्याग असाध्य रूप से विकृत चित्तता, गुप्तरोग या कुष्ठरोग, सन्यासी हो जाने की स्थिति, दूसरा धर्म अपना लेने, 7 वर्ष से अधिक अवधि तक गायब हो जाने के आधार पर दूसरे पक्ष के विरूद्ध तलाक की डिक्री अदालत में याचिका पेश कर प्राप्त कर सकता है।
21. 21 वर्ष से कम उम्र के बालक व 18 वर्ष से कम उम्र की बालिका का विवाह कानूनन अपराध है। इस विवाह में सहयोग करने वाले को भी सजा हो सकती है।
22. छत्‍तीसगढ़ विवाह का अनिवार्य पंजीयन नियम, 2006 के तहत विवाह का पंजीयन कानूनन जरूरी है, जो ग्राम पंचायत, नगरपालिका या नगरपालिक निगम में कराया जा सकता है।
23. कोई पति बिना किसी उचित व पर्याप्त कारण के अपनी पत्नी अथवा बच्चों का परित्याग किया हो तो पत्नी-बच्चे उससे उचित व पर्याप्त भरण-पोषण खर्च पाने के कानूनन अधिकारी होते हैं। इसके लिये उन्हें मजिस्टेªट की अदालत में विवरण सहित अर्जी लगानी चाहिये।
24. संविधान के अंतर्गत बेटियों को भी जन्म लेने और गरिमामय जीवन जीने का अधिकार है। भ्रूण की लिंग जांच एवं कन्या-भ्रूण हत्या दंडनीय अपराध है।
25. विज्ञान के अनुसार महिला के ग क्रोमोसोम से पुरूष का ग क्रोमोसोम मिलता है, तो लड़की का जन्म होता है। यदि महिला का ग क्रोमोसोम से पुरूष का ल क्रोमोसोम मिलता है, तो लड़के का जन्म होता है। अतः पुरूष ही वह प्रधान कारक है, जिसके क्रोमोसोम से लड़के या लड़की का जन्म तय होता है।
26. किसी भी धर्म, सम्प्रदाय या जाति के बालिग पुरूष (21 वर्ष) व स्त्री (18 वर्ष), जो जड़ या पागल न हो, पूर्व पति या पत्नी जीवित न हो, प्रतिसिद्ध कोटि की नातेदारी न हो, विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अंतर्गत विवाह कर सकते हैं। प्रत्येक जिलाधीश कार्यालय में विवाह अधिकारी नियुक्त है। उचित आवेदन पत्र, शपथ पत्र, जन्म तिथि प्रमाण पत्र पेश कर बहुत ही कम व्यय पर विवाह कर सकते हैं।

दैनिक उपयोगी कानून की जानकारी

  • 18 साल की उम्र के बाद लड़की बालिग हो जाती है और उसके बाद उसे अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने का पूरा हक मिल जाता है।
  • कानूनी तौर पर कोई भी व्यक्ति किसी बालिग को उसकी इच्छा के विरूद्ध कुछ भी करने को मजबूर नहीं कर सकता, यहां तक कि अभिभावक (माता/पिता या संरक्षक) को भी इस बारे में कोई हक प्राप्त नहीं है।
  • पति-पत्नी के विवाद के चलते पति, पत्नी को घर से बेदखल नहीं कर सकता। ऐसा होने पर वह घरेलू हिंसा कानून के तहत मजिस्ट्रेट के न्यायालय में आवेदन पेश कर तुरंत राहत ले सकती है।
  • तलाक के 7 वर्ष तक के बच्चे पर मां का ही कानूनी अधिकार रहता है। उसके बाद न्यायालय द्वारा बच्चे का हित देखते हुए अनुतोष दिया जाता है।
  • लड़कियों को भी लड़कों की तरह पिता की संपत्ति में बराबर का कानूनी अधिकार प्राप्त है।
  • पुलिस हिरासत में किसी भी व्यक्ति को सताना, मारपीट करना या किसी अन्य तरह से यातना देना एक गंभीर अपराध माना गया है।
  • किसी की गिरफ्तारी के समय पुलिस को उसे यह बताना आवश्यक है कि उसका अपराध जमानती है या गैर जमानती।
  • सिर्फ एक महिला पुलिस अफसर ही महिला के शरीर की तलाशी ले सकती है।
  • थाने में रिपोर्ट मुहजबानी या लिखित हो सकती है। रिपोर्ट की एक प्रति पाने का सभी को कानूनन हक है।
  • थाने में रिपोर्ट न लिखे जाने पर उसकी शिकायत उस थाने के उच्चाधिकारियों से की जा सकती है अथवा पंजीकृत डाक से पुलिस अधीक्षक को रिपोर्ट भेजी जा सकती है अथवा अदालत में परिवाद (ब्वउचसंपदजद्ध भी पेश किया जा सकता है।
  • घरेलू हिंसा की शिकार महिला, मजिस्ट्रेट के समक्ष अपनी शिकायत का आवेदन पेश कर सकती है,जिसकी सुनवायी मजिस्ट्रेट 3 दिनों के अंदर सम्पादित करेगा और फैसला 60 दिनों के अंदर करेगा।
  • जिस घर में महिला निवास कर रही हो, वहां से उसे जबरन नहीं निकाला जा सकता। मजिस्ट्रेट को आवेदन देने पर वह उस महिला को संबंधित निवास में फिर से निवास करने का आदेश दे सकता है।
  • दहेज देना, लेना या दहेज की मांग करने को कानूनी रूप से दंडनीय अपराध बनाया गया है, जिसकी शिकायत थाने या मजिस्ट्रेट के न्यायालय में की जा सकती है।
  • शादी-शुदा महिला भरण-पोषण के लिए न्यायालय में साधारण आवेदन पेश कर सकती है।
  • कोई भी वरिष्ठ नागरिक, जो स्वयं आय अर्जित करने में असमर्थ है, आय अर्जित करने वाले पुत्र-पुत्री, पौत्र-पौत्री से अधिकतम दस हजार रूपये तक भरण-पोषण पाने का अधिकारी हो सकता है। इस हेतु उसे एस.डी.ओ. (राजस्व) के न्यायालय में आवेदन करना होगा।
  • बलात्कार होने की स्थिति में संबंधित महिला को तुरंत घटना की जानकारी सगे-संबंधी व दोस्तों को देनी चाहिए। थाने में रिपोर्ट लिखानी चाहिए। तत्काल डाक्टरी जांच भी करानी चाहिए और उस जांच के पूर्व तक स्नान करने से बचना चाहिए। घटना के समय पहने हुए कपड़ों को उसे धोना नहीं चाहिए और पुलिस को उसे जप्त कराना चाहिए तथा रिपोर्ट की एक प्रति काननून मुफ्त लेनी चाहिए। प्रत्येक कार्य स्थल पर कार्यरत महिला कर्मचारी को उनके विरूद्ध होने वाले यौन उत्पीड़न पर तत्काल उसकी सूचना लिखित या मौखिक रूप से अपने नियोक्ता को देनी चाहिए और संबंधित नियोक्ता को तत्काल शिकायत कमेटी से उसकी जांच करानी चाहिए।
  • 21 वर्ष से कम के पुरूष और 18 वर्ष से कम युवती के मध्य विवाह गैर कानूनी है, इसलिए बालिग होने पर ही विवाह किया जाना चाहिए, अन्यथा वे दंड के भागी हो सकते हैं।
  • देश का प्रत्येक नागरिक सूचना का अधिकार कानून के अंतर्गत किसी भी लोक निकाय से अपने काम की सूचना प्राप्त कर सकता है, जिसके लिए उसे आवेदन के साथ 10/- रू. का नान-ज्युडिशियल स्टाम्प, नगर या चालान या मनीआर्डर से राशि अदा करनी होगी।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के तहत प्रत्येक गांव के वयस्क को 100 दिन तक रोजगार प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
  • जिला में स्थित जिला अदालत/जिला विधिक सेवा प्राधिकरण तथा तहसील में स्थित तहसील विधिक सेवा प्राधिकरण से कोई भी व्यक्ति, जिनकी आय एक लाख रूपये वार्षिक से कम है, वे व्यक्ति अदालती कार्यवाही हेतु निःशुल्क विधिक सेवा प्राप्त करने के अधिकारी हैं।
  • भारत सरकार द्वारा बनायी गई तोषण निधि योजना, 1989 के अनुसार दुर्घटना में किसी वाहन से, जिसका विवरण पता न हो, किसी व्यक्ति की मृत्यु होने पर उसके वारिसानों को 25000/- रूपये, घायलशुदा व्यक्ति को 12500/- रू. मुआवजा जिला कलेक्टर अथवा उनके अधीनस्थ अधिकारी को आवेदन दिए जाने पर दिलाए जाने का प्रावधान किया गया है।
  • दुर्घटना कारित करने वाली वाहन व वाहन का नंबर जहां पता हो, तो उस संबंध में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण में आवेदन कर उचित व पर्याप्त क्षतिपूर्ति राशि प्राप्त की जा सकती है।
  • बाजार से उपभोग करने हेतु प्राप्त की जाने वाली वस्तुओं की सेवाओं में कमी, वस्तुओं में मिलावट होने की स्थिति या उपभोक्ता का शोषण होने की स्थिति में उस उपभोक्ता को एक आवेदन जिला मुख्यालय में स्थित जिला उपभोक्ता न्यायालय में उचित मुआवजा अनुतोष हेतु पेश करना चाहिए। इसके लिए उसे दस्तावेज के रूप में सामग्री क्रय किए जाने से संबंधित रसीद व अन्य दस्तावेज वारंटी/गारंटी कार्ड इत्यादि भी पेश करने चाहिए।
  • भ्रष्टाचार रोकने के लिए तथा भ्रष्ट सेवक को दंडित कराने के लिए उस लोक सेवक के खिलाफ लिखित शिकायत राज्य शासन द्वारा गठित विशेष शिकायत सेल या एंटीकरप्शन ब्यूरो या आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो को करनी चाहिए।
  • कोई भी व्यवसायी, जो वस्तुओं के पूर्व से ही प्रिंटेड रेट पर स्टीकर चिपकाकर नवीन रेट प्राइस लिखता है, वह पूर्णतया गैरकानूनी कृत्य है, जो पैकेजिंग रूल्स के विरूद्ध है। उपभोक्ता उसके विरूद्ध जिला न्यायालय में अर्जी दे सकता है, जिला उपभोक्ता न्यायालय, जो कलेक्ट्रेट परिसर में है, उनके समक्ष शिकायत दर्ज करा सकता है।
  • बालिग हिंदू महिला-पुरूष के विवाह हेतु कर्मकाण्ड (अग्नि के समक्ष मंत्रोच्चार सात फेरे) आवश्कता है, किसी मंदिर में माला बदलने या सिंदूर लगा दिए जाने से विवाह संपन्न नहीं होता है। उसकी कोई कानूनी मान्यता नहीं होगी।
  • प्रत्येक कलेक्टर कार्यालय में विवाह अधिकारी नियुक्त होता है। उसके समक्ष महिला व पुरूष उचित आवेदन पत्र भरकर शपथ पत्र सहित आयु संबंधी प्रमाण पत्र लगाकर कानूनन विवाह कर सकते हैं। उसकी मान्यता वेद या अग्नि के समक्ष किए गए विवाह से किसी भी तरह से कम नहीं होती है। यह सबसे कम खर्चीला कानूनी विवाह होता है।
  • जिला न्यायालय में जनोपयोगी सेवा से संबंधित स्थायी लोक अदालत है, जिसमें कोई भी नागरिक, जो लोकोपयोगी सेवा, जिसमें परिवहन (सड़क, वायु या जल द्वारा सेवा) पोस्ट आफिस, टेलीग्राफ, टेलीफोन विद्युत आपूर्ति, रोशनी, लोगों हेतु जल सेवा वाले किसी भी संस्था द्वारा प्रदाय होती हो, स्वच्छता संबंधी सुविधाओं की सेवा, अस्पताल अथवा डिस्पेंसरी संबंधी सेवा, बीमा संबंधी सेवा, जो राज्य शासन अथवा केंद्रीय शासन से संबंधित हो, उन संस्थाओं के विरूद्ध एक साधारण या सामान्य आवेदन बिना शुल्क का पेश किया जा सकता है और संबंधित स्थायी लोक अदालत से अतिशीघ्र अनुतोष प्राप्त किया जा सकता है।
  • पहली पत्नी के जीते जी दूसरी शादी करना कानूनन अपराध है। पहली पत्नी, चाहे तो पति के खिलाफ थाने में या सीधे मजिस्ट्रेट के न्यायालय में शिकायत दर्ज करा सकती है। कानूनन उस पति को सात साल कैद की सजा हो सकती है।
  • पहली पत्नी की सहमति से भी गई दूसरी शादी गैर कानूनी होती है और ऐसी दूसरी पत्नी कानूनन अपने पति की संपत्ति में कोई हक या भरण-पोषण खर्चा पाने की अधिकारिणी नहीं होती है।
  • किसी विवाहित स्त्री की मृत्यु अग्नि या शारीरिक क्षति द्वारा कारित की जाती है और ऐसी मृत्यु के कुछ समय पूर्व उसके पति या रिश्तेदारों ने दहेज की मांग की हो, तो ऐसे व्यक्तियों के विरूद्ध दहेज मृत्यु का मुकदमा चलता है, जिसमें आजीवन कारावास की सजा तक का प्रावधान किया गया है।
  • हवाई यात्रा में वरिष्ठ नागरिक को आने-जाने की टिकट खरीदने पर 50 प्रतिशत तक की छूट का प्रावधान है।
  • शासकीय कर्मचारी/अधिकारी शासन के नियम अनुसार एक ही पत्नी रख सकता है।
  • शादी-शुदा पत्नी के रहते दूसरी पत्नी रखने से उस पर विभागीय कार्यवाही का प्रावधान किया गया है।
  • वरिष्ठ नागरिक को रेल यात्रा भाड़ा में 30 प्रतिशत तक की छूट का प्रावधान है, जिसके लिए आयु प्रमाण पत्र रखना अनिवार्य है।
  • 60 वर्ष का निराश्रित वृद्ध और 50 वर्ष से ऊपर की निराश्रित वृद्धा गरीबी रेखा के नीचे 6 से 14 वर्ष के नागरिक के बच्चों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन की पात्रता है, जिसमें उन्हें नगरीय निकाय या ग्राम पंचायत से राशि प्राप्त होती है।

मध्यस्थता के संबंध में जानकारी

(1) मध्यस्थता क्या है?
मध्यस्थता विवादों को निपटाने की न्यायिक प्रक्रिया से भिन्न एक वैकल्पिक प्रक्रिया है, जिसमें एक तीसरे स्वतंत्र व्यक्ति मध्यस्थ (मीडियेटर) दो पक्षों के बीच अपने सहयोग से उनके सामान्य हितों के लिए एक समझौते पर सहमत होने के लिए उन्हें तैयार करता है। इस प्रक्रिया में लचीलापन है और कानूनी प्रक्रियागत जटिलताएं नहीं है। इस प्रक्रिया में आपसी मतभेद समाप्त हो जाते है अथवा कम हो जाते हैं।
(2) मध्यस्थता क्यों?
न्यायालय में विवादों को सुलझाने की एक निर्धारित प्रक्रिया है, जिसमें एक बार प्रक्रिया शुरू हो जाने के पश्चात पक्षों का नियंत्रण समाप्त हो जाता है और न्यायालय का नियंत्रण स्थापित हो जाता है। न्यायालय द्वारा एक पक्ष के हित में निर्णय सुनिश्चित है, किन्तु दूसरे पक्ष के विपरीत होना भी उतना ही सुनिश्चित है। दोनों पक्षों के हित में निर्णय, जिससे दोनों पक्ष संतुष्ट हो सकें, ऐसा निर्णय, न्यायालय नहीं दे सकता। न्यायालय द्वारा तथ्यों, विधिक स्थिति तथा न्यायिक प्रक्रिया को ध्यान में रखकर निर्णय दिया जाता है। जब कि मध्यस्थता दो पक्षों को खुलकर बातचीत करने के लिए प्रेरित और उत्साहित करता है। वह पक्षों के बीच संवाद स्थापित करने में सहयोग प्रदान करता है। वह दोनों पक्षों को अपनी बात कहने का समान अवसर देकर, पक्षों में सामंजस्य स्थापित करता है। मध्यस्थता में विवादों को निपटाने का सारा प्रयास स्वयं पक्षों का होता है, जिसमें मध्यस्थ
(मिडियेटर) उनकी सहातया करता है। पूरी प्रक्रिया पर पक्षों का नियंत्रण बना रहता है। निर्णय लेने का अधिकार भी पक्षों का ही रहता है। कहीं भी विवशता एवं दबाव नहीं रहता, पूरी प्रक्रिया पर पक्षों का नियंत्रण बना रहता है। निर्णय लेने का अधिकार भी पक्षों का ही रहता है। कहीं भी विवशता एवं दबाव नहीं रहता, पूरी प्रक्रिया स्वतंत्र और निष्पक्ष होती है।
(3) मध्यस्थता से होने वाले लाभ:-
1. मध्यस्थता एक ऐसा मार्ग प्रस्तुत करती है, जिसमें पक्षों को समझौता कराने के लिए सहमत किया जाता है तथा पक्षों के मध्य उत्पन्न मतभेदों को दूर करने के लिए अवसर प्राप्त होता है।
2. रिश्तों में आई दरार से हुए नुकसान की पूर्ति करने का अवसर प्राप्त होता है।
3. एक ऐसा उपाय है, जिसमें पक्ष स्वयं अपना निर्णय ले सकते हैं।
4. हिंसा, घृणा, धमकियों से हटकर एक सभ्य उपाय है, जिससे विवादों का निराकरण निकाला जा सकता है।
5. विवादग्रस्त पक्षों में आपसी बातचीत और मधुर संबंध बनाने का अवसर प्राप्त होता है।
6. यह प्रक्रिया मुकदमें का विचारण नहीं करती और न ही गुणदोष पर निर्णय देती है।
7. यह प्रक्रिया किसी भी न्यायिक प्रक्रिया की अपेक्षा सस्ती है।
8. इसमें सफलता की संभावनाएं अधिक है तथा यह किसी भी स्थिति में पक्षों के लिए लाभकारी है।
9. इस प्रक्रिया में पक्षों में एक-दूसरे की बातें सुननें, भावनाओं को समझने का सही अर्थों में अवसर प्राप्त होता है।
10. इस प्रक्रिया में पक्षों में किसी प्रकार का भय नहीं होता, पक्ष अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं क्योंकि प्रक्रिया गोपनीयतापूर्ण है, अतः पक्ष अपनी बात को खुले मन से कह पाते हैं, उन्हें किसी का भय नहीं होता।
11. इस प्रक्रिया में पक्ष स्वयं अपना निर्णत लेते हैं, अतः उनकी आशाओं के विपरीत किसी भी अप्रत्याशित निर्णय प्राप्त होने की संभावना नहीं रहती, जैसा कि न्यायालय की प्रक्रिया में अक्सर होता है।
12. मध्यस्थता से समझौता कुछ घंटों या दिनों में ही प्राप्त हो जाता है। अनेक महीनों या वर्षों तक यह प्रक्रिया नहीं चलती अर्थात समय की बचत होती है।
13. जहां न्यायालय के आदेश के अनुपालन कराने में भी अनेक कठिनाईयां उत्पन्न होती है, वहां मध्यस्थता से प्राप्त समझौता स्वयं पक्षों का स्वेच्छा से प्राप्त निर्णय होता है, अतः उसके क्रियान्वयन में कोई कठिनाई नहीं होती है।
14. न्यायिक प्रक्रिया के वाद समय में ही प्रस्तुत किया जा सकता है, जबकि मध्यस्थता में विवादों को किसी भी स्तर पर निपटाया जा सकता है, इसमें विलंब कभी नहीं होता।
15. इस प्रक्रिया द्वारा प्राप्त समझौते से मन को शान्ति मिलती है।
16. मध्यस्थता के माध्यम से निराकृत प्रकरणों में न्याय शुल्क की छूट प्रदान की गई है।
(4) मध्यस्थता से कौन से विवाद का समझौता संभव है:-
(अ) सिविल केस (व्यवहार वाद)
1. निषेधाज्ञा के प्रकरण। 
2. विशिष्ट अनुतोष 
3.पारिवारिक वाद
4. मोटर दुर्घटना 
5. मकान मालिक एवं किरायेदार
6. सिविल रिकवरी 
7. व्यावसायिक झगड़े 
8. उपभोक्ता वाद
9. वित्तीय एवं लेन-देन के विवाद
(ब) दांडिक प्रकरण (सभी राजीनामा योग्य अपराध के मामले तथा 1- 498 ए आई पी सी 2- 138 निगोशिएबल इन्सटूमेन्ट एक्ट (चेक बाउंस से संबंधित)
 राजस्व प्रकरण
(5) मध्यस्थता का लाभ कैसे प्राप्त करें:- मध्यस्थता हेतु आवेदन जिस न्यायालय में मामला लंबित हो, वहां प्रस्तुत करें।

Saturday 29 October 2016

लोक अदालत

लोगों को शीघ्र एवं सस्ता न्याय सुलभ कराने हेतु लोक अदालतों का आयोजन तहसील, जिला तथा उच्च न्यायालय में किया जाता है। लोक अदालत में आपसी समझाईस एवं सुलह के आधार पर सौहाद्र पूर्वक वार्ता कर प्रकरणों का निराकरण किया जाता है। लोक अदालतों में दीवानी, फौजदारी (समझौता योग्य) राजस्व, श्रम तथा अन्य न्यायालयीन प्रकरणों के निराकरण हेतु संबंधित न्यायालय में आवेदन दिया जा सकता है। निराकृत प्रकरणों की अपील नहीं की जा सकती है। निराकृत प्रकरणों पर पूर्व में लगाया गया न्याय शुल्क की संपूर्ण राशि वापस की जाती है। ऐसे प्रकरण जो न्यायालय में पेश नहीं हुए हैं, प्री-लिटिगेशन को भी लोक अदालत में निराकरण हेतु विधिवत् तैयार कर बिना न्याय शुल्क के पेश किया जा सकता है। लोक अदालत का अधिनिर्णय सिविल न्यायालय की डिक्री के समतुल्य है तथा उसी प्रकार निष्पादित किया जा सकता है। प्रत्येक माह जिला तथा तहसील न्यायालयों में एक स्थायी एवं निरंतर लोक अदालतों की बैठक तथा प्रत्येक दूसरे माह एक वृहद लोक अदालत का आयोजन किया जाता है। साथ ही राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, नई दिल्ली के निर्देशानुसार नेशनल लोक अदालत का आयोजन किया जाता है।
न्यायालय में विचारधीन मामलों को लोक अदालत के माध्यम से निराकृत कराने हेतु सम्बधित न्यायालय के पीठासीन अधिकारी को आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। प्री-लिटिगेशन मामले को लोक अदालत के माध्यम से निराकृत कराने हेतु जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को आवेदन प्रस्तुत किया जा सकता है।
प्री-लिटिगेशन मामले पर न्याय शुल्क से छूट प्रदान की गई है तथा न्यायालय के विचाराधीन मामले जिनका निराकरण लोक अदालत के माध्यम से होता है उनमें पूर्व से अदा की गई न्याय शुल्क वादी को वापस कर दिया जाता है।
पेंशन लोक अदालत
सेवानिवृत्त शासकीय/अर्द्धशासकीय सेवकों को सेवानिवृत्ति के पश्चात् मिलने वाली परिलब्धियों के निराकरण हेतु बिलासपुर, रायपुर तथा दुर्ग में पेंशन लोक अदालत का गठन किया गया है। माह के दूसरे, तीसरे एवं चौथे रविवार को जिला न्यायालय में इसकी बैठक निर्धारित की गई है। आवेदन संबंधित क्षेत्रानुसार सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को पूर्ण जानकारी सहित बिना किसी शुल्क के अपने तथा नियोक्ता के पूरे नाम व पते के साथ प्रेषित की जा सकती है।
स्थायी लोक अदालत जनोपयोगी सेवाऐं
छ.ग. राज्य के अंतर्गत आम नागरिकों के लिए स्थायी लोक अदालत जनोपयोगी सेवाऐं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, जगदलपुर एवं अम्बिकापुर में स्थापित की गई है। इनका जिलेवार क्षेत्राधिकार निम्नानुसार है
1. रायपुर - रायपुर, बलौदा-बाजार, महासमंुद एवं धमतरी सिविल जिले।
2. बिलासपुर - बिलासपुर, कोरबा, जांजगीर-चांपा एवं रायगढ़ सिविल जिले;
3. दुर्ग - दुर्ग, राजनांदगॉव, बालोद, बेमेतरा एवं कबीरधाम सिविल जिले।
4. जगदलपुर - बस्तर (जगदलपुर), उत्तर बस्तर (कांकेर), कोंण्डागॉव एवं दक्षिण बस्तर (दंतेवाड़ा) सिविल जिले।
5. अम्बिकापुर - सरगुजा (अम्बिकापुर), कोरिया, जशपुर एवं सुरजपुर सिविल जिले।
उपरोक्त प्रत्येक जनोपयोगीय लोक अदालत में एक न्यायिक अधिकारी (उच्चतर न्यायिक सेवा से) अध्यक्ष के रूप में तथा दो सदस्य नियुक्त किये गये है।
उक्त जनोपयोगीय स्थायी लोक अदालत के समक्ष बिना कोई शुल्क या फीस अदा किए कोई भी नागरिक निम्न सेवाओं से संबंधित अव्यवस्था, असुविधा, अनियमितता, असावधानी या सेवा में कमी को दूर कर उसे व्यवस्थित एवं ठीक कराने के साथ-साथ पीड़ित पक्षकार आवश्यक व उचित क्षतिपूर्ति भी प्राप्त करने हेतु आवेदनपत्र पूर्ण विवरण सहित कर सकता है।
जनोपयोगी स्थायी लोक अदालत में निम्न लोक उपयोगी सेवा के विषयों पर आवेदन किया जा सकता है-
01. परिवहन की सेवा जिसमें यात्री वाहन, सामग्री ढोने वाली वाहन के साथ-साथ वायु सेवा व जलयान सेवा भी शामिल है,
02. डाक तार या दूरभाष की सेवा संबंधी,
03. किसी संस्थापन (अधिष्ठान) के द्वारा जनता को शक्तिप्रकाश (लाईट) अथवा जल की आपूर्ति की जाती है उससे संबंधित शिकायत संबंधी आवेदन दे सकते हैं,
04. सार्वजनिक सफाई अथवा स्वच्छता की प्रणाली की शिकायत,
05. औषधालय या चिकित्सालय में सेवा की शिकायत,
06. बीमा सेवा (तृतीय पक्षकार के मामलों को छोड़कर)।
उपरोक्त संबंध में किसी भी प्रकार की शिकायत का आवेदन स्थायी लोक अदालत में देकर शीघ्रातिशीघ्र उस समस्या का उपचार कराया जा सकता है। संबंधित स्थायी लोक अदालत को जिम्मेदारी दी गई है कि वे संबंधित समस्या का तत्काल अर्थात अविलंब निराकरण करे।
नागरिकों को उपरोक्त सेवा का लाभ लेते हुए अविलम्ब आवश्यक सुधार करवाने की ओर कदम बढ़ाकर नगर को स्वच्छ सुन्दर और खुशहाल बनाना चाहिए।
लीगल एड क्लीनिक
जिस प्रकार बीमारियों के उपचार हेतु क्लीनिक की स्थापना की जाती है, इसी प्रकार कानूनी समस्याओं के निवारण/समाधान हेतु पैरालीगल एड क्लीनिक की स्थापना की जाती है।
इसके अंतर्गत विधि के प्राध्यापक, छात्र तथा अधिवक्ता अपनी सेवाएं देते हैं तथा पीड़ित व्यक्ति को निःशुल्क कानूनी सलाह आवश्यकता पड़ने पर विधिक सहायता उपलब्ध कराने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। प्रत्येक लीगल एड क्लीनिक में दो प्रशिक्षित पैरालीगल वालांटियर्स की नियुक्ति की गई है जो निर्धारित कार्य दिवस में जरूरतमंद लोगो की सहायता/मदद के लिए कार्यालीन समय में उपलब्ध रहते है।

निःशुल्क कानूनी सहायता सलाह

न्याय सबके लिए है, न्याय पाने का सभी को समान अधिकार है। यदि आप अपना प्रकरण न्यायालय में प्रस्तुत करना चाहते हैं, या आपका कोई प्रकरण न्यायालय में लम्बित है? तो आपकी गरीबी आपको न्याय दिलाने में रूकावट नहीं होगी, अब आपके प्रकरणों में तहसील स्तरीय न्यायालय से उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय तक न्याय दिलाये जाने हेतु विधिक सेवा समितियां, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण व उच्च न्यायालय एवं उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समितियां कार्य कर रहे है।
कौन कौन व्यक्ति विधिक सेवा/विधिक सलाह पाने का हकदार है:-
1. वह व्यक्ति जो अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का सदस्य है।
2. वह व्यक्ति जो मानव दुर्व्यवहारों से या बेगारों से सताया गया है।
3. स्त्री या बालक है।
4. मानसिक रूप से अस्वस्थ या अन्यथा असमर्थ है।
5. वह व्यक्ति जो अनापेक्षित अभाव जैसे बहु-विनाश, जातीय हिंसा, अत्याचार, बाढ़-सूखा, औद्योगिक विनाश की दशाओं के अधीन सताया हुआ है, या 
6. कोई औद्योगिक कर्मकार या,
7. अभिरक्षा में है जिसके अंतर्गत अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956 के अंतर्गत किसी संरक्षण गृह में या किशोर मनश्चिकित्सीय अस्पताल परिचर्या गृह में रखा गया व्यक्ति भी है, या
यदि मामला उच्चतम न्यायालय से भिन्न किसी अन्य न्यायालय के समक्ष है भारत का कोई नागरिक जिसकी समस्त स्रोतों से वार्षिक आय 1,00,000/- रूपये (अंकन एक लाख) से अधिक न हो विधिक सेवा पाने का हकदार होगा।
विधिक सेवा एवं सलाह किन-किन रूपों में प्राप्त की जा सकेगी:-
1. कोर्ट फीस, आदेशिका फीस, साक्षियों तथा पेपर बुक के व्यय, वकील फीस और कानूनी कार्यवाही के संबंध में देय समस्त खर्च, कानूनी कार्यवाहियों में वकील उपलब्ध कराना।
2. कानूनी कार्यवाहियों में निर्णय आदेशों, साक्ष्य की टिप्पणियों तथा अन्य दस्तावेजों की प्रमाणित प्रतिलिपियां उपलब्ध कराना।
3. कानूनी कार्यवाहियों में पेपर बुक तैयार करना, जिसमें दस्तावेजों, मुद्रण-टंकण तथा अनुवाद के खर्च सम्मिलित है।
4. कानूनी दस्तावेजों का प्रारूपण कराना।
5. किसी मामले में कानूनी सलाह देना।
विधिक सहायता किन अदालतों में प्राप्त की जा सकती है:-
विधिक सहायता जिले तथा तहसील में स्थित दीवानी, फौजदारी, राजस्व सहित सभी न्यायालय, उच्च न्यायालय, राजस्व मंडल एवं सर्वोच्च न्यायालय हेतु प्राप्त की जा सकती है।
विधिक सेवा के लिए आवेदन कैसे करें:-
1. विधिक सहायता के लिए आवेदन पत्र जिले में सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण या
जिला विधिक सहायता अधिकारी को।
2. तहसील में स्थित व्यवहार न्यायालय में पदस्थ वरिष्ठ न्यायाधीश को।
3. उच्च न्यायालय के लिए सचिव, उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति को।
4. सुप्रीम कोर्ट के लिए सचिव सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विसेस कमेटी नई दिल्ली को।
5. आवेदन प्त्र संबंधित न्यायालय के न्यायाधीश को भी दिये जा सकते हैं।
मजिस्ट्रेट न्यायालय में विधिक सहायता अधिवक्ता:-
प्रतिनिधित्व विहीन व्यक्तियों को अभिरक्षा अवधि में न्यायालय में सम्मानजनक पैरवी सुनिश्चित करने एवं सुरक्षा प्रदान करने के लिए रिमाण्ड का विरोध करने, जमानत कराने तथा मजिस्ट्रेट न्यायालय में पैरवी कराने हेतु विधिक सहायता अधिवक्ता की नियुक्ति की गयी है ताकि प्रतिनिधित्व विहीन अभिरक्षा में रह रहे व्यक्तियों को समानता के आधार पर न्याय प्राप्त हो सके।
जिला तथा तहसील के न्यायिक तथा कार्यपालिक दंडाधिकारी के न्यायालय हेतु अधिवक्ताओं की नियुक्ति की गयी है। अभिरक्षाधीन व्यक्ति विधिक सहायता अधिवक्ता के माध्यम से पैरवी कराने हेतु आवेदन कर सकते हैं।
विधिक सेवा ऑन लाईन:-
दूरस्थ ग्रामीण एवं वनांचल में रहने वाले विधिक सेवा ऑन लाईन के जरिये विधिक सेवा योजनाओं की जानकारी तथा निःशुल्क विधिक सलाह प्राप्त कर सकते हैं, उसके लिए प्रत्येक जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों में ऑनलाईन टेलीफोन स्थिपित है। साथ ही राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, बिलासपुर के दूरभाष क्रमांक 07752-410210 में अथवा टोल फ्री नं. 1800 233 2528 में भी संपर्क कर सकते हैं।

समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976

अधिनियम के अंतर्गत परिभाषाएं:-
1. पारिश्रमिक:- पारिश्रमिक से अर्थ है कि किसी व्यक्ति को उसके काम के बदले में दी जाने वाली मजदूरी या वेतन और अतिरिक्त उपलब्धियां चाहे वे नगद या वस्तु के रूप में दी गयी हो।
2. एक ही काम या समान प्रकृति का काम:- एक ही काम या समान प्रकृति के काम से तात्पर्य ऐसे कार्य से है जिसके करने में समान मेहनत, कुशलता या जिम्मेदारी की जरूरत हो, ज बवह समान परिस्थिति में किसी महिला या पुरूष द्वारा किया जाता है।
पुरूष और महिला काम करने वालों को एक ही काम या समान प्रकृति के काम के लिए मजदूरी देने के लिए मालिक के कर्तव्य:- कोई भी मालिक किसी भी मजदूर को लिंग के आधार पर एक ही काम या समान प्रकृति के काम के लिए एक समान मजदूरी या वेतन भुगतान करेगा। मजदूरी दर में अंतर नही करेगा।
भर्ती में लिंग के आधार पर भेदभाव:- किसी भी व्यक्ति समान प्रकृति के कार्य की भर्ती के दौरान पुरूष व महिला में लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा। पदोन्नति (प्रमोशन) अभ्यास (प्रशिक्षण) या स्थानांतरण में भी भेदभाव नहीं किया जा सकता है। परंतु अगर कोई कानून किसी कार्य में महिला की भर्ती पर रोक लगाता है, तो यह अधिनियम उस पर लोगू नहीं होगा।
सलाहकार समितियां:- महिलाओं को रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध कराने के लिए सरकार एक या एक से ज्यादा सलाहकर समितियों का गठन करेगी , जो ऐसे प्रतिष्ठानों या केन्द्र सरकार द्वारा अधिसूचित रोजगारों में महिलाओं को नियोजित करने की सीमा के संबंध में सलाह देगी। सलाहकार समिति अपनी सलाह सरकार को सौंपते समय प्रतिष्ठानों में काम करने वाली महिलाओं की संख्या, काम की प्रकृति, काम के घंटे और वह सभी आवश्यक बातें महिलाओं को रोजगार प्रदान करने के अवसरों को बढ़ावा देती हो उनका ध्यान रखेगी।
शिकायतें एवं दावे:- सरकार अधिसूचना द्वारा अधिकारियों की नियुक्ति करेगी, जो इस अधिनियम के उल्लंघन की शिकायतें और समान मजदूरी न प्राप्त होने से संबंधित दावों की सुनवाई और उस पर फैसला देंगे। यह अधिकारी श्रम अधिकारी के पद से नीचे का काम नहीं होगा। यह अधिकारी पूरी जांच के बाद शिकायत करने वाले को समान मजदूरी के संबंध में वह रकम जिसका वह हकदार है, देने का आदेश देगा तथा यह अधिकारी मालिक को आदेश दे सकता है कि वह ऐसे कदम उठायें जिससे इस अधिनियम का पालन हो सके। अगर शिकायतकर्ता या मालिक आदेश से खुश नहीं है तो वह 30 दिन के भीतर सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी के सामने अपील कर सकते हैं।
रजिस्टर:- प्रत्येक मालिक उसके द्वारा कार्य करने वालों की सूची का रजिस्टर बनायेगा।
निरीक्षक (इंसपेक्टर):- सरकार इस अधिनियम के अंतर्गत एक निरीक्षक नियुक्त करेगी, जो यह देखेगा कि अधिनियम के अंतर्गत दिये गये नियमों का सही ढंग से पालन हो रहा है या नहीं।
निरीक्षक किसी कार्य स्थान में जा सकता है। किसी भी व्यक्ति से पूछताछ कर सकता है और कोई भी कागजी रिकार्ड देख या मंगवा सकता है या उसकी फोटोकापी करवा सकता है।
निरीक्षक जब किसी व्यक्ति को पूछताछ या कागजी रिकार्ड के संबंध में बुलाता है तो ऐसे व्यक्ति का आना जरूरी है।
दण्ड एवं सजा:- इस अधिनियम के अंतर्गत अगर कोई भी मालिक -
1. अपने मजदूरी का रजिस्टर सुरक्षित नहीं रखता है
2. किसी भी तरह का कागजी रिकार्ड जो मजदूरों से संबंध रखता है, पेश नहीं करता।
3. किसी मजदूर को पेश होने से रोकता है।
4. कोई सूचना देने से इंकार करता है , तो उसे एक महीने की जेल एवं 10 हजार रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।
इस तरह अगर कोई मालिक किसी मजदूर को:-
1.समान मजदूरी नियम का उल्लंधन करके भर्ती करता है।
2. वेतन में लिंग के आधार पर भेदभाव करता है।
3. किसी भी प्रकार का लिंग भेदभाव करता है।
4. सरकार के आदेशों का पालन नहीं करता है।
तो उसे कम से कम 10 हजार रूपये और अधिक से अधिक 20 हजार रूपये तक का जुर्माना हो सकता है या कम से कम तीन महीने, और अधिक से अधिक एक साल तक की जेल या दोनों भी हो सकती है। अगर वह व्यक्ति दुबारा ऐसे अपराध का दोषी पाया जाता है तो उसे दो साल तक की जेल हो सकती है।
अगर कोई भी व्यक्ति मालिक के कहने पर कोई भी कागजी रिकार्ड छिपाता है या उपलब्ध कराने से इंकार करता है तो उसे पांच सौ रू. का जुर्माना हो सकता है।
कंपनी द्वारा अपराध:- अगर यह अपराध किसी कंपनी द्वारा किया गया हो तो वह व्यक्ति जो उस समय कंपनी के कार्य को देख रहा हो और जिसका कंपनी के कार्य पर पूर्ण रूप से नियंत्रण हो, वह व्यक्ति और कंपनी जिम्मेदार माने जाएंगे।

बाल श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986

बाल श्रम एक सामाजिक बुराई है जो एक समाज के एक कमजोर वर्ग की गरीबी व अशिक्षा से जुड़ी है। प्रसिद्ध जर्मन विद्वान मैक्स मूलर ने कहा है कि ’’ पश्चिम में बच्चे दायित्व समझे जाते हैं जबकि पूर्व में बच्चे सम्पति’’ यह कथन भारत के संदर्भ में शत्-प्रतिशत सही है। 14 वर्ष के कम उम्र के बच्चे जो नियोजित है उन्हें बाल श्रमिक कहा जाता है जिनके हित संरक्षण हेतु बाल श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 बनाया गया है जिसकी धारा-3 के अंतर्गत अधिसूचित खतरनाक क्षेत्रों में बाल श्रमिक नियोजन पूर्णतः प्रतिबंधित है जो मुख्यतः निम्न है:-
1. बीड़ी बनाना, तम्बाकू प्रशंसकरण
2. गलीचे बुनना
3. सीमेंट कारखाने में सीमेंट बनाना या थैलों में भरना
4. कपड़ा बुनाई, छपाई या रंगाई
5. माचिस, पटाखे या बारूद बनाना
6. अभ्रक या माईका काटना या तोड़ना
7. चमड़ा या लाख बनाना
8. साबुन बनाना
9. चमड़े की पीटाई, रंगाई या सिलाई
10. ऊन की सफाई
11. मकान, सड़क, वाहन आदि बनाना
12. स्लेट पेंसिल बनाना व पैक करना
13. गुमेद की वस्तुएं बनाना
14. मोटर गाड़ी वर्कशॉप व गैरेज
15. ईंट भट्ठा व खपरैल
16. अगरबत्ती बनाना
17. आटोमोबाईल मरम्म्त
18. जूट कपड़ा बनाना
19. कांच का सामान बनाना
20. जलाऊ कोयला और कोयला ईंट का निर्माण
21. कृषि प्रक्रिया में ट्रेक्टर या मशीन में उपयोग
22. कोई ऐसा काम जिसमें शीसा, पारा, मैगनीज, क्रोमियम, अगरबत्ती, वैक्सीन, कीटनाशक दवाई और ऐसबेस्टस जैसे जहरीली धातु व पदार्थ उपयोग में लाये जाते हैं आदि। 
खतरनाक क्षेत्रों में बाल श्रमिक नियोजित किये जाने पर धारा-14 के अंतर्गत दोषी नियोजक को कम से कम तीन माह एवं अधिकतम 1 वर्ष का कारावास एवं कम से कम 10 हजार रूपये तथा अधिकतम 20 हजार रूपये का जुर्माना से दंडित किया जावेगा।
10 अक्टूबर 2006 से बच्चों को घरेलू नौकर तथा ढाबों आदि में कार्य करने पर प्रतिबंध ः- सरकार द्वारा निर्णय लिया गया है कि बच्चों के रोजगार (बालश्रम) को निम्न क्षेत्रों में जैसे घरेलू नौकर, ढाबा (सड़क किनारे), होटल, मोटल, चाय की दुकान, सैरगाह, पिकनिक के स्थानों पर प्रतिबंधित कर दिया गया है। इस प्रतिबंधित को बालश्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 के अंतर्गत 10 अक्टूबर 2006 से लागू किया गया है।
गैर खतरनाक क्षेत्रों में बाल श्रमिक कार्य कर सकते हैं परंतु निम्न प्रावधानों का पालन किया जाना अनिवार्य है:-
1. बच्चों से 6 घंटे से अधिक समय तक काम नहीं करवाया जा सकता है।
2. एक साथ तीन घंटों से ज्यादा उनसे काम नहीं किया जा सकता है।
3. रात के 7 बजे से लेकर सुबह 8 बजे के बीच में उनसे कोई भी काम नहीं लिया जा  सकता।
4. सप्ताह में उन्हें कम से कम एक दिन छुट्टी दी जानी चाहिए।
सबसे अच्छा तो यह है कि बच्चों को किसी काम पर रखा ही नहीं जाये क्योंकि इससे उनके सेहत पर बुरा असर पड़ता है और शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होता है। उन्हें पढ़ने का मौका भी नहीं मिल पाता है। बचपन तो खेलने खाने और पढ़ने के लिए होता है। हर बच्चे को उनके यह अधिकार दिलाया जाना चाहिए। 06 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करना संविधान के अनुच्छेद 21 ’’ए’’ के तहत मौलिक अधिकार है तथा माता पिता व संरक्षक का अनुच्छेद 51 क भारतीय संविधान के तहत 06 से 14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा दिलाया जाना मौलिक कर्तव्य है।
अतः अधिकार एवं कर्तव्य का अनिवार्य रूप से पालन होना चाहिए।
बाल श्रम केवल कानून से दूर नहीं किया जा सकता है। बाल श्रम के विरूद्ध संघर्ष में कोई भी समाज सेवी व्यक्ति या संगठन निम्नानुसार सकारात्मक योगदान प्रदान कर सकता है:-
1. जनता के बीच इस समस्या के प्रति जागरूकता बढ़ाना।
2. यह मांग करना कि सरकार विश्व व्यापार संगठन जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों एवं निकायों में  बाल श्रम के उन्मूलन के लिए सघन कार्यवाही की जरूरत का मुद्दा उठाये।
3. विश्व व्यापार संगठन के ढांचे के अंतर्गत किये गये करारों सहित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार  करारों में उस सामाजिक खण्ड के आह्वान का सक्रिय (समर्थन) विरोध करना। जिसे सीधे  रूप में बाल श्रम के साथ जोड़ा गया है।
4. सरकार से मांग करना कि ऐसी नीति अपनाये जो विकासशील देशों में आर्थिक पुनः संरचना कार्यक्रमों को प्रभावित करने वाली हो। ताकि वे शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य ऐसी सेवाओं को नकारात्मक रूप से प्रभावित न करें जिन पर परिवार व बच्चे विशेष रूप से आश्रित हैं।
5. मांग करना कि निर्णायक अंतर्राष्ट्रीय कार्यवाही सुनिश्चित की जावे और आवश्यक होने पर संबंधित सरकारों पर कठोर प्रतिबंध लगाये जायें ताकि बाल श्रम पर तुरंत प्रतिबंध लगाने और उनके उपर हो रही ज्यादतियों को रोकने के लिए विवश हो सके। जिन कार्यों में बच्चों का शारीरिक अथवा मानसिक विकास खतरे में है उन्हें रोकने के उपाय करने के लिए विवश हो सके।
6. ऐसी विकास सहायता परियोजनाओं के कार्यन्वयन की मांग करना जिनके प्रत्यक्ष प्रयोजन निर्धनता दूर करना, वयस्क रोजगार को बढ़ाना, शिक्षा के पहुंच में सुधार करना और अन्य दशाओं को प्रभावित करना हो ताकि बाल श्रम को सीमित और अन्ततः उसका उन्मूलन किया जा सके।
7. उन देशों के विकास और सहायता परियोजनाओं का कार्यन्वयन करना और उनका समर्थन करना जो बाल श्रम के विरूद्ध संघर्ष में अपना योगदान देना चाहते हैं। जिससे उनकी ट्रेड यूनियनों की क्षमताओं में सुधार आ सके।
8. अपनी घरेलू बाजारों में बाल श्रमिकों द्वारा नियमित समान की खरीद व वितरण पर प्रतिस्पर्धा के एक घटक के रूप में बाधा उत्पन्न करके बाल श्रम के इस्तेमाल को अधिक कठिन बनाना अन्ततः इसके इस्तेमाल को असंभव बना देना।
9. एक प्रभावी दबाव के समूह के रूप में कार्य करना।
10. राज्य और जिला स्तर पर बाल श्रम प्रकोष्ठ स्थापित करना।
11. अपने समस्त करारों और कार्ययोजनाओं में बाल श्रमिकों का मुद्दा शामिल करना।
12. बाल श्रमिकों के स्थान पर वयस्कों को काम दिये जाने पर जोर देना और व्यावसायिक शिक्षा, पोषाहार, स्वास्थ्य एवं मनोरंजन का समर्थन करना।
13. बाल श्रम कार्यक्षेत्रों का अध्ययन और विश्लेषण करना और बाल श्रम को प्रभावित करने वाली नीतियों का समर्थन करना जिससे वैकल्पिक रणनीति बनाने में सहयोग मिले।
14. बाल श्रम के बारे में सूचना का प्रचार करना।
15. बाल श्रम दिवस मनाये जाने का आह्वान करना।
16. ऐसी परियोजनायें शुरू करना जिनकी आवश्यकता बाल श्रम के समस्या वाले क्षेत्रों में महसूस की जा रही है और इस समस्या को हल करने में सहयोग देना।
17. अधिक अनुभव होने के कारण जमीनी हकीकत के अधिक निकट सरकार के प्रवर्तन-तंत्र के आंख कान की तरह काम करना।
18. क्षेत्र में लगे अपने सदस्यों (खास करके जो बाल श्रम बहुल क्षेत्रों में लगे हुए) को बाल श्रम को समाप्त करने संबंधी कानूनों की जानकारी प्रदान करना।
19. समस्या और उससे जुड़े कानूनों के बारे में बताना ताकि सजग प्रहरी के रूप में अधिक दक्षतापूर्वक कार्य किया जा सके।
20. अपनी खुद की कार्योन्मुख परियोजनाएं और कार्यक्रम चलाना।
व्यक्तिगत रूप से बाल श्रम के विरूद्ध संघर्ष में निम्नानुसार सहयोग प्रदान किया जा सकता है:-
1. कार्यकर्ता अपने घर में किसी बच्चे को काम पर न रखे।
2. अपने साथी कार्यकर्ताओं को बाल श्रमिक न रखने की सलाह दें।
3. अन्य ट्रेड यूनियनों के कार्यकर्ताओं को बाल श्रमिक न रखने की सलाह दें।
4. मजदूर कालोनी में मजदूरों के घर में बाल श्रमिकों को काम करने से रोकने की कोशिश करें।
काम करने के स्थान पर:-
1. कार्यकर्ता जहां काम कर रहा है उस स्थान पर किसी भी बाल श्रमिक को काम पर न लगाने की सलाह प्रबंधकों को दे सकता है।
2. कारखानों की कैंटीनों में काम करने वाले बाल श्रमिकों को काम करने से रोकने के लिए अपने ट्रेड यूनियनों में सक्रिय भूमिका अदा कर सकता है।
3. कार्य स्थल पर ठेकेदार द्वारा किये जाने वाले कार्यों के लिए, जिसमें अधिकतर बाल श्रमिक काम करते हैं यूनियन के माध्यम से किये जाने वाले एग्रीमेंट में बाल श्रमिकों को काम पर न रखने की शर्त को शामिल करवा सकता है।
4. अपने कार्यस्थल पर प्रबंधकों को बाल श्रम मुद्दे पर संवेदनशील बनाने की कोशिश कर सकता है।
रास्ते में चलते हुए उन छोटे बच्चों को होटलों में कप प्लेट धोते और बड़ी बड़ी बाल्टियों में पानी भरकर पहुंचाते हुए देखा करते हैं किन्तु हमें इसका ध्यान नहीं रहता कि यदि ये बालक जीवन में अशिक्षित रह जायेंगे तो पशुओं की भांति निरर्थक श्रम ही करते रहेंगे और अपने नागरिक दायित्वों और अधिकारों से वंचित रह जायेंगे।
‘‘आइये इन्हे काम से हटाकर स्कूल भिजवाने में मदद करें’’

ठेका श्रम (विनियमन और उत्सादन) अधिनियम 1970

ठेके पर काम करने वाले मजदूरों का शोषण न हो तथा उनके हित सुरक्षित रहें, इसलिए यह कानून बनाया गया है।
यह कानून कहता है:-
1. यदि मालिक ठेकेदार के जरिए मजदूरों को काम पर रखता है, तो मालिक को पंजीकृत होना चाहिए।
2. यदि कोई ठेकेदार 20 या इससे अधिक मजदूर किसी मालिक को देता है तो उसे सरकार से लाइसेंस लेना पड़ेगा।
सुविधायें जो ठेकेदार द्वारा दी जानी चाहिए:-
1. काम करने वाले (मजदूरों) के छः साल से छोटे बच्चों के लिए ठेकेदार को कम से कम दो कमरे अवश्य देने चाहिए। एक कमरा खेलने के लिए और दूसरा सोने के लिए।
2. मजदूरों के लिए पीने का पानी, पर्याप्त संख्या में शौचालय और मूत्रालय, धोने के लिए सुविधाएं और प्राथमिक चिकित्सा सुविधाएं।
3. तीन माह तक चलने वाले काम में आराम की सुविधाएं।
4. स्त्रियों के लिए अलग कमरे का प्रबंध।
5. ऐसा काम जो छः माह तक चल सकता है और सौ से ज्यादा मजदूर काम करते हों, तो भोजनालय का प्रबंध।
मजदूरी:-
1. मजदूरी देने की जिम्मेदारी भी ठेकेदार की है,
2. महीने में कम से कम एक बार मजदूरी मिलनी चाहिए,
3. मजदूरी नगद और बिना कटौती के मिलना चाहिए,
4. मजदूरी मालिक के प्रतिनिधि के सामने दी जानी चाहिए,
5. मजदूरी की दर न्यूनतम मजदूरी से कम नहीं हो सकती है,
6. ठेकेदार को कमीशन देना मालिक की जिम्मेदारी है, उसे मजदूरी से वसूल नहीं किया जा सकता है।
7. मालिक ठेके के मजदूरों से केवल उतने घंटे काम करा सकता है, जितने घंटे उसके कर्मचारी उसी तरह का काम करते हैं।
8. शिकायत होने पर श्रम अधिकारी को शिकायत दर्ज करने पर 6 माह से एक साल सजा और पांच हजार से दस हजार जुर्माना किया जायेगा।

Friday 28 October 2016

न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948

अधिनियम के अंतर्गत परिभाषाएं:-
1. मजदूरी:- इस अधिनियम के अनुसार मजदूरी का अर्थ उस धन से है, जो किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति के लिये किये गये श्रम के बदले प्राप्त होती है। मजदूरी के अंतर्गत घर का किराया भी आता है, लेकिन मजदूरी के अंतर्गत कुछ ऐसी चीजें नहीं आती।
जैसे:- गृहवास सुविधा, बिजली व पानी का खर्च, पेंशन या भविष्य निधि, यात्रा का खर्चा और ग्रेच्युटी इत्यादि।
2. कर्मचारी:- इस अधिनियम के अंतर्गत वह व्यक्ति कर्मचारी माना जाता है, जो भाड़े या पारिश्रमिक के लिये चाहे वह कुशल या अकुशल कार्य शारीरिक या लिपिकीय कार्य करता हो, जिसकी न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की जा चुकी हो। इसमें वह बाहरी मजदूर भी आते हैं जो किसी भी प्रकार के परिसर में निम्नलिखित कार्य करते हैं:-
1. वस्तु को बनाने का कार्य करता हो। 
2. साफ करने का कार्य करता हो।
3. मरम्मत करता हो। 4. वस्तु को बेचता हो। या
5. हाथ से किया गया क्लर्क (लिखा-पढ़ी) का कार्य करता हो।
3. नियोजक/मालिक:- इस अधिनियम के अंतर्गत नियोजक या मालिक वह व्यक्ति कहलाता है जो किसी कर्मचारी को कोई कार्य करने के लिए स्वयं या दूसरे के द्वारा उन प्रतिष्ठानों में जिन पर न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू होता है, कार्य पर लगाता है:
1. इसके अतिरिक्त फैक्ट्री मालिक या मैनेजर। 
2. कोई भी ऐसा कार्य जिसका नियंत्रण सरकार के हाथों में है वहॉं पर सरकार द्वारा नियंत्रण एवं देखरेख के लिये नियुक्त व्यक्ति मालिक कहा जावेगा और जहॉं ऐसे किसी व्यक्ति की नियुक्ति नहीं हुई है, वहॉं उस विभाग का प्रधान अधिकारी मालिक कहा जायेगा।
मजदूरी की न्यूनतम दर क्या है ?
मजदूरी की न्यूनतम दर को सरकार समय-समय पर तय करती है। यह न्यूनतम दर रहने के खर्च के साथ भी हो सकती है और उसके बिना भी।
सरकार हर पॉंच वर्ष के अंतराल पर मजदूरी की न्यूनतम दर तय करेगी।
वेतन के स्थान पर वस्तु:- इस अधिनियम के अंतर्गत वेतन-भत्ता रूपये में दिया जायेगा लेकिन अगर सरकार को ऐसा लगता है कि किसी क्षेत्र में यह रीति-रिवाज चली आ रही है कि काम के बदले धन की जगह वस्तु प्रदान की जाती है तो सरकार इसे अधिसूचित कर सकती है।
आवश्यक वस्तुओं को रियायती दरों पर देने के लिए प्रावधान बनाया जाना जरूरी हो तो वह ऐसा कर सकती है।
कार्य पर अतिरिक्त समय:- कोई मजदूर जिसकी न्यूनतम मजदूरी इस अधिनियम के अंतर्गत घंटे, दिन इत्यादि के अनुसार तय की गई हो, अगर अपने काम के साधारण समय से ज्यादा काम करता है तो मालिक अतिरिक्त समय (ओवरटाईम) का वेतन भी मजदूर को देगा।
असमान कार्यों के लिये न्यूनतम वेतन:- अगर कोई मजदूर एक से ज्यादा कार्य करता है जो एक समान नहीं है और जिनकी न्यूनतम मजदूरी की दर भी एक समान नहीं होती तो मालिक को उसके कार्य के समय के अनुसार उस संबंधित कार्य की उपलब्ध न्यूनतम मजदूरी देनी होगी।
अगर किसी कार्य की मजदूरी वस्तु बनाने पर आधारित है एवं उसकी न्यूनतम मजदूरी समय पर आधारित है तो मालिक को उस समय की तय न्यूनतम मजदूरी देनी होगी। इस अधिनियम के अंतर्गत मजदूरों के द्वारा किये जाने वाले काम के घंटे भी तय किये जायेंगे और मजदूरों को सप्ताह में एक दिन छुट्टी भी दी जायेगी।
रजिस्टर एवं रिकार्ड आदि का रखना:- प्रत्येक मालिक का यह कर्तव्य है कि वह अपने यहॉं काम करने वाले मजदूरों के बारे में जानकारी देगा और उनके द्वारा किया जाने वाला काम और उनको मिलने वाली मजदूरी आदि को रजिस्टर में दर्ज करेगा।
निरीक्षक:- सरकार न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के अंतर्गत निरीक्षक नियुक्त कर सकती है और उसके कार्य करने के अधिकार शक्तियॉं और सीमाओं को निश्चित कर सकती है। निरीक्षक किसी भी स्थान जहॉं मजदूर काम करते हों, वहां निरीक्षण कर सकता है, किसी भी रिकार्ड को जप्त कर सकता है और उस रिकार्ड की छायाप्रति भी ले सकता है। निरीक्षक इस बात की भी जानकारी ले सकता है कि मजदूरी की न्यूनतम दर क्या है ?
दावे:- यदि किसी मजदूर को उसकी मजदूरी की न्यूनतम दर नहीं मिलती है तो वह श्रम-आयुक्त के सामने इसकी शिकायत कर सकता है। सरकार श्रम-आयुक्त की नियुक्ति करेगी। मजदूर इस अधिनियम के अंतर्गत अपने दावे के लिये खुद अपना पक्ष प्रस्तुत कर सकता है, उसे वकील की आवश्यकता नहीं है। अगर वह चाहे तो किसी वकील को या किसी मजदूर यूनियन के अधिकारी को अपने दावे को प्रस्तुत करने के लिये नियुक्त कर सकता है लेकिन यह जरूरी है कि जिस दिन से न्यूनतम मजदूरी की दर न मिली हो आवेदन उस दिन से छः महीने के भीतर पेश किया गया हो। दावे का आवेदन सम्मिलित होने के बाद श्रम-आयुक्त मजदूर और मालिक के पक्ष को सुनेगा और पूरी जॉंच के बाद निर्देश देगा।
श्रम आयुक्त मजदूर (आवेदनकर्ता) को यह रकम यदि उसे न्यूनतम मजदूरी से कम मिली हो तो देने का निर्देश दे सकता है और साथ ही मुआवजा भी दिला सकता है, जो कि ऐसे रकम से 10 गुना से ज्यादा नहीं होगी।
आवेदन पर सुनवाई करने वाले अधिकारी को दीवानी न्यायालय के समान माना जावेगा और वह सारी प्रक्रिया जो दीवानी मुकदमों में होती है, वही प्रक्रिया चलेगी। इस अधिनियम के अंतर्गत सुनवाई करने वाले अधिकारी का निर्णय अंतिम होगा।
जुर्म के लिए दण्ड:- अगर कोई भी मालिक किसी भी मजदूर को इस अधिनियम के अनुसार न्यूनतम मजदूरी नहीं देता है तो उसे छः महीने की जेल या 500/-रूपये का जुर्माना या दोनों हो सकता है।

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