Friday 23 December 2016

राजूलाल आ. चैनसिंह साहू विरूद्ध महेश बारले आ. मोहनलाल बारले

क्‍लेम प्रकरण क्रमांक-128/2014

न्यायालय: प्रथम अतिरिक्त मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण दुर्ग  (छत्तीसगढ़)

(पीठासीन अधिकारी: सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू)
संस्थित दिनांक: 12-12-2014
(सी.आई.एस.नं.0002361/2014)
1. राजूलाल आत्मज चैनसिंह साहू, उम्र 42 वर्ष
2. केंवरा साहू जौजे राजूलाल साहू, उम्र 34 वर्ष
दोनों निवासी: ग्राम सेलूद, थाना उतई,
तहसील व जिला दुर्ग (छ.ग.)                                                                    ..... आवेदकगण
।। विरूद्ध ।।
1. महेश बारले आत्मज मोहनलाल बारले, उम्र 28 वर्ष
साकिन: आमनेर, थाना अभनपुर, जिला रायपुर (छ.ग.)
(वैगन आर क्र.सी.जी.07-ए.क्यू /8119 का चालक)
2. दीपक कुमार पाण्डे आत्मज त्रिलोचन पाण्डे,
साकिन: ग्राम गाड़ाडीह, थाना उतई, तहसील
व जिला दुर्ग (छ.ग.)
(वैगन आर क्र.सी.जी.07-ए.क्‍यू/8119 का पंजीकृत स्वामी)
3. मण्डल प्रबंधक,
दि न्‍यू इंढिया इंश्‍योरेंस कम्पनी लिमिटेड,
चौहान प्लाजा, जी.ई.रोड, घड़ी चौक के पास
सुपेला-भिलाई, तहसील व जिला दुर्ग (छ.ग.)
(वैगन आर क्र.सी.जी.07-ए.क्‍यू/8119 का
बीमा कम्पनी)                                                                                       ..... अनावेदकगण
------------------------------------------------
आवेदक गण की ओर से श्री रोहित साहू, अधिवक्ता ।
अनावेदक क्रमांक-1 व 2 द्वारा श्री अजय बर्छिहा, अधिवक्ता ।
अनावेदक क्रमांक-3 द्वारा सुश्री बी.एस.कांति, अधिवक्ता ।
------------------------------------------------
।। अधिनिर्णय ।।
(आज दिनांक: 20 सितम्बर, 2016 को घोषित किया गया)
1- आवेदक गण की ओर से यह आवेदन-पत्र, मोटर दुर्घटना के परिणाम- स्वरूप अजय कुमार, उम्र 14 वर्ष की मृत्यु होने के कारण कुल 7,15,000/-रूपये क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु मोटर यान अधिनियम की धारा-163(क) के अंतर्गत प्रस्तुत किया गया है ।
2- प्रकरण में यह अविवादित है कि दुर्घटना दिनांक: को दुर्घटना कारित वाहन वैगन आर क्रमांक सी.जी.07-ए.क्‍यू/8119 का अनावेदक क्रमांक-1 चालक तथा अनावेदक क्रमांक-2 पंजीकृत स्वामी था एवं उक्त वाहन अनावेदक क्रमांक-3 के पास बीमित था ।
3- आवेदक गण की ओर से प्रस्तुत आवेदन-पत्र संक्षेप में इस प्रकार है कि दिनांक 06-09-2014 को शाम 4.00 बजे अजय कुमार साहू सायकल से लक्की साहू के साथ ट्यूशन पढ़ने अपनी साईड से जा रहा था, तभी अनावेदक क्रमांक-1 अपनी वाहन वैगन आर क्रमांक सी.जी.07-ए.क्‍यू/8119 को तेजी एवं लापरवाहीपूर्वक चलाते हुए उसे जोरदार ठोकर मारकर दुर्घटना कारित कर दिया, जिससे अजय कुमार साहू को गम्भीर चोटें आयी । उसे उपचार हेतु पं.जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय, सेक्टर-9, भिलाई में भर्ती किया गया, जहां ईलाज के दौरान दिनांक 07-09-2014 को अजय कुमार की मृत्यु हो गई । दुर्घटना की रिपोर्ट थाना उतई, जिला दुर्ग में दर्ज करायी गई, जहां वाहन चालक के विरूद्ध भारतीय दण्ड संहिता की धारा-279, 337, 304(ए) के अंतर्गत अपराध क्रमांक-245/2014 पंजीबद्ध किया गया । दुर्घटना के समय मृतक 14 वर्ष का होकर कक्षा नवी का होनहार विद्यार्थी था एवं आवेदकगण का एकमात्र पुत्र था । मृतक अजय कुमार पढ़ाई के साथ-साथ अपने माता-पिता के टेलरिंग कार्यों में हाथ बंटाता था, जिससे परिवार के लिये प्रतिमाह 2,500/-रुपये बचा लेता था । अजय कुमार के आकस्मिक निधन से परिवार को काफी अपूर्णीय क्षति पहुंची है, अतः अनावेदकगण से कुल 7,15,000/- रूपये क्षतिपूर्ति दिलाये जाने बावत् आवेदन प्रस्तुत किया गया है ।
4- अनावेदक क्रमांक-1 एवं 2 की ओर से इस आशय का जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है कि उक्त दुर्घटना, मृतक अजय कुमार के लापरवाहीपूर्वक कृत्य के कारण हुई है, जिसमें अनावेदकगण की कोई लापरवाही नहीं थी । अनावेदक क्रमांक-1 कुशल वाहन चालक है तथा उसके पास वैध ड्राईविंग लाईसेंस है, उसके द्वारा वाहन का सही ढ़ंग से धीरे-धीरे चालन किया जा रहा था । मृतक अजय कुमार बालपन में सायकल को लड़खड़ाते हुए चला रहा था और सायकल को वाहन वेगन आर के पीछे पहिये के अन्दर डाल दिया, जिसकी जानकारी अनावेदक क्रमांक-1 को नहीं है, इसलिये दुर्घटना की सम्पूर्ण जिम्‍मेदारी मृतक अजय कुमार की है । आवेदकगण द्वारा प्रस्तुत दावा झूठा, मनगढंत एवं बनावटी है, उनके द्वारा झूठ का सहारा लेकर कपोल-कल्पित आधारों पर लालच में आकर दुर्भावनापूर्ण दावा पेश किया गया है । दुर्घटना के समय अनावेदक क्रमांक-2 का वाहन अनावेदक क्रमांक-3 बीमा कम्पनी के पास बीमित होने के कारण क्षतिपूर्ति राशि भुगतान करने  का दायित्व अनावेदक क्रमांक-3 पर होगा, अतः अनावेदक क्रमांक-1 व 2 के खिलाफ पेश दावा निरस्त किये जाने योग्‍य है ।
5- अनावेदक क्रमांक-3 बीमा कम्पनी की ओर से, आवेदन-पत्र में उल्लेखित सभी तथ्यो से स्पष्ट इन्कार करते हुए इस आशय का जवाबदावा प्रस्तुत किया गया है कि वाहन दुर्घटना में अजय कुमार की मृत्यु नहीं हुई थी तथा दुर्घटना में वाहन क्रमांक सी.जी.07-ए.क्‍यू./8119 की संलिप्तता नहीं थी । वाहन स्वामी ने उसे दुर्घटना की कोई लिखित सूचना नहीं दी है । आवेदक गण द्वारा धारा-163(अ) मोटर यान अधिनियम से परे जाकर क्षतिपूर्ति राशि की मांग की गई है । मृतक टेलरिंग कार्य में मदद नहीं करता था और न ही 2500/-रुपये प्रतिमाह आय प्राप्त करता था । आवेदक गण, मृतक पर आश्रित नहीं थे । अतिरिक्त में अभिवचन किया है कि बीमा पॉलिसी के फर्जी होने और बीमा पॉलिसी के शर्तों का उल्लंघन होने से बीमा कम्पनी क्षतिपूर्ति प्रदान करने के लिये दायित्वाधीन नहीं है। आवेदन में उल्लेखित तथ्य असत्य हैं, अतः आवेदक गण का दावा आवेदन निरस्त किया जावे ।
6- उभय-पक्ष के अभिवचनों एवं प्रकरण में संलग्‍न दस्‍तावेजों के आधार पर मेरे पूर्व  पीठासीन न्यायाधीश द्वारा निम्नलिखित वाद-प्रश्‍न विरचित किये गये हैं, जिन पर साक्ष्य-विवेचना एवं विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष  दिया जा रहा है:-
वाद-प्रश्न निष्कर्ष 

वाद-प्रश्‍न क्रमांक-1 पर सकारण निष्कर्ष :-
7- आवेदक गण की ओर से अपने पक्ष के समर्थन में राजूलाल (आ.सा-1) तथा गोपी किशन (आ.सा-2) का कथन कराया गया है । अनावेदकगण की ओर से प्रकरण में कोई भी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है ।
8- आवेदक गण की ओर से अभिवचन कर साक्ष्य प्रस्तुत किया गया है कि मृतक अजय कुमार दिनांक: 06-09-2014 को 16.00 बजे सायकल से ट्यूशन पढ़ने के लिये जा रहा था, तभी अनावेदक क्रमांक-1 द्वारा वाहन वेगन आर क्रमांक सी.जी. 07-ए.क्‍यू/8119 को तेजी और लापरवाहीपूर्वक चलाते हुए दुर्घटना कारित कर दिया गया, जिससे आयी चोटों से अजय कुमार की मृत्यु हो गई । आ.सा-1 राजूलाल द्वारा उक्त तथ्‍यों की अपने साक्ष्य में पुष्टि की गई है तथा समर्थन में अन्तिम प्रतिवेदन प्रदर्श पी-1, प्रथम सूचना रिपोर्ट प्रदर्श पी-2, जप्ती पत्र प्रदर्श पी-3 व प्रदर्श पी-4, मर्ग इंटीमेशन प्रदर्श पी-5, मृत्यु की सूचना प्रदर्श पी-6, नोटिस प्रदर्श पी-7, चिकित्सा रिपोर्ट प्रदर्श पी-8, नक्शा पंचायतनामा प्रदर्श पी-9, शव सुपुर्दनामा प्रदर्श  पी-10, सुपुर्दनामा आदेश प्रदर्श पी-11 एवं पोस्टमार्टम रिपोर्ट प्रदर्श पी-12 प्रकरण में पेश किया गया है ।
9- प्रदर्श पी-1 के अन्तिम प्रतिवेदन के अवलोकन से स्पष्ट है कि अनावेदक क्रमांक-1 महेश बारले के विरूद्ध अपराध, अंतर्गत धारा-279, 337, 304(ए) भारतीय दण्ड संहिता का अभियोग-पत्र प्रस्तुत किया गया है । प्रदर्श पी-2 के प्रथम सूचना पत्र में भी लेख है कि वाहन क्रमांक सी.जी.07-ए.क्‍यू./8119 के चालक द्वारा अजय साहू का एक्सीडेण्ट कर दिया गया है, जिसे ईलाज कराने के लिये अस्पताल लेकर गये हैं । प्रदर्श पी-5 मर्ग इंटीमेशन में दिनांक 07-09-2014 को 2.00 बजे सेक्टर-9 अस्पताल, भिलाई में उपचार के दौरान अजय कुमार की मृत्यु होने का उल्लेख है । मृतक अजय कुमार का मृत्यु प्रमाण-पत्र की छाया-प्रति प्रकरण में संलग्न है । प्रदर्श पी-12 के शव परीक्षण प्रतिवेदन में सिर में चोट होने से अजय कुमार की मृत्यु होने का उल्लेख है ।
10- आ.सा-2 गोपी किशन का साक्ष्य है कि दिनांक 06-09-2014 को उसने तेज रफ्तार कार को अजय को ठोकर मारते हुए देखा था । वह घटनास्थल के समीप काम कर रहा था । अनावेदक क्रमांक-1 और 2 का जवाबदावा में अभिवचन है कि वाहन के पीछे चक्के में मृतक के आ जाने से दुर्घटना हुई । इस प्रकार वाहन के उपयोग से दुर्घटना होना स्वीकृत तथ्य है । इसके अतिरिक्त उपरोक्त साक्ष्य एवं दस्तावेजों का खण्डन नहीं होने से यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि दिनांक 06-09-2014 को वाहन क्रमांक सी.जी.07-ए.क्‍यू/8119 द्वारा दुर्घटना कारित करने से अजय कुमार को गम्भीर चोटें आयी, जिससे दिनांक 07-09-2014 को उपचार के दौरान उसकी मृत्यु हो गई । अतः वाद प्रश्न क्रमांक-1 का निष्कर्ष ’’प्रमाणित’’ में दिया जाता है ।
वाद- प्रश्‍न क्रमांक-2 पर सकारण निष्कर्ष :-
11- उक्त वाद-प्रश्न अनावेदक क्रमांक-3 के अभिवचन के आधार पर विरचित किया गया है, जिससे उक्त वाद-प्रश्न का प्रमाण-भार अनावेदक क्रमांक-3 पर है । प्रकरण में अनावेदक क्रमांक-1 के वैध चालन अनुज्ञप्ति प्रस्तुत किया गया है तथा दुर्घटना दिनांक को प्रभावशील पेकेज पॉलिसी प्राईवेट व्हीकल भी प्रस्तुत किया गया है । अनावेदक क्रमांक-1 और 2 के वैध अनुज्ञप्ति तथा दुर्घटना दिनांक को दुर्घटनाकारित वाहन वैध रूप से बीमित होने के अभिवचन का खण्डन नहीं हुआ है ।
अनावेदक क्रमांक-3 की ओर से प्रकरण में बीमा शर्तों के उल्लंघन में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया है । उपरोक्त स्थिति में दुर्घटनाकारित वाहन वेगन आर क्रमांक सी.जी.07-ए.क्‍यू/8119 को दुर्घटना दिनांक: को बीमा शर्तों के उल्लंघन में चलाया जाना प्रमाणित नहीं है, अतः वाद-प्रश्न क्रमांक-2 को प्रमाणित न पाते हुए ’’प्रमाणित नहीं’’ का निष्कर्ष दिया जाता है ।
वाद-प्रश्‍न क्रमांक-3 पर सकारण निष्कर्ष :-
12- आवेदक गण ने आवेदन एवं शपथ पत्र में कथन किया है कि उनका पुत्र मृतक अजय कुमार टेलरिंग कार्य में सहायता करता था और 2500/-रुपये मासिक आय प्राप्त करता था । आवेदकगण की ओर से मृतक के आय प्राप्त करने एवं टेलरिंग कार्य में सहयोग करने के सम्बंध में कोई स्वतंत्र साक्षी अथवा दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया है । इसके विपरीत आवेदन-पत्र एवं साक्ष्य में कथन किया गया है कि मृतक घटना दिनांक: को ट्यूशन पढ़ने जा रहा था और वह कक्षा नवीं का छात्र था । प्रकरण में मृतक अजय कुमार का कक्षा आठवीं का प्रगति-पत्र संलग्न किया गया है, जिससे स्पष्ट है कि मृतक विद्यार्थी था । आ.सा-1 राजूलाल ने साक्ष्य में कथन किया है कि मृतक नवी कक्षा का विद्यार्थी था, जिससे निष्कर्ष प्राप्त होता है कि मृतक कोई आय प्राप्त नहीं करता था ।
13- आवेदक गण द्वारा मृतक की आयु, आवेदन एवं साक्ष्य में 14 वर्ष होना दर्शायी गई है । मृतक की आयु के सम्बंध में कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया है । मर्ग इंटीमेशन प्रदर्श पी-5 एवं शव परीक्षण प्रतिवेदन प्रदर्श पी-6 में मृतक की आयु 14 वर्ष दर्शायी गई है । मृतक अजय कुमार के कक्षा आठवी के प्रगति-पत्र में जन्मतिथि 01-08-2000 दर्शायी गई है, जिससे दुर्घटना दिनांक को क्षतिपूर्ति राशि के निर्धारण के लिये मृतक की आयु 14 वर्ष निर्धारित की जाती है ।
14- माननीय छ.ग.उच्च न्यायालय, बिलासपुर द्वारा प्रतिपादित न्याय दृष्टान्त श्रीमती सफारी र्बाइ  यूर्यवंशी एवं एक अन्य विरूद्ध अजय कुमार पटेल एवं एक अन्य, 2015(3) ए.सी.सी.डी. 1645 (सी.जी.) में माननीय छ.ग.उच्च न्यायालय द्वारा यह सिद्धान्त प्रतिपादित किये गये हैं कि मृतक की उम्र 12 वर्ष थी, तब उसकी काल्पनिक आय (Notional Income) 30,000/-रुपये निर्धारित किया जाना होगा तथा प्रयोज्य गुणांक 15 का होगा । यह निष्कर्ष दिया जा चुका है कि मृतक कोई आय प्राप्त नहीं करता था, अतः प्रकरण के परिस्थितियों तथा आवेदक गण के सामाजिक, आर्थिक स्थिति को देखते हुए दुर्घटना के वर्ष 2014 में मृतक की काल्पनिक आय 30,000/-रुपये वार्षिक निर्धारित की जाती है । मोटर वाहन अधिनियम की द्वितीय अनुसूची के अनुसार 15 वर्ष की आयु के व्यक्ति के मृत्यु होने पर 15 का गुणक लगाने का प्रावधान किया गया है । इसके अतिरिक्त उक्त न्याय दृष्टान्त के आलोक में अन्य स्वीकृत मदों - अन्तिम क्रियाकर्म, पुत्र के प्रेम-स्‍नेह एवं संरक्षण से वंचित होने हेतु 50,000/-रूपये दिलाया जाना न्यायसंगत प्रतीत होता है। आवेदकगण द्वारा अभिवचन कर, मृतक के मृत्यु पूर्व हुये उपचार का बिल प्रदर्श पी-13 से प्रदर्श पी-17 पेश किया गया है । प्रदर्श पी-14 में 1320/-रुपये, प्रदर्श पी-15 में 11,772/-रुपये व्यय होना दर्शाया गया है, जिसे अनावेदकगण की ओर से कोई चुनौती नहीं दी गई है । अतः अनुसूची के अनुसार चिकित्सा का वास्तविक व्यय के मद में, जो मृत्यु के पहले किया गया है, उसे पूर्णांक में 13,000/-रुपये स्वीकार किया जाना उचित प्रतीत होता है ।

15- जहां तक क्षतिपूर्ति की अदायगी के उत्तरदायित्व का सम्बंध है, अनावेदक क्रमांक-1 दुर्घटनाकारित वाहन ट्रक क्रमांक डब्ल्यू.बी.03-बी/8584 का चालक तथा अनावेदक क्रमांक-2 पंजीकृत स्वामी है एवं दुर्घटना दिनांक को उक्त वाहन अनावेदक क्रमांक-3 के पास बीमित थी, ऐसी स्थिति में इस वाद-प्रश्न को ’’आवेदकगण, अनावेदक क्रमांक-1 से 3 से संयुक्त एवं पृथक्-पृथक् रूप से 5,13,000/- रूपये प्राप्त करने के अधिकारी हैं’’ के रूप में निराकृत किया जाता है। 
 वाद प्रश्‍न क्रमांक-4: सहायता एवं वाद-व्यय:-
16- उपरोक्त साक्ष्य-विवेचना के आधार पर आवेदक गण की ओर से प्रस्तुत आवेदन-पत्र, अंतर्गत धारा-166 मोटर यान अधिनियम, अंशतः स्वीकार करते हुए निम्न आशय का अवार्ड पारित किया जाता है-
1. अनावेदक क्रमांक-1 से 3 संयुक्त एवं पृथक्-पृथक् रूप से आवेदक गण को 5,13,000/-(पांच लाख तेरह हजार) रूपये अवार्ड दिनांक से एक माह के अन्दर अधिकरण के माध्यम से अदा करेंगे ।
2. अनावेदक क्रमांक-1 से 3 संयुक्त एवं पृथक्-पृथक् रूप से आवेदक गण को उक्त राशि पर 06 प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्याज भी आवेदन प्रस्तुति दिनांक से वसूली दिनांक तक अदा करेंगे ।
3. आवेदक गण ने यदि अंतरिम क्षतिपूर्ति प्राप्त किया हो, तो उक्त राशि अवार्ड की मूल राशि में समायोजित किया जावे ।
4. उक्त क्षतिपूर्ति की राशि दोनों आवेदक बराबर-बराबर प्राप्त करेंगे ।
5. आवेदक गण को प्राप्त होने वाली राशि में से 2,00,000-2,00,000 रूपये उनके नाम से पांच-पांच वर्ष की अवधि के लिये किसी राष्ट्रीयकृत बैंक में सावधि खाता में जमा किया जावेगा, जिस पर वे किसी भी प्रकार की अग्रिम अथवा लोन की सुविधा प्राप्त नहीं कर  सकेंगे तथा परिपक्वता अवधि पूर्ण होने पर सम्पूर्ण राशि वे स्वयं प्राप्त कर सकेंगे ।
6. आवेदक गण, शेष राशि एवं ब्याज की राशि नगद प्राप्त कर सकेंगे ।
7. अधिवक्ता-शुल्क 500/-(पांच सौ) रूपये निर्धारित किया जाता है ।
........... तद्नुसार व्यय-तालिका बनाई जावे ।

 सही/-
दिनांक: 20 सितम्बर, 2016
(सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू)
 प्रथम अतिरिक्त मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण
 दुर्ग (छ.ग.)

Tuesday 13 December 2016

राजेश उर्फ प्रीतम सिंह, आ0-उपेन्द्र सिंह विरूद्ध छत्तीसगढ़ शासन

 
न्यायालय-अपर सत्र न्यायाधीश, दुर्ग
(छत्तीसगढ़)
(पीठासीन न्यायाधीश राजेश श्रीवास्तव)
सत्र प्रकरण क्रमांक 130/2013
र्सी .आइ .एस.नं. 00004552013
राजेश उर्फ प्रीतम सिंह, आ0-उपेन्द्र सिंह,
उम्र 19 साल, निवासी बेलमा, थाना-
खिजरसराय, जिला गया,
(बिहार) ---आव ेदक
// वि रू द्ध //
छत्तीसगढ़ शासन,
द्वारा आरक्षी केन्द्र- कुम्हारी,
जिला दुर्ग । ..............अभियोजन
----------------------------------------
आवेदक की ओर से अधिवक्ता श्री दिनेश सिंह ।
शासन की ओर से श्री सुरेश प्रसाद शर्मा, विशेष लोक अभियोजक ।
----------------------------------------
// आ दे श //
(आज दिनांक 01/01/2015 को घोषित)
1- इस आदेश द्वारा सत्र प्रकरण क्रमांक 130/2013 म ें
आरोपी क्र.-8 प्रीतम सिंह उर्फ राजेश सिंह (जिसे आगे इस आदेश में आवेदक के रूप में संबोधित किया जावेगा) द्वारा प्रस्तुत आवेदन दिनांक 09/10/2014 का निराकरण किया जा रहा है। इस आवेदन पत्र के माध्यम से आवेदक राजेश उर्फ प्रीतम सिंह ने यह निवेदन किया था कि उसे इस प्रकरण में वयस्क बताकर अभियोगपत्र प्रस्तुत किया गया था, जबकि उसकी जन्मतिथि 04/05/1999 की है और वह घटना दिनांक 06/02/2013 को 18 वर्ष से कम आयु का था, अतः आवेदक ने निवेदन किया था कि उसे केन्द्रीय कारागार दुर्ग से बाल सम्प्रेक्षण गृह दुर्ग स्थानान्तरित किया जावे ।
height="480"></iframe>

Thursday 3 November 2016

छ.ग. राज्य विरूद्ध श्रीमती शान्ति सिन्हा

न्यायालयः-विशेष न्यायाधीश,(पी.सी.एक्ट) एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश,
 बलौदाबाजार ,जिला-बलौदाबाजार,छ.ग.
( पीठासीन अधिकारी- बृजेन्द्र कुमार शास्त्री)
 विशेष सत्र प्रकरण (ए.सी.बी.) क्रं0 01/2015
 संस्थित दिनांक 08.04.2015
 C.I.S.17/2015

छ.ग. राज्य
द्वारा भ्रष्टाचार निवारण शाखा, रायपुर
केम्प बलौदाबाजार,जिला-रायपुर (छ0ग0)--                                 ---------अभियोजन
-:विरूद्ध:-
श्रीमती शान्ति सिन्हा पति योगेश कुमार सिन्हा, उम्र 35 वर्ष
पटवारी हल्का नम्बर-09,ग्राम चौरेंगा, तहसील सिमगा,
जिला-बलौदाबाजार-भाटापारा (छ0ग0)- -                                      --------- अभियुक्ता
---------------------------------------
राज्य द्वारा श्री अमिय अग्रवाल अतिरिक्त लोक अभियोजक।
आरोपिया की से श्री रूपेश त्रिवेदी अधिवक्ता।
--------------------------------------
 // नि र्ण  य //
 {आज दिनांक 24/अगस्त/2016 का घोषित}
01/ आरोपिया श्रीमती शान्ति सिन्हा जो कि एक लोक सेवक के पद पर पदस्थ रहते हुए शासकीय कार्य हेतु वैध पारिश्रमिक से भिन्न रिश्वत के रूप में 3000/-रूपये(तीन हजार रूपये) मांग कर आपराधिक कदाचार किया। इस प्रकार आरोपिया के द्वारा अन्तर्गत धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दण्डनीय अपराध कारित करने का आरोप है।
02/- आरोपिया के द्वारा यह स्वीकृत है कि वह पटवारी हल्का नम्बर-09 ग्राम चौरेंगा, तहसील सिमगा में पटवारी के पद पर पदस्थ रहते हुए एक लोक सेवक है।
03/- अभियोजन का मामला संक्षेप में इस प्रकार है कि, प्रार्थी लोभन वर्मा अपने पिता के मृत्यु होने के कारण पिता के नाम की भूमि का फौती चढाने के लिए पटवारी हल्का नंम्बर- 09 के पटवारी श्रीमती शांति सिन्हा को एक माह पहले आवेदन किया था, उसके दोनो बहनो ने भी स्टाम्प पेपर में लिखकर दिया था कि पूरी जमीन लोभन वर्मा के नाम कर दिया जावे। पटवारी श्रीमती शान्ति सिन्हा ने फौती चढाने के एवज में प्रार्थी से 3000/-रूपये(तीन हजार रूपये) रिश्वत की मांग किया वह रिश्वत नही देना चाहता था इसलिए उसने एन्टी करप्शन व्‍यूरो रायपुर से सम्पर्क किया जहां एन्टी करप्शन ब्यूरो के द्वारा प्रार्थी की शिकायत का सत्यापन एक डिजिटल वाईस रिकार्डर देकर कराया गया ।
प्रार्थी लोभन वर्मा ने डिजिटल वाईस रिकार्डर को आरोपिया शान्ति सिन्हा से सिमगा जाकर रिश्वत की मांग की वार्तालाप को रिकार्ड किया जिसके आधार पर एन्टी करप्शन व्‍यूरो के द्वारा योजना तैयार कर दिनांक 09.05.2014 को ट्रेप दल पंच साक्षियो सहित रायपुर से सिमगा पहुंचा,प्रार्थी से द्वितीय शिकायत पत्र प्राप्त कर रिश्वत पूर्व बातचीत का वाईस रिकार्डर पंचसाक्षियो को सुनाया गया, पंचसाक्षियों के द्वारा आवेदन पत्र पर कार्यवाही कार्यवाही किये जाने की टीप अंकित किया गया उसके पश्चात् आरोपिया के विरूद्ध प्रथम दृष्टया धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 के तहत अपराध पाये जाने पर नम्बरी अपराध पंजीबद्ध किया गया और औपचारिकताएं पूर्ण करते हुए आरोपिया के टेबल से रिश्वती रकम बरामद किया उसके पश्चात् आवश्यक कार्यवाही पूर्ण कर अभियोजन की स्वीकृति शासन से प्राप्त कर अभियोगपत्र न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया ।
04/ अभियोगपत्र प्रस्तुत होने पर आरोपिया के विरूद्ध प्रथम दृष्टया मामला पाये जाने पर अन्तर्गत धारा 7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत आरोप विरचित किया गया आरोपिया का अभिवाक लिया गया, आरोपिया के द्वारा अपराध अस्वीकार किया गया एवं विचारण चाहा गया ।
05/- न्यायालय के समक्ष निम्न विचारणीय प्रश्न है:-
(1) क्या आरोपिया शान्ति सिन्हा के द्वारा लोक सेवक पटवारी के पद पर रहते हुए प्रार्थी  लोभन वर्मा  से 3000/- रूपये (तीन हजार रूपये) रिश्वत के रूप में फौती दर्ज  कराने के लिए मांग की गयी ?
(2) क्या आरोपिया शान्ति सिन्हा के द्वारा फौती दर्ज किये जाने हेतु रिश्वत के रूप में 3000/-रूपये (तीन हजार रूपये) प्राप्त की गयी ?
(3) दोषसिद्धि अ थवा दोषमुक्ति ?
 -:सकारण निष्कर्ष :-
विचारणीय प्रश्‍न क्रमांक 01 एवं 02:- साक्ष्य की पुनरावृत्ति से बचने के लिए विचारणीय प्रश्न क्रमांंक 01 एवं 02 का निराकरण एक साथ किया जा रहा है।
06/- आरोपिया के विरूद्ध, प्रार्थी के पिता के मृत्यु पश्चात् प्रार्थी का नाम राजस्व अभिलेखों पर दर्ज किये जाने हेतु फौती दर्ज कराने के लिए 3000/-रूपये(तीन हजार रूपये) की रिश्वत मांगने का आरोप है ? यह अविवादित है कि, आरोपिया पटवारी है।
07/- अभियोजन साक्षी सुन्दरलाल धृतलहरे (अ0सा006) के द्वारा अपने अभिसाक्ष्य में यह बताया गया है कि, आरोपिया शान्ति सिन्हा के शासकीय सेवा में प्रथम नियुक्ति आदेश एवं सेवा निवृत्ति एवं सेवा से पृथक करना एवं सक्षम अधिकारी का पद नाम एवं पदस्थापना आदेश एवं सेवा पुस्तिका का प्रमाणित प्रतिलिपि ए.सी.बी. को दिया था जो कि, क्रमशः प्रदर्श पी0 12, 13 एवं 14 है । प्रदर्श पी-12 के अनुसार श्रीमती शान्ति सिन्हा की शासकीय सेवा में प्रथम नियुक्ति दिनांक 13.2.2007 को होना एवं सेवा से निवृत्ति दिनांक 13.02.2041 को है। पटवारी की नियुक्ति का अधिकार अनुविभागीय अधिकारी राजस्व को है। इस साक्षी के द्वारा श्रीमती शान्ति सिन्हा पटवारी की पदस्थाना एवं सेवा पुस्तिका की प्रतिलिपि संलग्न की गयी है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि,
आरोपिया पटवारी के पद पर होते हुए एक लोक सेवक है।
08/- आरोपिया के द्वारा यह स्वीकृत भी है कि, ग्राम चौरेंगा पटवारी हल्का नम्बर-09 तहसील सिमगा जिला बलौदाबाजार में पटवारी के पद पर कार्यरत थी।
09/- अब प्रश्न यह है कि, क्या आरोपिया ने प्रार्थी लोभन वर्मा से फौती चढाये जाने हेतु 3000/-रूपये (तीन हजार रूपये) रिश्वत के रूप में मांग की थी ?
10/- अभियोजन साक्षी एस.के.सेन ( अ0सा009) ने अपने साक्ष्य में बताया है कि प्रार्थी लोभन वर्मा निवासी ग्राम चौरेगा ने दिनांक 06.05.2014 को कार्यालय में आकर पुलिस अधीक्षक को लिखित शिकायत पेश किया था जिसमें यह बताया गया था कि उसके पिता की फौत होने से जमीन पर उसका नाम दर्ज करने के लिए पटवारी हल्का नं. 09 की पटवारी श्रीमती शांति सिन्हा ने 3000/-रूपये रिश्वत की मांग किया है जिसे वह देना नहीं चाहता है और रंगे हाथों पकडाना चाहता है। पुलिस अधीक्षक आर.पी.साय के द्वारा कार्यवाही करने हेतु निर्देशित किया और आवेदन उसे सौंपा गया तब इस साक्षी के द्वारा शिकायत का सत्यापन डिजिटल वायस रिकार्डर से करने के पश्चात् ट्रेप दल का गठन किया और फिर योजना बद्ध तरीके से औपचारिक कार्यवाहियों को पूर्ण करते हुए दिनांक 09.05.2014 को सिमगा बस स्टेण्ड पहुंचा था ट्रेप दल में दो पंच साक्षी कलेक्टर रायपुर को पत्र भेजकर बुलाये गये थे सिमगा बस स्टेंड पर दिनांक 09.05.2014 प्रार्थी लोभन वर्मा मिला था जिसने रिकाडेर्ट
वार्तालाप वायस रिकार्डर तथा द्वितीय शिकायत आवेदन पेश किया था द्वितीय शिकायत आवेदनपत्र को पंच साक्षियों द्वारा पढकर कर कार्यवाही करने हेतु टीप लिखा गया था एवं रिकार्डट वार्तालाप को पंच साक्षियों को भी सुनाया गया था और उसका लिप्यांतरण प्रार्थी के बताये अनुसार पंच साक्षियों के समक्ष किया गया था और उसकी आवाज की सी.डी. भी तैयार की गयी थी। प्रार्थी लोभन वर्मा के द्वारा रिश्वत के रूप में दी जाने वाली रकम पॉच पॉच सौ रूपये के 6 नोट कुल तीन हजार पेश किया गया था जिसे पंच साक्षी एस.के.लाल के हाथों में दिया गया और उनके द्वारा नोटों के नम्बर को बोलकर नोट करवाया गया था जो प्रारंभिक पंचनामा में नोट किया गया था उसके पश्चात् उन नोटों पर फिनाफ्थलीन पावडर लगाने के लिए आरक्षक रामप्रवेश मिश्रा को दिया गया था रामप्रवेश मिश्रा ने नोटों पर फिनाफ्थलीन पावडर की हल्की परत लगा कर प्रार्थी की जमा तलाशी के पश्चात उसके पेंट की जेब में रख दिया गया था और उसे समझाईस भी दिया गया था कि इन नोटों को बार-बार नहीं छुऐगा। आरोपी के द्वारा मांगे जाने पर उसे देगा और फिर यह भी ध्यान रखेगा कि इन नोटों को कहां रखेगा। उसके पश्चात् प्रदर्शन घोल की कार्यवाही की गयी थी। प्रार्थी लोभन वर्मा को एक डिजिटल वायस रिकार्डर दिया गया था और उसे समझाया गया था कि रिश्वत देते समय के बातचीत को रिकार्ड करेगा। प्रार्थी को छाया साक्षी एस.के.लाल के साथ आरोपी के कार्यालय में भेजा गया, प्रार्थी आरोपी के कक्ष में गया और थोडी देर बाद बाहर निकाल कर ईशारा किया तो सभी सदस्य पटवारी के कक्ष में गये तथा महिला आरक्षक रोजलीन ने आरोपी के हाथ को पकडा था और नाम पूछने पर उसने अपना नाम शांति सिन्हा और पटवारी होना बताया था। रिश्वत के बारे में पूछताछ करने पर आरोपी ने रिश्वत लेने से मना किया, तब शिवशरण साहू से सोडियम कार्बोनेट का घोल बनाने के लिए कहा गया और उसमें प्रार्थी और आरोपी को छोड करके शेष सदस्यों का हाथ धुलवाया गया तो घोल का रंग नहीं बदला पुनः सोडियम कार्बोनट का घोल तैयार कर आरोपिया का हाथ धुलाया गया तब भी घोल का रंग परिवर्तित नहीं हुआ तब प्रार्थी से पूछा गया कि रिश्वत की रकम को आरोपी कहा रखा है तब प्रार्थी ने बताया था कि उसने नोट हाथ में नहीं लिया था टेबल पर रखे रजिस्टर में रखने को कहा था तब रजिस्टर पर रख दिया था। वहांं पर बैठे एक अन्य व्यक्ति झम्मन वर्मा ने बताया कि आरोपिया के कहने पर प्रार्थी ने यह नोट टेबल पर रखा था। प्रार्थी बार-बार गिनने के लिए बोल रहा था लेकिन आरोपी नहीं गिन रखी थी तब झम्मन वर्मा ने नोटों को गिना था। पुनः सोडियम कार्बोनेट का घोल तैयार कराकर झम्मन वर्मा का हाथ धुलवायागया था तो घोल का रंग गुलाबी हो गया था और रजिस्टर को भी जहां पर नोट रखे हुए थे साफ कागज से पोछकर सोडियम कार्बोनेट के घोल में डुबोया गया था तो घोल का रंग गुलाबी हो गया था।
11/- प्रार्थी को दिया गया दूसरा वायस रिकार्डर जिसमें रिश्वत देते समय की बातचीत रिकार्ड करने के लिए दिया था उसे प्रार्थी द्वारा प्रस्तुत किया गया जिसे सुनने का प्रयास किया गया किन्तु उसमें बहुत से आवाजे थी इसलिए स्पष्ट नहीं हो रहा था कि कौन क्या बोल रहा था।
12/- अभियोजन साक्षी लोभन राम (अ0सा0 01) के द्वारा अपने अभिसाक्ष्य में बताया गय है कि, उसके पिता जी की मृत्यु हो गयी थी तो उसकी फौती उठाने के लिए एक माह तक उसे घुमायी थी। आरोपिया ने उससे पैसा की मांग नहीं की थी गांव वालों ने कहा था कि जबतक पैसा नहीं दोगे तब तक कोई काम नहीं होगा तब वह रायपुर ए0सी0बी0 गया था और वह रायपुर ए0सी0बी0 इसलिए गया था क्योंंकि वह काम नहीं कर रही थी उसे गांव का रविदास लेकर गया था उसने लिखित में शिकायत दिया था और उस शिकायत को रविदास ने लिखा था शिकायत पत्र प्र0पी0 01 है । इस साक्षी के द्वारा यह भी बताया गया है कि, वहां उसे एक टेप रिकार्ड दिया गया था जिसे रविदास ने रख लिया था जिसमें क्या टेप किया गया था उसे नहीं मालूम है उसके बाद पुनः वह रायपुर शिकायत करने के लिए गया था दूसरा शिकायत पत्र प्र0पी0 02 है । इस साक्षी के द्वारा यह बताया गया है कि, वहांं लिखापढी हुई थी लेकिन क्या हुई थी उसे नहीं मालूम है। टेपरिकार्ड का लिप्यांंतरण किया गया था और टेप रिकार्ड उससे जप्त किया गया था, उसके पश्चात् आठ-नौ तारीख को ए0सी0बी0वाले उसे बुलाये थे। अभियोजन पक्ष के द्वारा पक्षद्रोही घोषित कराये जाने के पश्चात् पूछे गये सूचक प्रश्न के अन्तर्गत इस सुझाव को गलत बताया है कि, पटवारी ने फौती दर्ज कराने के नाम पर 3000/-रूपये(तीन हजार रूपये) रिश्वत की मांग की थी तथा इस साक्षी ने यह भी बताया है कि, ए0सी0बी0 कार्यालय में जाकर उसने शिकायत रविदास के कहने पर किया था । आरोपी से पैसे की लेन-देन की बात की टेप हुआ था या नहीं उसे नहीं मालूम यह बात रविदास बता सकता है।
13/- इस साक्षी के साक्ष्य से स्पष्ट होता है कि, आरोपिया के द्वारा प्रार्थी से सीधे रिश्वत की कोई मांग नहीं की गयी थी। प्रार्थी गांंव वालोंं के यह कहने पर कि जब तक पैसा नहीं दोगे काम नहीं होगा, रिश्वत देने में काम होता है। ए0सी0बी0कार्यालय में शिकायत के सत्यापन के लिए टेप दिया था वह भी प्रार्थी द्वारा अपने पास नहीं रखा गया था एक अन्य व्यक्ति रविदास के द्वारा उस टेप को रखा गया था। इसके अतिरिक्त प्रार्थी का यह भी कहना है कि शिकायत करने के लिए ए0सी0बी0 कार्यालय रविदास के कहने से गया था।
14/- प्रार्थी लोभन वर्मा के द्वारा अभियोजन साक्षी एस.के.सेन निरीक्षक के कथनोंं का समर्थन नहीं किया गया है। प्रार्थी लोभन वर्मा के द्वारा स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि आरोपिया के द्वारा उससे रिश्वत की कोई मांग नहीं की गयी थी गांंव वालोंं ने कहा था कि जबतक रिश्वत नहीं दोगे तब तक काम नहीं होगा साथ ही यह भी बताता है कि, रविदास ने उसे ए.सी.बी. कार्यालय लेकर गया था और उसने ही शिकायत पत्र लिखा था और यह भी बताता है कि टेप रिकार्डर को रविदास अपने पास रखा उसके द्वारा टेप रिकार्डर को अपने पास नहीं रखा था। साथ ही प्रार्थी यह भी बताता है कि वह इस बात की शिकायत करने गया था कि, आरोपिया पटवारी उसका काम नहीं कर रही है। 
15/- अभियोजन साक्षी निरीक्षक एस.के.सेन एवं पंच साक्षियों के साक्ष्य से भी यह स्पष्ट होता है कि आरोपिया के द्वारा रिश्वत की रकम अपने हाथ में नहीं ली गयी थी, रिश्वत की रकम टेबल पर पायी गयी थी। प्रार्थी के द्वारा जो रकम रिश्वत के रूप में पटवारी को रंगे हाथ पकडे जाने हेतु दिया गया था, वह रकम प्रार्थी के हाथ से लिया जाना प्रमाणित नहीं है हालांकि यह प्रमाणित है कि आरोपिया के रजिस्टर पर रखा गया था, और वह वही नोट थे जो कि फिनाफथलीन पावडर लगाकर आरोपी को दिये जाने के लिए दिया गया था। प्रमुख तथ्य यह है कि क्या आरोपिया के द्वारा रिश्वत की मांग की गयी थी ?
16/- आरोपिया की ओर तर्क दिया गया है कि , आरोपिया के द्वारा रिश्वत की कोई मांग नहीं की गयी थी क्योंकि प्रार्थी लोभन वर्मा के द्वारा रिश्वत के मांग के संबंध में क्लेशमात्र भी कथन नहीं किया गया है और जब मांग के सबंध में सारवान साक्ष्य का अभाव है तो मात्र दुषित धन की बरामदगी के आधार पर दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता जिसके समर्थन न्याय निर्णय N.Sunkanna v. State of Andhra Pradesh. AIR. 2015 SC (Criminal) 1943  जिसमें यह अभिनिर्धा रित किया गया है कि, Accused alleged to have demanded and
accepted bribe of Rs. 300/- from complainant, a fair price shop dealer by threatening to seize stocks and foist a false case against him- Complainant himself had disowned his complaint and has turned
hostile- There is no other evidence to prove that the accused had made any demand--
Mere possession and recovery of currency notes from accused without proof of demand would not constitute offence under S.7-- 
Unless there is proof of demand of illegal gratification proof of acceptance will not follow--Legal presumption under S. 20 hence cannot be drawn--Accused acquitted.
अवलंबित एक अन्‍य न्‍याय निर्णय M.R. Purushotham v. State of Karnataka Pradesh. AIR. 2015 SC (Criminal) 139 का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि ProofAllegations
that accused working as Second Division Survey or demanded and accepted Rs. 500/- from complainant for issuance of survey sketch --Complainant himself not supporting prosecution case insofar as demand by accused is concerned--Mere possession and recovery of the currency notes from accused without proof of demand would not attract offence under13(1)(d)-
अवलंबित एक अन्य न्याय निर्णय Selvaraj v. State of Karnataka. AIR. 2015 SC (Criminal) 1829 का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया है कि Criminal P.C. (2of 1974),S. 378--Appeal against acquittal- -Bribery case --Acceptance of bribe has not been established by adducing cogent evidence--
View takon by trial court while acquitting accused was a plausible one --Same cannot be interfered with by High Court, that too without coming to close quarters of reasoning and re- ap praisal of evidence-
एक न्‍याय निर्णय PRAMOD KUMAR LAL v. STATE OF M.P. (NOW C.G.) 2015 (3) C.G.L.J. 308
का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धा रित किया गया है कि अभिनिर्णी त- दुग्धशाला में जाकर निजी प्रैक्टिस करने की अनुमति देने का प्रावधान है और पशु चिकित्सा मैनुवल के अनुसार शुल्क भी प्रभार्य है-मैनुवल के लेखांश(प्ररदर्श  पी/3) के परिशीलन से स्पष्ट रूप से यह सिद्ध होता है कि, चिकित्सक स्थल पर जाने पर शुल्क लेने का हकदार है-अपीलार्थी  दिनांक 19.03.1987 को प्रदर्श  पी/21 द्वारा काफी पहले पशुओं के लिए उपयुक्तता प्रमाण-पत्र जारी कर चुका था, और बीमा के लिए निक्षेप के चालान प्रदर्श  18क- और प्रदर्श  पी/20 में मांग की तारीख से काफी पहले जारी कर दिये गये थे-उन परिस्थितियों से पृथक कलुषित धन की केवल बरामदगी जिसके अधीन उसका संदाय किया जाता है, उस समय अभियुक्त को दोषसिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं है जब वाद में सारवान साक्ष्य विश्वसनीय न हो-रिश्वत के संदाय को सिद्ध करने अथवा यह दर्शित करने के लिए विश्वसीनय साक्ष्य के अभाव में कि अभियुक्त के धन को उसका रिश्वत होना जानते हुए स्वेच्छया स्वीकार किया था, स्वयं बरामदगी अपने आप में अभियुक्त के विरूद्ध अभियोजन के आरोप को सिद्ध नहीं कर सकती है।
एक अन्य न्याय निर्णय SMT.MEENA v. STATE OF MAHARASHTRA II. (2000)CCR 118 (SC) SUIPREM COURT OF INDIA का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धा रित किया गया है कि 
(i) Bribery: Mere Recovery of Currency Note of Rs. 20/- Denomination Lying on pad on Table : Insufficient proof of Acceptance of Bribe--Currency note in question was not recovered from person on from table drawer but found on pad on table and Seized from that place by trap party Lady Constable, Shadow witness, who first arrived on the spot after signal was given by PW 1, was not examined at the trial Evidence of DW 1 completely belies prosecution storyCorroboration essential in case like this for what actually transpired during, alleged occurrence and acceptance of bribe, wanting
in this case--Results of phenolphthalein test not relevant perfunctory nature of materials and prevaricating type of evidence of P Ws 1 and 3, having strong prejudice against appellant --Not safe but dangerous of rest conviction upon their testimony.
(ii) Criminal Trial : Shadow Witness Presence and Importance Always Favoured by Law in Trap Party--To enable this witness to see and overhear what happens and how it happens, law has always favoured presence & importance of shadow witness in trap party.
एक अन्य न्याय निर्णय गणपती सान्या नाइक बनाम कर्नाटक राज्य 2007(3) सी सी एस सी 1487 (एस सी) का अवलंब लिया गया है जिसमें यह अभिनिर्धा रित किया गया है कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम-, 1988-धारा-7 एवं 13-रिश्वतखोरी का जाल-विचारण न्यायालय का संपरीक्षण कि अत्यधिक प्रारम्भिक प्रक्रम पर ही प्रतिरक्षा का अभिवाक यह कि परिवादी की अपीलार्थी  के प्रति घोर शत्रुता-और यह कि करेंन्सी नोट पूर्ववर्ती  के द्वारा मेज पर रखे गये, जो सम्भाव्य स्पष्टीकरण--यह दर्शित करने वाला साक्ष्य कि करेन्सी नोटों का अपीलार्थी  द्वारा स्पर्श  तक नहीं, या उसके शरीर से उसकी बरामदगी नहीं--
अभियोजन मामला यह कि मेज पर धन रख दिये जाने के तत्काल बाद परिवादी को सुसंगत दस्तावेज हस्तगत- अत:, तर्क  कि रिश्वत की मांग करने का कोई  अवसर नहीं--भी सम्भाव्य--विचारण न्यायालय द्वारा दोषमुक्ति के विरूद्ध अपील में उच्च न्यायालय के लिए विचारण न्यायालय के निर्णय को उलटने का कोई  न्यायोचित्य ही नहीं- उच्च न्यायालय का निर्णय अपास्त।
17/- प्रतिरक्षा पक्ष की ओर से उपरोक्त न्याय निर्णयनों का अवलंब लेते हुए तर्क दिया गया है कि, प्रार्थी लोभन वर्मा जो कि प्रकरण का सारवान साक्षी है पक्षद्रोही रहा है एंव अन्य साक्ष्य समर्थन कारी साक्षी है जिनके साक्ष्य के आधार पर आरोपिया को दोषसिद्ध नहीं किया जा सकता। प्रार्थी के द्वारा स्पष्ट रूप से यह बताया गया है कि, आरोपी ने उससे पैसे की मांग नहीं की है। रविदास उसे लेकर गया था और विवेचक ने भी अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि रविदास उसके साथ आया था, एवं कार्यावाही के दौरान ही रविदास मौजूद था, उसके बावजूद रविदास को साक्षी नहीं बनाया गया है। रिश्वत के रूप में ऐच्छिक स्वीकृति नहीं है, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत ट्रेप कार्यवाही के दौरान एक छाया साक्षी का होना आवश्यक होता है जबकि इस प्रकरण में कोई छाया साक्षी नहीं है। पी0डब्ल्यू0 2 ने अपने अभिसाक्ष्य में बताया है कि लिप्यातरण पूर्ण में ही कर लियागया था और साथ ही साक्ष्य  अधिनियम की धारा 65 बी के तहत प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किया गया है। आरोपिया के द्वारा प्रार्थी का काम 15 दिनों के भीतर ही कर दिया गया था सिर्फ ऋण पुस्तिका नहीं होने के कारण उसे ऋण पुस्तिका प्रदान नहीं की गयी थी जिसे उपलब्ध होने पर दिया जाना कहा गया था, किन्तु दुर्भावनावश रविदास के कहने पर क्योंकि रविदास और प्रार्थी के शासकीय भूमि से अतिक्रमण हटाया गया था इसलिए झूठा फसाया गया है।
18/- प्रकरण के संपूर्ण साक्ष्य का मूल्यांकन करने से स्पष्ट होता है कि, आरोपिया के कक्ष से रिश्वत के रूप में दी जाने वाली रकम उसके रजिस्टर में रखे गये स्थिति में बरामद हुआ था, और वह वही रकम था जो कि फिनाफ्थलीन पावडर लगाकार आरोपिया को दिये जाने हेतु प्रार्थी को दिया गया था। प्रार्थी लोभन वर्मा पूर्णतः पक्षद्रोही रहा है और उसने आरोपिया के द्वारा पैसे की मांग नहीं किये जाने का स्पष्ट कथन किया गया है। प्रार्थी ने यह भी बताया है कि वह कार्यवाही रविदास के कहने पर किया था। आरोपिया के द्वारा रिश्वत हाथ में भी नहीं लिया गया है।
आरोपिया की ओर से इस मामले से हुबहू मिलते जुलते तथ्य से संबंधित एक न्याय निर्णयन् गणपती सान्या नाइक बनाम कर्ना टक राज्य 2007(3) सी सी एस सी 1487 (एस सी) का अवलंब लिया गया है इस मामले में भी रिश्वत की रकम मेंज पर प्राप्त हुआ था, जिसे आरोपिया के द्वारा स्पर्श नहीं किया गया है जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने आरोपी को दोषमुक्त घोषित किया है।
19/- उपरोक्त न्याय निर्णयन् के आलोक में यह पाया जाता है कि, इस मामले में भी आरोपिया के द्वारा रिश्वत की रकम प्राप्त नहीं की गयी हैं हालांंकि रिश्वत की रकम आरोपिया के मेंज से बरामद हुआ है, और प्रतिरक्षा पक्ष यह स्पष्ट नहीं किया है कि, जिस समय प्रार्थिया के द्वारा मेंज पर रूपये रखे गये उस समय उसके द्वारा किस प्रकार से विरोध किया गया उसका कोई स्पष्टी करण नहीं है किन्तु कार्यावाही से यह स्पष्ट है कि, मेंज पर रखने के पश्चात् ही प्रार्थी तत्काल बाहर निकलकर ईशारा किया और ट्रेपदल के सदस्य आकर आरोपिया को पकड लिये। अभियोजन पक्ष के द्वारा आरोपिया के द्वारा रिश्वत की मांग किये जाने के संबंध में कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है। प्रार्थी को जो वायस रिकार्डर प्रदान किये गये थे उसमें प्रथम वायस रिकार्डर के संबंध में प्रार्थी के द्वारा स्पष्ट रूप से बताया गया है कि उसे रविदास के द्वारा रखा गया था उसके द्वारा उसमें कोई आवाज टेप नहीं की गयी थी और दूूसरे वायस रिकार्डर में कोई आवाज नहीं है। साथ ही छाया साक्षी के रूप में भी आरोपिया के कक्ष में प्रार्थी के साथ नहीं भेजा गया है जबकि इस प्रकार के मामले में छाया साक्षी का होना नितांत आवश्यक है। इस प्रकार आरोपिया के द्वारा रिश्वत की मांग किये जाने का कोई साक्ष्य प्रकरण में पेश नहीं है।
विचारणीय प्रश्‍न क्रमांक 03:-
20/- प्रकरण में आये अभिसाक्ष्य से आरोपिया के द्वारा प्रार्थी से रिश्वत की मांग किया जाना एवं उसे स्वेच्छा से प्रतिग्रहण करना प्रमाणित नहीं होता है। अतः उपरोक्त न्याय निर्णयनों के आलोक में आरोपिया को सन्देह का लाभ देते हुए अन्तर्गत धारा-7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम एवं धारा-13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के आरोप से दोष मुक्त किया जाता है।
21/- आरोपिया जमानत पर है उनके जमानत मुचलके छः माह तक प्रवृत्त रहेगे।
22/- प्रकरण में जप्तशुदा राशि पॉच-पॉच सौ के छः नोट कुल 3000/-रूपये (तीन हजार रूपये) के संबंध में अभियुक्ता एवं प्रार्थी के द्वारा कोई दावा नहीं किया गया है। प्रकरण में आये साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि, उक्त रकम प्रार्थी द्वारा प्रदान किया गया था, अतः उक्त रकम 3000/-रूपये(तीन हजार रूपये) अपील अवधि पश्चात् प्रार्थी को वापस किया जावे। अपील होने की स्थिति में माननीय अपीलीय न्यायालय के निर्णयानुसार व्ययन किया जावे।
23/- धारा 428 द0प्र0सं0 का प्रमाण पत्र तैयार किया जावे।
24/- निर्णय की प्रति एक-एक लोक अभियोजक एवं जिला
दण्डाधिकारी बलौदाबाजार को प्रेषित किया जावे।
निर्णय घोषित हस्ताक्षरित व दिनांकित कर मेरे निर्देशानुसार टंकित
 किया गया
 सही/-
(बृजेन्द्र कुमार शास्त्री)
 विशेष न्यायाधीश(पी.सी.एक्ट)
 एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश
बलौदाबाजार,छ0ग0 

Wednesday 2 November 2016

छत्तीसगढ़ शासन विरूध्द महेशराव बाघमारे व अन्‍य curruption case mahesh rao bagmare

न्यायालय:-विशेष न्यायाधीश(भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम)
एवं प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, रायपुर (छ0ग0)
 (पीठासीन न्यायाधीश - जितेन्द्र कुमार जैन)

विशेष दाण्डिक प्रकरण क0-04/1997
सीआइएस नंबर 55/97
संस्थित दिनांक-01.04.1997
छत्तीसगढ़ शासन,
द्वारा-आरक्षी केन्द्र, एंटी करप्‍शन ब्यूरो, 
रायपुर (छ0ग0)                                                                         -- अभियोजन।
 // वि रू ध्द //
1/महेशराव बाघमारे, उम्र 39 वर्ष, 
पिता गोपीचंद,
तत्का0 कार्यपालन अधिकारी 
अंत्यावसायी समिति,
कार्यपालन अधिकारी 
जिला अंत्यावसायी कार्यालय, 
बिलासपुर, (छ0ग0)
2/सलीम बख्श शेख, उम्र 41 वर्ष, 
पिता शब्बीर बख्श शेख,
तत्का0 लिपिक 
जिला अंत्यावसायी समिति रायपुर,
वर्तमान-लेखापाल 
जिला अंत्यावसायी कार्यालय, 
बिलासपुर, (छ0ग0)
3/गणेश ठाकरे, उम्र 55 वर्ष, 
पिता स्व0उत्तमराव ठाकरे,
भृत्य जिला अंत्यावसायी समिति रायपुर, 
जिला अंत्यावसायी कार्यालय, 
निवासी कालीबाडी चौक,रायपुर, (छ0ग0)
4/मनोज कुमार जसवानी, उम्र 55 वर्ष, 
पिता स्व0ओटनदास जसवानी, निवासी
डी-26, सेक्टर-4, देवेन्द्र नगर, रायपुर, (छ0ग0)
5/अरूण बरेठवार, उम्र 63 वर्ष,
पिता स्व0गनपत राव, 
निवासी 10ए, चाणक्य काम्पलेक्स,
देवेन्द्र नगर, थाना गंज, रायपुर, (छ0ग0)                                           -- आरोपीगण।
--------------------------------------
अभियोजन व्दारा श्री योगेन्द्र ताम्रकार विशेष लोक अभियोजक।
आरोपी मनोज व्दारा श्री एस0के0शर्मा अधिवक्ता ।
आरोपी सलीम, महेश एवं गणेश व्दारा श्री मनीष सिन्हा अधिवक्ता ।
आरोपी अरूण द्वारा श्री शरद राठौर अधिवक्ता ।
---------------------------------------------
>
// निर्णय //
( आज दिनांक: 07.07.2016 को घोशित )
1. आरोपीगण के विरूध्द भारतीय दण्ड विधान की धारा 120-बी, 409, विशेष दाण्डिक प्रकरण क्रमांक- 03/1997 420, 467, 468, 471, 477 तथा भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा- 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के अंतर्गत यह आरोप है कि आरोपीगण ने वर्ष 1995 में या उसके लगभग परस्पर सहमति द्वारा एकराय होकर अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति मर्यादित (जिसे आगे समिति कहा गया है) के हितग्राहियों के नाम से फर्जी सदस्य बनाकर, उनके फर्जी प्रकरण तैयार कर उन्हें बेैंक में भेजे बिना भेजना बताकर बैंक द्वारा अनुदान की और मार्जिन की राशि की मांग किये बिना ही अनुदान राशि और मार्जिन राशि का चेक भेजा तथा अनुदान राशि भेजकर उस राशि को पे-आर्डर के द्वारा अन्य किसी व्यक्ति के खाते में जमा कर मार्जिन राशि की एफ0डी0आर0 बनवाकर उसे समय-सीमा से पूर्व ही तुड़वाकर रूपये प्राप्त कर अन्य बैंक में जमा किया फिर उस अन्य बैंक से उस जमा राशि के बदले रूपये प्राप्त कर इंडियन बैंक में जमा कर शेष रूपये प्राप्त करने के कार्य अवैध साधनों से कारित किये, लोक सेवक के नाते हितग्राहियों की मार्जिन मनी 39750/-रूपये और अनुदान राशि 39750/-रूपये से न्यस्त रहते हुए बेईमानी से दुर्विनियोग कर उसे अपने उपयोग में सम्परिवर्तित किया, उक्त समय, दिनांक एवं स्थान पर इंडियन बैंक के नाम के पत्र की जो कि इंडियन बैंक द्वारा तैयार नहीं किया गया और नहीं भेजा गया था, की कूटरचना चेक और मार्जिन मनी भेजने के संबंध में की तथा कार्यालय की डाक बुक में उक्त बैंक के पत्र के आधार पर चेक भेजने बाबत इंद्राज कर कूटरचित दस्तावेज की रचना की, छल के प्रयोजन से बैंक के कथित पत्र, कार्यालयीन डाक बुक की कूटरचना की तथा हितग्राहियों की सूची बनाने एवं उन्हें सदस्य बनाये जाने बाबत रसीदों की कूटरचना की और कूटरचित दस्तावेजों का उपयोग असली के रूप में प्रयोग में लाया, जबकि उसका कूटरचित होना आरोपीगण जानते थे।
2. आरोपीगण पर यह भी आरोप है कि उन्होंने उक्त दिनांक एवं समय पर या उसके लगभग मूल्यवान दस्तावेज, कार्यालय की डाक बुक को छिपाने की नीयत से नष्ट किया और इस प्रकार रिष्टि की, आरोपीगण ने उक्त दिनांक एवं समय पर या उसके लगभग छल किया और ऐसा करके इंडियन बैंक के अधिकारियों को प्रवंचित किया या बेईमानी से उत्प्रेरित किया कि वे अनुदान राशि के चेक को मनोज क्लाथ स्टोर्स के खाते में पे आर्डर के द्वारा जमा करें या मनोज क्लाथ स्टोर्स के खाते में जमा करने के लिए कोई आर्डर जारी करें जिसके अनुक्रम में इंडियन बैंक के अधिकारियों के द्वारा मनोज क्लाथ स्टोर्स के खाते में जमा करने हेतु अनुदान राशि का पे आर्डर जारी किया गया, इसके अलावा आरोपीगण ने लोक सेवक रहते हुए अपने पद का दुरूपयोग अपने स्वयं के एवं साथियों के लिए अवैध लाभ पाने के लिए और पहुंचाने के लिए किया ।
3. प्रकरण में यह तथ्य अविवादित है कि घटना के समय मृत आरोपी बालक दास कार्यपालन अधिकारी, आरोपी सलीम बक्श लिपिक एवं आरोपी गणेश ठाकरे भृत्य के पद पर जिला अंत्यावसायी सहकारी समिति रायपुर में पदस्थ थे।
4. अभियोजन का मामला संक्षेप में इस प्रकार है कि शासन की ओर से अल्प आय वर्ग के हरिजन आदिवासियों को विभिन्न योजनाओं के अंतर्गत लाभ पहुंचाकर उनके जीवन स्तर को उंचा उठाने हेतु मध्यप्रदेश के प्रत्येक जिले में अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति मर्यादित की स्थापना की गयी थी, जिसके तहत निम्न आय वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए स्वरोजगार हेतु बैंकों के माध्यम से ऋण दिया जाना था, जिसमें हरिजन और आदिवासी हितग्राहियों को उक्त समिति के विधिवत सदस्य बनने के बाद ऋण देने की अनुशंसा कार्यपालन अधिकारी द्वारा किये जाने पर समस्त औपचारिकताओं की पूर्ति उपरान्त बैंक द्वारा ऋण दिया जाना था । 
5. वर्ष 1985 में रायपुर शहर में उक्त समिति में पदस्थ आरोपीगण ने एक राय होकर आपराधिक षडयंत्र कर समिति के माध्यम से अवैध धन प्राप्त करने की योजना बनायी और दिनांक 01.05.1985 को 16 हितग्राहियों को समिति का सदस्य होना जाहिर करने के लिए प्रत्येक के नाम की रसीद काटकर फर्जी प्रकरण तैयार किये और उन प्रकरणों को इंडियन बैंक भेजना दर्ज किया लेकिन प्रकरण नही भेजे गये और डाक बुक गायब कर दी गयी, फर्जी चेकों के बैंक पहुंचने पर अंत्यावसायी शाखा रायपुर से फर्जी पत्र भेजकर इंडियन बैंक रायपुर के शाखा प्रबंधक को 39750/-रूपये का पे-आर्डर मनोज क्लाथ स्टोर्स के नाम बनाने का आदेश दिया गया और बैंक कर्मचारियों की मिली-भगत से मनोज क्लाथ स्टोर के खाते से राशि आरोपी मनोज जसवानी के माध्यम से आपराधिक षडयंत्रपूर्वक निकाल ली गयी, प्रकरण की विवेचना के दौरान विभिन्न दस्तावेज अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति के कार्यालय एवं बैंक से जब्त किये गये ।
6. अन्वेषण के दौरान पाया गया कि 16 अस्तित्वहीन व्यक्तियों के नाम से फर्जी सदस्यता शुल्क जमा कर सदस्य बनाना दर्शित कर फर्जी प्रकरण तैयार कर ऋण प्राप्त कर लिया गया, बेैंक के आरोपी अधिकारियों के द्वारा भी बिना ऋण के औचित्य एवं हितग्राहियों की जांच किये बिना और उनके खाते खोले बिना ही उनके नाम से प्राप्त अनुदान राशि को पे-आर्डर के जरिये मनोज क्लाथ स्टोर के खाते में जमा कराने एवं मार्जिन मनी का एफ.डी.आर. बना दिया, फर्जी ऋण आवेदनों में विभिन्न व्यवसायों के लिए ऋण का जिक्र है, परंतु उनकी अनुदान राशि कपडा विक्रेता मनोज जसवानी के माध्यम से आहरित कर ली गयी, इस प्रकार सभी आरोपीगण द्वारा आपराधिक षडयंत्र कर एक राय होकर फर्जी दस्तावेज तैयार करते हुए धोखाधडी की गयी और फर्जी ऋण प्रकरण तैयार कर, उन्हें बैंक भेजना बताकर अन्य व्यवसाय वाले व्यक्ति के नाम पे-आर्डर बनवाकर उसके नाम राशि जमा कर दी गयी ।
7. अन्वेषण के दौरान देहाती नालिसी दर्ज की गयी, जिसे ले जाकर पुलिस थाना आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो भोपाल में दिये जाने पर उक्त के आधार पर आरोपीगण के विरूध्द प्रथम सूचना पत्र दर्ज किया गया, पटवारी से घटनास्थल का नजरी-नक्शा तैयार करवाया गया, आरोपीगण के माध्यम से दस्तावेज जप्त किये गये तथा अन्य कार्यवाहियां की गयी, विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेखबद्ध किये गये, आरोपीगण को गिरफ्तार किया गया, शासकीय सेवक आरोपीगण के विरूध्द विधिवत् अभियोजन स्वीकृति प्राप्त की गयी, तदोपरांत संपूर्ण विवेचना पश्चात अभियोग-पत्र इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
8. आरोपी बालक दास, महेश राव, सलीम बक्श, गणेश ठाकरे को धारा 120-बी, 409, 420, 467, 468, 471, 477 तथा भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा- 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) एवं आरोपी मनोज व अरूण के विरूद्ध धारा 120-बी, 409, 420, 467, 468, 471, 477 के तहत आरोप विरचित कर पढकर सुनाये, समझाये जाने पर आरोपीगण ने अपराध करना अस्वीकार किया, विचारण के दौरान आरोपी बालक दास की मृत्यु होने के कारण उसके विरूद्ध प्रकरण उपशमित किया गया था तथा विचारण का दावा किया, अभियोजन की ओर से कुल तेईस साक्षियों का कथन करवाया गया है, विचारण उपरांत धारा-313 दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत अभिलिखित किये गये अभियुक्त कथन में आरोपीगण ने स्वयं को निर्दोश होना तथा झूठा फंसाया जाना बताया है।
9. इस प्रकरण में अवधारणीय प्रश्‍न निम्नानुसार है:-
(1) क्या आरोपीगण ने दिनंाक वर्ष 1995 में या उसके लगभग परस्पर सहमति द्वारा एकराय होकर अंत्यावसायी सहकारी विकास समिति मर्यादित (जिसे आगे समिति कहा गया है) के हितग्राहियों के नाम से फर्जी सदस्य बनाकर, उनके फर्जी प्रकरण तैयार कर, फर्जी रसीद काटकर उन्हें बेैंक में भेजे बिना भेजना बताकर बैंक के द्वारा अनुदान की और मार्जिन की राशि की मांग किये बिना ही अनुदान राशि और मार्जिन राशि का चेक भेजा?
(2) क्या आरोपीगण ने अनुदान राशि भेजकर उस राशि को पे-आर्डर बनवाकर अन्य किसी व्यक्ति के खाते में जमा कर मार्जिन राशि की एफ0डी0आर0 बनवाकर प्राप्त करने के कार्य अवैध साधनों से कारित किये?
(3) क्या आरोपीगण ने लोक सेवक के नाते हितग्राहियों की मार्जिन मनी 39750/-रूपये और अनुदान राशि 39750/-रूपये से न्यस्त रहते हुए बेईमानी से दुर्विनियोग कर उसे अपने उपयोग में सम्परिवर्तित किया?
(4) क्या आरोपीगण ने उक्त समय, दिनांक एवं स्थान पर इंडियन बैंक के नाम के पत्र की जो कि इंडियन बैंक द्वारा तैयार नहीं किया गया और न हीं भेजा गया था, की कूटरचना चेक और मार्जिन मनी भेजने के संबंध में की तथा कार्यालय की डाक बुक में उक्त बैंक के पत्र के आधार पर चेक भेजने बाबत इंद्राज कर कूटरचित दस्तावेज की रचना की,
(5) क्या आरोपीगण ने उक्त दिनांक समय एवं स्थान पर छल के प्रयोजन से बैंक के कथित पत्र, कार्यालयीन डाक बुक की कूटरचना की तथा हितग्राहियों की सूची बनाने एवं उन्हें सदस्य बनाये जाने बाबत रसीदों की कूटरचना की और कूटरचित दस्तावेजों का उपयोग असली के रूप में प्रयोग में लाया?
(6) क्या आरोपीगण ने उक्त दिनांक एवं समय पर या उसके लगभग मूल्यवान दस्तावेज, कार्यालय की डाक बुक को छिपाने की नीयत से नष्ट किया?
(7) क्या आरोपीगण ने उक्त दिनांक एवं समय पर इंडियन बैंक के अधिकारियों को प्रवंचित किया या बेईमानी से उत्प्रेरित किया कि वे अनुदान राशि के चेक को मनोज क्लाथ स्टोर्स के खाते में पे आर्डर के द्वारा जमा करें या मनोज क्लाथ स्टोर्स के खाते में जमा करने के लिए कोई आर्डर जारी करें जिसके अनुक्रम में इंडियन बैंक के अधिकारियों के द्वारा मनोज क्लाथ स्टोर्स के खाते में जमा करने हेतु अनुदान राशि का पे आर्डर जारी कर छल किया गया?
(8) क्या आरोपी महेश, सलीम बक्श, एवं गणेश ने जिला अंत्यावसायी समिति में क्रमशः सहायक कार्यपालन अधिकारी, लिपिक एवं भृत्य के पद पर पदस्थ होते हुए अपने लोक सेवक के पद का दुरूपयोग कर अपने स्वयं के एवं साथियों के लिए अवैध लाभ पाने के लिए और पहुंचाने के लिए किया? 
// अवधारणीय प्रश्न पर निष्‍कर्ष एवं निष्कर्ष के कारण//
10. अवधारणीय प्रश्न क्रमांक-(1) से (8) पर निष्कर्ष एवं निष्कर्ष के कारण:-- सभी अवधारणीय प्रश्न एक दूसरे से संबंधित होने के कारण उन पर एक साथ विचार किया जा रहा है । डिप्टी कलेक्टर शंकरलाल डगला अ0सा015 का कथन है कि दिनांक 08.08.89 को वह उप जिलाधीश एवं प्रभारी जिला अंत्यावसायी समिति रायपुर के पद पर था, नगर निगम से गरीबों की सूची आती थी, जिसमें लोन फार्म तैयार कर बैंक भेजा जाता था, जांच पश्चात बैंक लोन देने संबंधी कार्यवाही करता था, उनके कार्यालय से आवेदन भेजने पर राशि लेनदेन की कार्यवाही बैंक एवं संबंधित पक्षकार के मध्य होती थी, बैंक द्वारा लोन देने की सूचना ही अंत में कार्यालय को भेजी जाती थी, अनुदान राशि के रूप में लोन दिये जाने वाले व्यक्ति को पचास प्रतिशत राशि कार्यालय द्वारा दी जाती थी, यू0डी0पाटनी अ0सा08 का कथन है कि बैंक अधिकारी से पूछने पर यह जानकारी मिली कि अंत्यावसायी समिति से मिले आदेशानुसार वहां राशि ट्रांसफर की गयी थी, अंत्यावसायी समिति के द्वारा भेजी गयी मार्जिन मनी बैंक में ही थी, हितग्राहियों के नाम से अंत्यावसायी समिति द्वारा ऋण के एवज में अनुदान राशि एवं मार्जिन मनी भेजी जाती थी, मार्जिन मनी की राशि का कुल ब्याज हितग्राहियों के नाम से उनके खाते में संयोजित होता था, योजना के संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं ।  
11. लक्ष्मीनारायण मालवीय असा012 का कथन है कि वर्तमान प्रकरण में तत्कालीन प्रबंध संचालक नन्हंे सिंह द्वारा अंत्यावसायी योजना का स्वरूप निर्धारण किया था । समिति के माध्यम से बैंक से ऋण प्रदान करने की योजना बनायी गयी चूंकि योजना शासन द्वारा जारी की गयी है इसलिए इस संबंध में शासन द्वारा विभिन्न परिपत्र, निर्देश पत्र जारी किये गये, जिसके अनुसार योजना का स्वरूप, कार्यक्षेत्र निर्धारण पत्र दिनांक 31.03.84 प्र0सी-1, निर्देश दिनांक 07.04.84 प्र0सी-2, योजना बाबत अर्ध शासकीय पत्र दिनांक 24.04.84 प्र0सी-3, समितियों में कार्यरत विकास अधिकारी, कार्यपालन अधिकारी, सहायक कार्यपालन अधिकारी, वरिष्ठ निरीक्षक का कार्य विभाजन आदेश दिनांक 18.01.82 प्र0पी04 भृत्य, निम्न श्रेणी लिपिक, उच्च श्रेणी लिपिक का कार्य विभाजन आदेश प्र0पी05 है ।
12. उक्त साक्षियों के कथनों एवं दस्तावेजों से यह प्रमाणित होता है कि शासन द्वारा 4500/-रूपये वार्षिक से अधिक आय न होने वाले अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति के सदस्यों को उनके उत्थान हेतु ऋण दिये जाने की योजना बनायी गयी, जिसमें अनुदान राशि एवं मार्जिन मनी भी दिये जाने की व्यवस्था थी, उक्त योजना के अनुसार उसके सदस्य/हितग्राही बनने वाले व्यक्तियों को ही रूपये 12,000/-तक ऋण विभिन्न कायों के लिए दिये जाने का प्रावधान था, जिसके अनुसार व्यवसाय/व्यापार के लिए विशेष दुर्बल समूह को अनुदान राशि 33 1/3 प्रतिशत मार्जिन मनी 20ः एवं अन्य को अनुदान राशि 25ः दिये जाने का प्रावधान था।
13. समिति द्वारा योजना के अनुसार सदस्य बनाकर प्रकरण दो प्रतियों में तैयार कर एक प्रति बैंक को भेजने, बैंक द्वारा जांच कर अनुदान राशि एवं मार्जिन मनी की मांग समिति से करने पर समिति द्वारा अनुदान राशि एवं मार्जिन मनी का चैक बैंक को भेजे जाने, बैंक द्वारा उक्त अनुदान राशि के प्राप्त होने पर उसे ऋणी के खाते में जमा करने तथा मार्जिन मनी का तीन वर्ष के लिए सावधि जमा बनाकर समिति को वापस भेजने का प्रावधान किया गया था तथा उक्त मार्जिन मनी की राशि की प्रत्येक 12 माह में गणना करने और तीन वर्ष पश्चात मार्जिन मनी की जमा राशि को 4 प्रतिशत के साथ शासन को वापस करने तथा शेष ब्याज की राशि प्रतिशत सदस्य/हितग्राही के खाते में जमा किये जाने का प्रावधान किया गया था, हितग्राही को 36 किश्तों में ऋण राशि अदा करना था, उक्त योजना में निर्धारित शर्तो के अनुसार अधिकारियों एवं कर्मचारियों के उक्त अधिकार एवं दायित्व के साथ मध्यप्रदेश राज्य में लागू की गयी।
14. जिला निर्वाचन शाखा रायपुर के स्टोर कीपर जीएस यदु अ0सा01 का कथन है कि आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो वाले कुछ वोटर लिस्ट जब्ती पत्र प्र0पी01 के माध्यम से जब्त किये थे, बाबूभाई अ0सा07 का कथन है कि वह पांच वर्ष से स्टेशनरोड रायपुर का पार्षद है वहां के सभी लोगों को जानता है, वार्ड में परसराम वल्द आशाराम, मानसिंह वल्य जयनारायण, चिंतामणी वल्द रघुवीर नामक व्यक्ति रहते हैं या नहीं याद नहीं है, सूर्यकांत अ0सा010 का कथन है कि वह जन्म से पुरानी बस्ती रायपुर में निवास करता है, 6-7 साल पहले डीएसपी साहब ने कुछ व्यक्तियों के बारे में उससे नाम लेकर पूछा था, कुछ लोगों ने शिकायत की थी कि फर्जी नाम से बैंक लोन दिया जा रहा है, खुशाल अ0सा019 का कथन है कि वह जोरापारा में चालीस वर्ष से रहा है, वहां लक्ष्मीकांत पिता हेमराज, अमर पिता परसुराम, धनीराम पिता पूनाराम, रामजी पिता बलीराम, बसीमा पिता मनीराम गोंड, बलदाउ पिता राजेन्द्र नामक व्यक्ति को नहीं जानता न ही उस नाम का कोई व्यक्ति 1985 या उसके बाद निवास किया । बाबूभाई ने अपने प्रतिपरीक्षण में इस कथन से इंकार किया है कि झूठी गवाही दे रहा है, खुशाल ने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि किरायेदार लोग आते जाते रहेते हैं सूर्य कांत ने प्रतिपरीक्षण में इंकार किया है कि वह थाने में बैठता है और वहां जाकर गवाहीं देता है, बाबूभाई, सूर्यकांत एवं खुशाल के कथन अखंडित रहे हैं ।
15. निरीक्षक जेपी द्विवेदी ने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि उसने हितग्राहियों के बारे में उनके बताये पते पर जाकर तलाश किया परंतु कोई हितग्राही उस पते पर नहीं मिला पते में जिन हितग्राहियों का पता लिखा था उन मोहल्लों में भी जा जाकर उसने पता किया, परंतु इस कथन से इंकार किया है कि उसने हितग्राहियों का पता नहीं किया । जी0एस0यदु के कथनों से उसके द्वारा वोटर लिस्ट ए0सी0बी0 वालों को देना बताया है, उक्त साक्षियों के कथनों एवं वोटर लिस्ट से यह प्रमाणित हुआ है कि जदमी बाई, रामेश्वर, रतन, लक्ष्मी, संतोष, बलदाउ, पीतांबर, मानसिंह, भैयालाल, चिंतामणी, घसनिन बाई, छबिलाल, सुखराम, आनंद राम, यशवंतराव, परसराम नामक व्यक्ति प्रकरण में दिये गये पते पर घटना के समय निवास नहीं करते थे।
16. अपर कलेक्टर नवल सिंह अ0सा09 का कथन है कि वह 1989 में डिप्टी कलेक्टर एवं कार्यपालन अधिकारी जिला अंत्यावसायी समिति में पदस्थ था, उनके कार्यालय से खाता क्रमांक 5575 दिनांक 1.10.84 से 15.01.86 तक के इंद्राज का स्टेशनरी स्टाक रजिस्टर 14.10.82 से 22.2.84, स्टेशनरी रजिस्टर 1985-86, उक्त रजिस्टरों में सील का उल्लेख है, काउंटर चेक नंबर 032750, केशबुक दिनांक 1.7.84 से 30.6.85 एवं 1.7.85 से 30.6.86 तक जब्त कर, जब्ती पत्र प्रपी-2 बनाये थे, उक्त जब्ती का समर्थन नामदेव अ0सा02 द्वारा भी किया गया है, निरीक्षक आर0डी0सिंह अ0सा0 13 द्वारा नवल सिंह से जब्ती पत्र प्रपी-2 के माध्यम से उक्त दस्तावेज जब्त होना बताया है जिसके संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं, जिससे यह प्रमाणित पाया जाता है कि नवल सिंह से गवाहों के समक्ष निरीक्षक रामद्वार सिंह ने काउंटर चेक, दो स्टेशनरी स्टाक रजिस्टर, खाते की प्रति, दो केशबुक जब्त किया था।
17. अपर कलेक्टर नवल सिंह अ0सा09 का यह भी कथन है कि दिनांक 17.7.89 को पुलिस वाले उसके पेश करने पर जब्ती पत्र प्रपी010 के माध्यम से 16 हितग्राहियों का आवेदन, जिला सहकारी केंद्रीय बेंक की जमा पर्ची दिनांक 11.9.84 से 30.01.85, सदस्यता रसीद बुक क्रमांक 19 एवं 20, बैंक की जमा पर्ची, चेक काउंटर, जब्त किये थे, निरीक्षक आरडी सिंह ने उक्त दस्तावेज जब्ती पत्र प्रपी010 के माध्यम से नवल सिंह से जब्त करना बताया है, नवल सिंह ने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि उसने जब्ती पत्र देखकर दस्तावेजों के संबंध में बताया है, जब्ती पत्र वर्ष 1989 में बनाया है, साक्षी का कथन 2001 में हुआ है परंतु जब्ती के संबंध में साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं जिससे यह प्रमाणित पाया जाता है कि एनएस मडावी से निरीक्षक ने 16 आवेदन पत्र, जमा पर्ची, दो सदस्यता रसीद बुक, काउंटर चेक, जब्त किया था ।
18. जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित रायपुर के नगर शाखा प्रबंधक शिव कुमार शर्मा अ0सा06 का कथन है कि जिला अंत्यावसायी को-आपरेटिव सोसाइटी का खाता क्रमांक 5575 उनके बैंक में है, जिसका लेजर प्र0पी06ए है, चेक क्रमांक 052897 प्र0पी07 एवं चेक क्रमांक 062160 पी08 क्रमशः रूपये 42,763/- एवं रूपये 39750/- जिला अंत्यावसायी को-आपरेटिव सोसाइटी द्वारा इंडियन बैंक रायपुर के नाम से जारी किया गया था, उक्त साक्षी का कथन प्रतिपरीक्षण में अखंडित रहा है, चेक क्रमांक 052897 रूपये 42,763/-मार्जिन मनी से संबंधित है तथा चेक क्रमांक 062160 रूपये 39750/-अनुदान राशि से संबंधित है, जिसका उल्लेख उक्त चेकों में किया गया है, निरीक्षक जेपी द्विवेदी का कथन है कि उसने धारा 91 दप्रस का नोटिस शाखा प्रबंधक केंद्रीय सहकारी बैंक को देकर दस्तावेज मांगा था, इस तरह शिवकुमार शर्मा के कथन से यह प्रमाणित पाया जाता है कि जिला अंत्यावसायी को-आपरेटिव सोसाइटी द्वारा उक्त दोनों चेक जारी किये गये थे जो इंडियन बैंक के माध्यम से कोआपरेटिव सोसाइटी में क्लीयरिंग हेतु आये थे और क्लीयरिंग के माध्यम से रूपये 42,763/- एवं रूपये 39750/- को-आपरेटिव सोसाइटी के जिला को आपरेटिव सोसाइटी के खाता क्रमांक 5575 से इंडियन बैंक को भेजे गये थे।
19. निरीक्षक जेपी द्विवेदी असा016 का कथन है कि उसने धारा 91 दप्रस का नोटिस प्र0पी024 शाखा प्रबंधक इंडियन बैंक रायपुर को दिया था, हरिशंकर अ0सा05 का कथन है कि पुलिस वाले उसके सामने इंडियन बैक के अधिकारी से कुछ दस्तावेज एवं कागजात जब्ती पत्र प्रपी05 के माध्यम से जब्त किये थे, निरीक्षक रामद्वार सिंह अ0सा013 का कथन है कि जब्ती पत्र प्रपी05 के माध्यम से उसने एच.नारायण के पेश करने पर शत्रुघन एवं हरिशंकर के समक्ष पुनर्निवेश जमा योजना राशि का पत्र दिनांक 23.2.85, कलेक्टर अंत्यावसायी का मूल पत्र क्रमांक 555 दिनांक 8.2.85 को जब्त किया था उक्त जब्ती के संबंधमें उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं, उक्त पत्र क्रमांक 555 आर्टिकल आई के द्वारा चेक क्रमांक 062160 रूपये 39750/- का बेंक पे आर्डर मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से बनाने का निर्देश कार्यालय कलेक्टर अंत्यावसायी द्वारा शाखा प्रबंधक इंडियन बैंक रायपुर को दिये जाने का उल्लेख है जिससे यह प्रमाणित होता है कि समिति द्वारा दिये गये निर्देश के आधार पर इंडियन बैंक द्वारा मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से 39750/- का बेंक पे आर्डर बनाया गया एवं अन्य राशि का एफ डी बनाया गया ।
20. शत्रुघन अ0सा03 का कथन है कि जब्ती पत्र प्रपी03 के माध्यम से पुलिस वाले दस्तावेज जब्त किये थे, चंद्रकुमार बंजारे का कथन है कि पुलिस वाले अनूप टोप्पों से उसके सामने जब्ती पत्र प्रपी03 के माध्यम से दस्तावेज जब्त किये थे उक्त जब्ती के संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहें है जिससे प्रमाणित पाया जाता है कि निरीक्षक पीएन शुक्ला ने अनूप से गवाह शत्रुघन एवं पी0बंजारे के समक्ष इंडियन बैंक का करंेट लेजर जिसके पृष्ठ क्र0197, 483 एवं 486 में मनोज क्लाथ स्टोर के नाम क्लीरिंग पश्चात क्रमशः रूपये 39750/-, 57000/- एवं 27250/- जमा किये जाने का लेख है । एच0नारायणयन अ0सा020 सीनि0मैनेजर इंडियन बैंक का कथन है कि एस0रामास्वामी एवं भट्टाचार्य को जानता है पत्र प्र0पी018 में उनके हस्ताक्षर हैं, विजय कुमार नायर अ0सा021 का कथन है कि वह इंडियन बैंक रायपुर में वर्ष 1989 से 1993 तक शाखा प्रबंधक था, दिनांक 9.9.91 को राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा उससे उनके बैंक का एक इंटर्नल क्रेडिट वाउचर दिनांक 9.2. 85 रूपये 39750/- प्र0पी026, मनोज क्लाथ स्टोर के नाम का पे आर्डर रूपये 39750/- प्र0पी014 को जब्ती पत्र प्र0पी027 के माध्यम से जब्त किया था, उक्त संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं, प्रकरण में आये उक्त साक्ष्य से यह प्रमाणित पाया जाता है कि जिला अंत्यावसायी समिति द्वारा इंडियन बैंक को चेक क्रमांक 062160 रूपये 39750/- का भेजा और उसे पत्र आर्टिकल आई के माध्यम से मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से पे आर्डर बनाने का निर्देश दिया जिसके आधार पर जिला सहकारी बैंक में उक्त चेक को भेजकर उसके आहरित होने के बाद वह राशि इंडियन बैंक में प्राप्त हुई और इंडियन बैंक द्वारा उक्त राशि का पे आर्डर प्र0पी014 मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से बनाया गया और मनोज क्लाथ स्टोर के खाते में उक्त राशि जमा की गयी ।
21. शंकर लाल डगला अ0सा015 का यह भी कथन है कि प्रस्तुत प्रकरण में उसने पाया था कि प्रस्तुत प्रकरण में उसके कार्यकाल में हितग्राहियों के पैसे की हेराफेरी हुई थी, बैंक वालों ने जानकारी दी थी कि गलत व्यक्ति को लोन दिया गया है, उसके पास के दस्तावेजों एवं जानकारी के आधार पर शिकायत प्र0पी018 एवं प्रथम सूचना पत्र प्र0पी019 आर्थिक  अपराध अन्वेषण वालों को किया था, पुलिस ने उससे प्र0पी04 के माध्यम से आर्टिकल ए से जे तक के दस्तावेज जब्त किये थे, जिसमें इंडियन बैंक को चेक नंबर उल्लेख कर भेजा गया पत्र, चेक 39750/-, 16 हित ग्राहियों की सूची, कार्यपालन अधिकारी द्वारा इंडियन बैंक को अनुदान राशि बाबत लिखा गया पत्र है, हितग्राहियों का जो पता दिया गया था वहां कोई हितग्राही नहीं मिले थे अनुदान राशि का भुगतान किया जाता है, मार्जिन मनी बैंक में रह जाती है ।
22. शंकरलाल का यह भी कथन है कि घटना के समय आरोपी बालक दास कार्यपालन अधिकारी, एमके बाघमारे सहायक कार्यपालन अधिकारी, एसबी शेख लिपिक, अरूण कुमार ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी में टाइपिस्ट के पद पर थे, बैंक वालों ने हितग्राहियों को राशि का भुगतान नहीं किया जिससे उस राशि का गबन होना वह समझता है, बालक दास ने बैंक को पत्र लिखकर शासकीय राशि का मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से चेक बनाने का निर्देश दिया, एसबी शेख द्वारा गलत प्रकरण बैंक भेजे एवं आरोपी गणेश ठाकेरे द्वारा गलत प्रकरणों को बैंक भेजने की रसीद प्राप्त की, आरोपी बालकदास कार्यपालन अधिकारी थे, इसलिए बैंक से केश निकालना, पैसा भेजना उनका कर्तव्य था, आरोपी शेख लिपिक होने के कारण प्रकरणों को प्राप्त करना बैंकों को भेजना आदि उसका कर्तव्य था एवं चपरासी ठाकरे का कार्य जितने प्रकरण प्राप्त होते हैं उन्हें बेंक में जमा करने का था, साक्षी चंद्रकुमार बंजारे एवं निरीक्षक आरडी सिंह ने कथन किया है कि एसएल डगला से निरीक्षण सिंह द्वारा जब्ती पत्र प्रपी04 के माध्यम से इंडियन बैंक का पत्र, हितग्राहयों के नाम लिखे आवेदन, अनुदान स्वीकृति आदेश जब्त किया गया था ।
23. शंकरलाल डगला ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि वह यह भी नहीं बता सकता कि मनोज क्लाथ स्टोर का स्वामी आरोपी मनोज है, प्रथम सूचना पत्र में ठाकरे का नाम नहीं है तथा उसने दस्तावेज की जांच नहीं की परंतु इस कथन से इंकार किया है कि उसने झूठी कार्यवाही की है, संबंधित बैंक द्वारा जिन हितग्राहियों को ऋण दिया जाता है उसकी मार्जिन मनी एवं अनुदान राशि की मांग करती है, हरिशंकर ने अपने प्रतिपरीक्षण में दस्तावेजों को नहीं देखना व पढना बताया परंतु डगला से दस्तावेज जब्त होना बताया है, उक्त साक्षियों के कथनों से दस्तावेजों की जब्ती संदेह से परे प्रमाणित हुई है जिसमें चेकों का विवरण, सदस्य/हितग्राहियों के नाम,ऋण राशि एवं ऋण के कारण का विस्तृत उल्लेख है, जिस सदस्य/हितग्राही को जिस कार्य के लिए जितनी राशि का ऋण स्वीकृत किया गया था, उसको प्रमाणित करता है।
24. यू0डी0 पाटनी का यह भी कथन है कि सन 1987 से 1990 तक आदिम जाति कल्याण विभाग में जिला संयोजक के पद पर था, कलेक्टर साहब ने उसे स्टेप अप के प्रकरणों में गडबड़ी की जांच के लिए आदेशित किया था जिसकी जांच डगला साहब कर रहे थे, आदेश मिलने पर उसने बैंक जाकर जांच कर, पाया था कि बैंक को हितग्राहियों के ऋण के विरूद्ध अनुदान राशि अंत्यावसायी निगम द्वारा भेजी गयी थी, जिसे हितग्राहियों के खाते में जमा न कर मनोज क्लाथ स्टोर रायपुर के नाम से टांसफर किया गया था, उसने जांच कर सभी प्रकरण जिलाध्यक्ष को भेजा था, उक्त साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि डगला साहब ने उसे जांच रिपोर्ट नहीं दी थी और उसने उसे पुलिस को नहीं दिया, शेष के संबंध में किये गये इस साक्षी के कथन अखंडित रहे हैं ।
25. निरीक्षक सुधीर केलकर अ0सा022 का कथन है कि समिति के प्रभारी अधिकारी का पत्र प्राप्त होने पर उसने प्रथम सूचना पत्र क्रमांक 03/89 प्र0पी028 दर्ज किया था, निरीक्षक जे0पी0द्विवेदी अ0सा016 का कथन है कि उसने प्रकरण में एस0डगला का पूरा कथन लिया है, गवाह सूर्यकांत, भैयालाल, खुशाल, के0सुब्रमणियम, शिव कुमार शर्मा, बी0बी0गांधी, जी0एस0यदु, आर0के0गुप्ता, यू0डी0पाटनी का कथन लिया था । रमेश गुप्ता ब0सा017 के द्वारा अभियोजन प्रकरण का समर्थन नहीं किया गया है, डी0एस0पी0 के.के.अग्रवाल अ0सा014 का कथन है कि उसके द्वारा आरोपियों को गिरफ्तार किया गया था एवं अभियोग पत्र प्रस्तुत किया था ।
26. लक्ष्मीनारायण मालवीय अ0सा012 का कथन है कि वह म0प्र0राज्य सहकारी अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास निगम भोपाल में सहायक ग्रेड-1 के पद पर है, आरोपी महेश राव, आरोपी सलीम बख्श एवं गणेश ठाकरे के विरूद्ध अभियोजन स्वीकृति हेतु तत्कालीन प्रबंध संचालक को प्राप्त हुआ था, तब तत्का0प्रबंध संचालक रामसजीवन द्वारा अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी017 दिया गया था, इस साक्षी ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि वह नहीं बता सकता कि किन-किन दस्तावेजों को देखकर अभियोजन स्वीकृति दी गयी थी, अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी017 के अवलोकन से दर्शित होता है कि उसमें रामसजीवन द्वारा विस्तृत रूप से प्रकरण के संबंध मे विचार करते हुए अभियोजन स्वीकृति दी है, उक्त आदेश में अभियोग पत्र एवं उससे संबंधित दस्तावेजों का विस्तृत रूप से उल्लेख किया गया है, इसलिए उनके साक्ष्य से यह प्रमाणित पाया जाता है कि अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी017 विधि अनुसार जारी करते हुए आरोपी महेश राव, आरोपी सलीम बख्श एवं गणेश ठाकरे के विरूद्ध अभियोजन स्वीकृति प्रदान किये थे ।
27. अरूण कुमार मिश्रा अ0सा023 का कथन है कि वह विधि एवं विधायी कार्य विभाग मंत्रालय भोपाल में सहायक ग्रेड-1 के पद पर है, राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो द्वारा अपराध क्रमांक 03/89 में आरोपी बालक दास के विरूद्ध अभियोजन स्वीकृति चाही गयी थी, जिसके आधार पर तत्कालीन अतिरिक्त सचिव द्वारा अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी029 दिया गया था, प्रकरण में आरोपी बालक दास की मृत्यु हो गयी है, परंतु अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी029 के अवलोकन से दर्शित होता है कि उसमें विस्तृत रूप से प्रकरण का उल्लेख करते हुए अभियोजन स्वीकृति दी गयी है, जो विधि अनुसार होना दर्शित होती है ।
28. डिप्टी कलेक्टर नवल सिंह अ0सा09 के कथनों से यह प्रमाणित हुआ है कि उससे जब्ती पत्र प्र0पी010 के माध्यम से 16 हितग्राहियों के आवेदन, काउंटर चेक, जमा पर्ची, सदस्यता शुल्क की कार्बन रसीद जब्त की गयी थी, उक्त जब्ती पत्र के माध्यम से जब्त 16 हितग्राहियों के आवेदन क्रमांक 1881 दिनांक 17.01.85, 1886 से 1892 एवं 1894 दिनांक 21.01.85, क्रमंाक 1950 से 1956 दिनांक 05.02.85 के अवलोकन से दर्शित होता है कि उसमें प्रत्येक हितग्राही के लिए आवेदन पत्र, मय फोटो आवेदन पत्र, अनुबंध पत्र संलग्न है, परंतु किसी आवेदन में सदस्य/हितग्राही का फोटो नहीं है तथा सारे आवेदन, अनुबंध पत्र आधे अधूरे भरे हुए हैं और तीनों दस्तावेज अपूर्ण हैं।
29. सदस्यता शुल्क की जो कार्बन रसीद जब्त की गयी है, जो वर्तमान प्रकरण से संबंधित रसीद क्रमांक 1881 दिनांक 17.01.85, 1886 से 1892 एवं 1894 दिनांक 21.01.85, क्रमंाक 1950 से 1956 दिनांक 05.02.85 तक है, जिनके क्रमांकों का उल्लेख आवेदन पत्रों एवं अनुबंध पत्र में दर्ज है, उक्त रसीद में 10/-रूपये सदस्यता शुल्क एवं 50 पैसा प्रवेश शुल्क के रूप में काटा गया है, उक्त आवेदन पत्र के संबंध में ही उक्त 10 रूपये पचास पैसे की रसीद काटी गयी है, प्रकरण में जब्ती पत्र प्र0पी05ए के माध्यम से निरीक्षक जेपी द्विवेदी ने आरोपी सलीम से समिति की उपस्थिति पंजी मार्च 83 से दिसंबर 85 तक की जब्त की है जिसमें आरोपी महेशराव एवं आरोपी सलीम के वैसे ही हस्ताक्षर हैं, जैसे कि रसीदों में हस्ताक्षर हैं इसलिए धारा 73 साक्ष्य अधिनियम में दिये गये प्रावधान अनुसार उक्त दोनों हस्ताक्षरों का मिलान करने पर वे एक समान होना पाये जाते हैं, इसलिए रसीद क्रमांक 1881, 1886 से 1892, 1894, 1950 से 1956 में आरोपी महेशराव एवं आरोपी सलीम के हस्ताक्षर होना पाया जाता है।
30. कलेक्टर अंत्यावसायी शाखा रायपुर के पत्र क्रमांक 555 दिनांक 08.02. 1985 द्वारा शाखा प्रबंधक इंडियन बैंक रायपुर को भेजना बताया है परंतु जावक रजिस्टर में पत्र क्रमांक 555 दिनांक 14.02.85 को शा0प्रबंधक स्टेट बेंक को भेजे जाने का उल्लेख है, जबकि भृत्य गणेश की जिम्मेदारी उक्त पत्र को बैंक में ले जाने की थी, परंतु आरोपी गणेश की अन्य आरोपियों के साथ अपराध में सहभागिता को प्रमाणित करती है ।
31. आवेदन पत्रों, अनंुबंध पत्र एवं शंकर लाल डगला से जब्त दस्तावेज आर्टिकल ए से सी के अवलोकन से दर्शित होता है कि फर्जी व्यक्ति जदमी बाई, रामेश्वर, रतन, लक्ष्मी, संतोष, बलदाउ, पीतांबर, मानसिंह, भैयालाल, चिंतामणी, घसनिन बाई, छबिलाल, सुखराम, आनंद राम, यशवंतराव, परसराम का आधा अधूरे दस्तावेज तैयार किये और उनको जीवित व्यक्ति बताते हुए, बिना ऋण स्वीकृत किये, पृथक-पृथक रूपये 39750/-के ऋण स्वीकृत किये गये और 39750/-रूपये अनुदान राशि, मार्जिन मनी की राशि नियत की गयी, जिसका चैक प्र0पी08 एवं पी015 के द्वारा इंडियन बैंक भेजा गया तथा बैंक द्वारा मार्जिन मनी 39750/-रूपये का पुनर्निवेश योजना का प्रमाण पत्र प्र0पी013 बनाया गया तथा उसकी राशि प्राप्त कर चेक प्र0पी07 रूपये 42763/-का इंडियन बैंक भेजकर पुनर्निवेश योजना रसीद प्र0पी026 तैयार करवायी गयी ।
32. आर्टिकल ए से जे से यह भी दर्शित होता है कि उसमें क्रमांक 10 एवं 16 में वर्णित चिंताराम एवं परसराम का ही रेडिमेड एवं कपडे के व्यवसाय का उल्लेख है, शेष व्यक्ति का अलग-अलग कार्य किये जाने का उल्लेख है परंतु समिति के कार्यपालन अधिकारी द्वारा अनुदान की राशि 39750/-रूपये का पे आर्डर मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से बनवाने के संबंध में पत्र लिखा गया और उक्त आधार पर कपडों के संबंध में उक्त पे आर्डर बनवा दिया गया, जबकि अनुदान की राशि का पे आर्डर नहीं बनाया जा सकता क्योंकि वह राशि हितग्राही के खाते में जमा होती है, हितग्राही उनके दिये गये पते पर थे ही नहीं तथा फर्जी व्यक्तियों के नाम से आवेदन पत्र, रसीद काटी गयी और उसमे ंआरोपी महेश राव एवं सलीम बक्श द्वारा हस्ताक्षर किये गये, आर्टिकल बी, ई, एच में आरोपी महेशराव के हस्ताक्षर हैं तथा पत्र आर्टिकल ए, सी, एफ में टाइपिंग से शेख लिखा है, आरोपी सलीम बक्श शेख घटना के समय समिति में लिपिक था और टाइप करने वाले का नाम पत्र में लिखा जाता है, उक्त आर्टिकल में शेख लिखा जाना यही प्रमाणित करता है कि आरोपी सलीम शेख द्वारा उक्त पत्रों को तैयार किया गया, इस तरह उक्त आर्टिकल ए से एफ तक के फर्जी दस्तावेजों को तैयार कर उपरोक्तानुसार उसमें आरोपी महेशराव एवं सलीम द्वारा अवैध कार्य किया गया। बैंक को ऋण प्रकरण भेजे बिना, जांच उपरान्त अनुदान एवं मार्जिन राशि समिति से बैंक द्वारा मांगे बिना भी उसे भेजा जाना प्रमाणित हुआ है, उक्त पे आर्डर की राशि मनोज क्लाथ स्टोर के इलाहाबाद बैंक के खाते में जमा की गयी और राशि आहरित कर लिया गया, तथा डाक बुक के माध्यम से भृत्य गणेश ठाकरे द्वारा पत्र बैंक में ऋण प्रकरण न देकर फर्जी तौर पर तैयार किये गये प्रकरण के आधार पर अनुदान एवं मार्जिन मनी की राशि के चैक बैंक में ले जाकर दिया गया ।
33. भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा- 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) का प्रावधान निम्नानुसार है:- धारा 13, लोक सेवक द्वारा आपराधिक अवचार-(1) लोक सेवक आपराधिक अवचार का अपराध करने वाला कहा जाता है -(डी) यदि वह- (एक) भ्रष्ट या अवैध साधनों से अपने लिये या किसी व्यक्ति के लिये कोई मूल्यवान वस्तु या धन संबंधी लाभ अभिप्राप्त करता है या (दो) लोक सेवक के रूप में अपनी स्थिति का दुरूपयोग करके अपने लिये या किसी अन्य व्यक्ति के लिए कोई मूल्यवान चीज या धन संबंधी लाभ अभिप्राप्त करता है। प्रकरण में आये साक्ष्य से यह प्रमाणित हुआ है कि आरोपी महेश राव, सलीम बक्श एवं गणेश ठाकरे लोक सेवक होते हुए भ्रष्ट, अवैध साधन एवं अपनी स्थिति का दुरूपयोग कर अपने लिये एवं मनोज क्लाथ स्टोर के लिए धन संबंधी लाभ अभिप्राप्त किया 34. प्रकरण में आये दस्तावेजी एवं मौखिक साक्ष्य से यह प्रमाणित हुआ है
कि समिति में लोक सेवक के पद पर सहायक कार्यपालन अधिकारी महेशराव, लिपिक शेख सलीम बक्श एवं भृत्य गणेश ठाकरे पदस्थ होते हुए अन्य के साथ मिलकर अपराधिक षडयंत्र कर अवैध रूप से योजना का पालन किये बिना फर्जी तौर पर हितग्राहियों के रूप में, ऐसे व्यक्तियों को हितग्राही बनाया गया, जो अस्त्वि में नहीं थे और उनके आधे अधूरे आवेदन पत्र, अनुबंध पत्र तैयार किये, रसीद काटी, उसमें फर्जी तौर पर हितग्राहियों के हस्ताक्षर और अंगूठे किये गये और उनका उपयोग असली के रूप में करते हुए इंडियन बैंक में हितग्राहियों का प्रकरण भेजे बिना चेक भेजकर अनुदान की राशि के चेक को मनोज क्लाथ स्टोर का पे आर्डर बनाने का अवैध पत्र इंडियन बैंक का सील लगा हुआ, डाक बुक में फर्जी इंद्राज कर इंडियन बैंक को लिखा गया और ऐसे दस्तावेजों की कूटरचना की, डाक बुक मूल्यवान दस्तावेज को नष्ट किया, अनुदान राशि हितग्राहियों के खाते में जमा न कर उक्त राशि समिति के खाते से निकलवाकर मनोज क्लाथ स्टोर के नाम का पे आर्डर बनवाकर आहरण करवा लिया और आहरण करवाकर गबन किया तथा समिति को रूपये 39750/-की क्षति पहुंचायी एवं लोकसेवक रहते हुए पद का दुरूपयोग कर स्वयं या अन्य को अवैध लाभ पहुंचाया ।
35. प्रकरण में रूपये 39750/- का पे आर्डर मनोज क्लाथ स्टोर रायपुर के नाम से बनाया गया है, परंतु मनोज क्लाथ स्टोर का स्वामी प्रकरण का आरोपी मनोज हो और उसके द्वारा राशि प्राप्त की गयी हो इस संबंध में कोई दस्तावेज प्रमाणित नहीं किया गया है, इसलिए अभियोजन आरोपी मनोज की वर्तमान प्रकरण में संलिप्तता प्रमाणित करने में असफल रहा है। प्रकरण में आरोपी अरूण के विरूद्ध कोई साक्ष्य नहीं है, इसलिए अभियोजन उसके विरूद्ध अपराध प्रमाणित करने में असफल रहा है। 
36. उक्त कारणों से अभियोजन यह संदेह से परे प्रमाणित करने में सफल रहा है कि आरोपी महेशराव सहायक कार्यपालन अधिकारी, सलीम बक्श लिपिक एवं गणेश ठाकरे भृत्य के पद पर जिला अंत्यावसायी समिति में लोक सेवक के रूप में पदस्थ रहते हुए अन्य के साथ परस्पर सहमति से 1995 में या उसके लगभग अंत्यावसायी सहकारी समिति के हितग्राहियों के नाम से फर्जी सदस्य बनाये, फर्जी ऋण प्रकरण तैयार किये, उन्हें बैंक में भेजे बिना भेजना बताकर बैंक द्वारा अनुदान की और मार्जिन मनी की राशि की मांग किये बिना ही अनुदान राशि और मार्जिन मनी का चेक भेजना, अनुदान राशि भेजकर उस राशि को पे आर्डर द्वारा अन्य व्यक्ति के खाते में जमा कर मार्जिन मनी का एफ0डी0बनवाकर पे आर्डर को उसे अन्य बैंक में जमा कर राशि प्राप्त करने का अवैध कार्य अवैध साधनों से किया, आरोपीगण लोक सेवक होते हुए लोक सेवक के नाते हितग्राहियों की अनुदान राशि रूपये 39750/-से न्यस्त रहते हुए बेईमानी से उसका दुर्विनियोग किया, इंडियन बैंक के नाम के पत्र जो इंडियन बैंक द्वारा तैयार नहीं किया गया और भेजा ही नहीं गया उसकी कूटरचना चेक और मार्जिन मनी  भेजने के संबंध में की, कार्यालय की डाक बुक में बैंक के उक्त पत्र के आधार पर चेक भेजने बाबत इंद्राज कर कूटरचित दस्तावेज की रचना की, छल के प्रयोजन से बैंक के कथित पत्र डाक बुक हितग्राहियों की सूची बनाने, आवेदन पत्र अनुबंध पत्र एवं रसीदों की कूटरचना की, कूटरचित दस्तावेजों को उनका कूटरचित होना जानते हुए उसका असली के रूप में प्रयोग किया, मूल्यवान दस्तावेजों को छिपाने की नीयत से नष्ट किया, इंडियन बैंक के अधिकारियों को प्रवंचित कर बेईमानी से उत्प्रेरित कर अनुदान राशि के चेक की राशि का मनोज क्लाथ स्टोर के नाम से पे आर्डर बनवाकर उसके खाते में जमा कर छल किया तथा लोक सेवक के पद पर रहते हुए पद का दुरूपयोग कर अपने स्वयं के एवं अन्य के लिए अवैध लाभ पाने एवं पहुंचाने के लिए किया, इसलिए आरोपी महेश राव, सलीम बख्श, गणेश ठाकरे को धारा 409, 420, 467, 468, 471, 477,120-बी भा0द0वि0 तथा धारा- 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रश्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अपराध में दोषी पाकर दोषसिद्ध ठहराया जाता है ।
37. अभियोजन आरोपी मनोज एवं अरूण के विरूद्ध अपराध को प्रमाणित करने में असफल रहा है, इसलिए आरोपी मनोज एवं अरूण को धारा 409, 420, 467, 468, 471, 477, 120-बी भा0द0वि0 के अपराध से दोषमुक्त किया जाता है।
38. प्रकरण की परिस्थितियों को देखते हुए आरोपीगण को परिवीक्षा का लाभ दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होता, दंड के प्रश्न पर सुनने के लिए निर्णय थोडे समय के लिए स्थगित किया गया ।
 (जितेन्द्र कुमार जैन)
 विशेष न्यायाधीश(भ्रष्टा0निवा0अधि0)
 एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीष,
 रायपुर, छ0ग0
पुनश्च:-
39. दंड के प्रश्न पर आरोपीगण एवं उनके अधिवक्ताओं के तर्क सुने गये, उन्होंने निवेदन किया कि आरोपीगण बीस वर्षों से प्रकरण में उपस्थित होते रहे हैं, वे शासकीय नौकरी में हैं इसलिए उन्हें कम से कम दंड से दंडित किया जाये।
40. दंड के प्रश्न पर विचार किया गया, आरोपीगण द्वारा बिना हितग्राहियों को ऋण दिये ऋण से संबंधित शासकीय राशि का गबन किया जाना प्रमाणित हुआ है इसलिए आरोपी महेश राव, सलीम बक्श शेख एवं गणेश ठाकरे को निम्नलिखित दंडादेश दिया जाता है:-

आरोपीगण को दी गयी कारावास की सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी ।
41. प्रकरण में आरोपी सलीम बक्श दिनांक 02.04.97 एवं 03.04.97 को अभिरक्षा में रहा है, उसे दी गयी सजी में उक्त अवधि धारा 428 द0प्र0सं0 के तहत समायोजित की जावे।
42. प्रकरण में अन्य आरोपी के विरूद्ध पूरक चालान प्रस्तुत किये जाने का उल्लेख अभियोग पत्र में है इसलिए संपत्ति का निराकरण नहीं किया जा रहा है ।
43. आरोपीगण जमानत-मुचलके पर हैं, उनके जमानत मुचलके धारा 437-ए द0प्र0सं0 के अंतर्गत छह माह के लिए विस्तारित किये जाते हैं जो उक्त अवधि उपरान्त स्वयमेव समाप्त माने जाएंगे।
निर्णय मेरे निर्देश में टंकित निर्णय खुले न्यायालय में पारित  किया गया। किया गया।
 सही/- 
 (जितेन्द्र कुमार जैन)
 विशेष न्यायाधीश(भ्रष्टा0निवा0अधि0)
 एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश,
 रायपुर, छ0ग0

छत्तीसगढ़ शासन विरूध्द कृपाराम दीवान

न्यायालय:-विशेष न्यायाधीश(भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) एवं
प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, रायपुर (छ0ग0)
 (पीठासीन न्यायाधीश - जितेन्द्र कुमार जैन)

विशेष दाण्डिक प्रकरण क्रमांक- 01/2010
सी.आई.एस. नंबर 61/2010
संस्थित दिनांक-19.01.2010
छत्तीसगढ़ शासन,
द्वारा-आरक्षी केन्द्र, एंटी करप्षन ब्यूरो,
रायपुर (छ0ग0)                                                                              -- अभियोजन
 // वि रू ध्द //
कृपाराम दीवान, उम्र करीब 51 वर्ष, 
पिता स्व0श्री मेहत्तर राम दीवान,
तत्कालीन पटवारी हल्का नंबर-9 राजिम, 
जिला रायपुर, निवासी ग्राम बेलर,
पिथौरा, जिला महासमुंद,(छ0ग0)                                                       -- आरोपी
-----------------------------------------------
अभियोजन द्वारा श्री योगेन्द्र ताम्रकार विशेष लोक अभियोजक।
आरोपी द्वारा श्री एस0के0फरहान अधिवक्ता ।
-----------------------------------------------
// निर्णय //
( आज दिनांक: 27-08-2016 को घोषित )
1. आरोपी के विरूध्द भ्रष्‍टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा-7, 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के अंतर्गत यह आरोप है कि आरोपी ने दिनांक 31.03.2008 को तथा उसके पूर्व से पटवारी हल्का नंबर 9 तहसील राजिम जिला रायपुर में हल्का पटवारी के पद पर लोकसेवक के रूप में पदस्थ रहते हुए प्रार्थी शीतकुमार चंद्राकर एवं उसके परिवार की ग्राम कुम्ही एवं ग्राम बकली स्थित भूमि के नक्शा, खसरा एवं ऋण पुस्तिका बनाकर देने के लिए प्रार्थी से 13,000/-रूपये रिश्वत की मांग की तथा रिश्वत प्राप्त की, जो वैध पारिश्रमिक से भिन्न राशि थी, इस प्रकार आरोपी ने अपने पद का दुरूपयोग कर, आपराधिक कदाचरण/अवचार किया। 
2. प्रकरण में यह तथ्य स्वीकृत है कि घटना के समय आरोपी पटवारी के पद पर ग्राम कुम्ही, पटवारी हल्का नं09 तहसील राजिम जिला रायपुर में पदस्थ था, यह तथ्य भी अविवादित है कि आरोपी द्वारा प्रार्थी को आर्टिकल ए से टी का राजस्व दस्तावेज दिया गया था जिसे एसीबी वालों ने जब्ती पत्र प्र0पी08 के माध्यम से जब्त किया था, नोटों को सोडियम कारबोनेट के घोल में डुबाने पर घोल गुलाबी हो गया था जिसे कांच की शीशी में रखा गया था तथा जिस स्थान पर नोट मिले थे उस स्थान को कागज से पोंछकर उसे सोडियम कारबोनेट के घोल में डुबाकर धुलाये जाने घोल गुलाबी हो गया था जिसे कांच की शीशी में रखा गया था जिसे एसीबी वालों ने जब्त कर जब्ती पत्र प्र0पी020 बनाया था, आरोपी सेवा पुस्तिका प्रदर्श पी023 है।
3. अभियोजन का मामला संक्षेप में इस प्रकार है कि प्रार्थी शीत कुमार चंद्राकर (जिसे आगे प्रार्थी से संबोधित किया गया है) एवं उसके परिवार के नाम ग्राम कुम्ही, पटवारी ह0 नं09 राजिम में लगभग 26.5 एकड पुश्तैनी कृषि भूमि है जिसे वे विक्रय करने का सौदा कर चुके थे, क्रेता के नाम पर विक्रय पत्र कराने हेतु उक्त भूमि का नक्शा, खसरा की नकल एवं ऋण पुस्तिका की आवश्यकता होने से उसने आरोपी से उपरोक्त कागजात की मांग की, तब आरोपी के द्वारा 13,000/-रूपये रिश्वत की मांग की गई, तब प्रार्थी ने एक लिखित शिकायत दिनांक 29.03.2008 को एंटी करप्शन ब्यूरो रायपुर (जिसे आगे ए0सी0बी0 कार्यालय से संबोधित किया गया है) के समक्ष इस आशय की प्रस्तुत की, कि वह रिश्वत नहीं देना चाहता था, बल्कि आरोपी को रंगे हाथों पकडवाना चाहता था, उक्त शिकायत पर वैधानिक कार्यवाही करने हेतु ए0सी0बी0 के निरीक्षक एस0के0सेन को निर्देशित किया गया, जिसके द्वारा प्रार्थी को माइक्रो कैसेट एवं टेपरिकार्डर देकर पंचनामा तैयार किया गया और प्रार्थी के माध्यम से शिकायत का सत्यापन करवाया गया और प्रार्थी की शिकायत के आधार पर बिना नंबरी प्रथम सूचना दर्ज की गयी ।
4. प्रार्थी द्वारा आरोपी से बातचीत कर उसे रिकार्ड करना, जिसे एसीबी को बताना और एसीबी द्वारा दिनांक 31.03.2008 को आरोपी द्वारा प्रार्थी को रिश्वत रकम लेकर आने की सूचना प्रार्थी ने एसीबी को दी, तब प्रार्थी को दिनांक 31.03.2008 को रिश्वत की रकम लेकर पिपरोद मोड बुलाया गया, पंच साक्षी आहूत किये गये, एसीबी के अन्य अधिकारी को सूचना दी गयी और वहां टेªप दल के सदस्य पहुंचे, जिनका एक दूसरे से परिचय करवाया गया, प्रार्थी द्वारा दूसरी शिकायत प्रस्तुत की गयी, पंच साक्षियों ने प्रार्थी से पूछताछ की गयी, संतुष्ट होने पर टीप अंकित की, ए0सी0बी0 वालों के साथ टेपरिकार्डर को चालू कर रिश्वत के संबंध में प्रार्थी तथा आरापी के मध्य हुई बातचीत को सुना गया तथा बातचीत का लिप्यांतरण तैयार कर कैसेट को जप्त किया गया, शिकायत का सत्यापन हो जाने के उपरांत् आरक्षक द्वारा प्रदर्शन घोल की कार्यवाही की गयी, रिश्वत में दिये जाने वाले नोटों पर आरक्षक द्वारा फिनाफ्थलिन पाउडर की हल्की परत लगायी गयी, उसके द्वारा सोडियम कार्बोनेट पाउडर की नमूना पुडिया तैयार कर सीलबंद की गई, सील का नमूना कोरे कागज में तैयार कर सीलबंद किया गया।
5. पंच साक्षी ने प्रार्थी की जामा तलाशी ली और उसके पास कोई सामान नहीं रहने दिया गया, प्रार्थी का जामा तलाशी पंचनामा तैयार किया गया, पंच साक्षी के द्वारा प्रार्थी शीत चंद्राकर द्वारा पहने गये पेंट की दांयी जेब में रिश्वती रकम सावधानीपूर्वक रखवायी गयी और प्रार्थी को समझाइश दी गयी कि आरोपी के द्वारा रिश्वत मांगने पर ही आरोपी के हाथ में रिश्वत दे, रिश्वत देने के पूर्व एवं बाद में आरोपी से हाथ न मिलाये, रिश्वती नोट देने के पूर्व वह नोट को न छुये और यह भी देखने का प्रयास करे कि आरोपी रिश्वत लेने के बाद रिश्वती रकम कहां रखता है, प्रार्थी को यह भी बताया कि वह रिश्वत देने के बाद आरोपी के कमरे से बाहर आकर अपने सिर में हाथ फेरकर इशारा करे, पंचनामा की कार्यवाही की लिखा-पढ़ी की गयी, प्रार्थी को रिश्वत देने के समय बातचीत रिकार्ड करने हेतु माइक्रो कैसेट टेपरिकार्डर दिया गया, जिसका भी पंचनामा बनाया गया।
6. नोटों में पाउडर लगाने वाले आरक्षक नत्थे सिंह एवं फिनफ्थलिन पावडर को वहां छोडकर ट्रेप की योजना अनुसार ट्रेप दल तहसील कार्यालय राजिम के लिए रवाना हुआ, प्रार्थी को उसकी निजी कार से रवाना किया गया, ट्रेप दल और प्रार्थी तहसील कार्यालय राजिम पहुंचे, प्रार्थी और छाया साक्षी निरीक्षक जेरोल लकडा को आरोपी के कक्ष की ओर रवाना किया गया, ट्रेप दल के अन्य सदस्य वहीं आसपास प्रार्थी पर नजरी लगाव रखते हुए आरोपी के कार्यालय के पास अपनी उपस्थिति छुपाते हुए खडे हो गये, थोडी देर बाद प्रार्थी ने आरोपी के कार्यालय से निकलकर सिर पर हाथ फेरकर रिश्वत दे देने का इशारा किया, तब ट्रेप दल के सदस्य आरोपी के कार्यालय के अंदर गये तथा आरोपी का परिचय प्राप्त कर ट्रेप दल के सदस्यों ने अपना परिचय दिया ।
7. अभियोजन के प्रकरण के अनुसार पंचसाक्षी श्री सोनवानी ने आरोपी का बांया हाथ तथा निरीक्षक सेन ने दाहिना हाथ कलाई से पकड लिया, ट्रेप दल द्वारा पूछे जाने पर आरोपी ने प्रार्थी से 13,000/-रूपये रिश्वत नहीं लेना बताया, तब प्रार्थी से पूछा गया तो बताया कि आरोपी ने रिश्वती रकम कागज में लपेटकर टेबल में रखे रजिस्टर के नीचे रखवाया है, तत्पश्चात कार्यवाही स्थल पर आरक्षक से सोडियम कार्बोनेट का जलीय घोल तैयार करवाकर घोल की कार्यवाही की गयी, जिसमें आरोपी को छोड़ कर ट्रेप दल के सदस्यों के हाथों की उंगलियों को डुबा कर धुलायी गयी तो घोल के रंग में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, उस घोल को हस्ताक्षर पर्ची सहित सीलबंद किया गया, फिर सोडियम कार्बोनेट के अन्य जलीय घोल में आरोपी के हाथों को डुबाया गया तो घोल का रंग नहीं बदला, जिसे कांच की साफ शीशी में भर कर सीलबंद किया गया, पंच साक्षी शुक्ला ने आरोपी के टेबल की तलाशी ली तो टेबल पर रखे बी-1 रजिस्टर के नीचे कागज में लिपटे हुए पांच-पांच सौ के नोट मिले, जिन्हें पंच साक्षियों ने गिना तो पांच सौ वाले 26 नोट कुल 13,000/-रूपये जब्त किया गया, नोटों के नंबरों का मिलान पूर्व में पंचनामा में लिखे गये नंबरों से किया गया, जो सही होना पाया गया, आरोपी के द्वारा जिस कागज में लपेटकर रिश्वती नोटों को रखा गया था, उसका कागज को घोल में डुबाये जाने पर घोल का रंग गुलाबी हो गया, जिसे शीशी में बंद कर हस्ताक्षरयुक्त पर्ची सहित सीलबंद कर रखा गया ।
8. घोल में प्रार्थी के हाथों की उंगलियों को डुबाये जाने घोल का रंग गुलाबी हो गया, जिसे भी शीशी में हस्ताक्षरयुक्त पर्ची सहित सीलबंद कर रखा गया, आरोपी से रिश्वती नोट सुखाकर जब्त कर सीलबंद किये गये प्रार्थी के द्वारा मौके पर पेश किये जाने पर पंच साक्षियों के समक्ष जमीन के खसरा नकल आदि उन दस्तावेजों को जब्त किया गया जो आरेपी ने रिश्वत लेकर प्रार्थी को दिये थे, माइक्रो केसेट भी जब्त किया गया और उसे चालू कर आरोपी को रिश्वत देते समय हुई बातचीत का लिप्यांतरण तैयार किया, रिश्वती रकम, सीलबंद घोल एवं टेपरिकार्ड आदि को जप्त किया गया, आरोपी से कार्यालयीन दस्तावेज आदि जब्त किये गये, घटनास्थल पर हुई समस्त कार्यवाहियों का पंचनामा बनाया गया, घटनास्थल का नजरी-नक्शा पटवारी से तैयार करवाया गया तथा अन्य कार्यवाहियां की गयी, जिसे लाकर पुलिस थाना-ए0सी0बी0, रायपुर में दिये जाने पर उक्त के आधार पर आरोपी के विरूध्द धारा-7 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत प्रथम सूचना पत्र दर्ज किया गया, फिर सीलबंद करके रखे गये घोल की षीषियों को रासायनिक परीक्षण हेतु राज्य न्यायालयिक विज्ञान प्रयोगशाला, रायपुर भेज कर रिपोर्ट प्राप्त की गयी, जो धनात्मक पायी गयी तथा आरोपी के टेबल से जब्त कागज एवं प्रार्थी के हाथ की उंगलियों के धोवन तथा रिश्वती नोटों के धोवन में फिनाफ्थलीन की उपस्थिति पायी गयी, विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेखबद्ध किये गये, आरोपी को गिरफ्तार किया गया, आरोपी की सेवा पुस्तिका एवं अन्य दस्तावेज जब्त किये गये, तथा आरोपी के विरूध्द विधिवत् अभियोजन स्वीकृति प्राप्त की गयी, तदोपरांत संपूर्ण विवेचना पश्चात अभियोग-पत्र इस न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया।
9. आरोपी को धारा-7 एवं 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रष्‍टाचार निवारण अधिनियम का आरोप विरचित कर आरोपी को पढकर सुनाये, समझाये जाने पर उसने अपराध करना अस्वीकार किया तथा विचारण का दावा किया, अभियोजन की ओर से कुल दस साक्षियों का कथन करवाया गया है, विचारण उपरांत धारा-313 दण्ड प्रक्रिया संहिता के तहत अभिलिखित किये गये अभियुक्त कथन में आरापी ने स्वयं को निर्दोश होना तथा झूठा फंसाया जाना बताया है।
10. इस प्रकरण में अवधारणीय प्रश्‍न निम्नानुसार है:-
(1) क्या आरोपी ने दिनांक 31.0.3.2008 को तथा उसके पूर्व से पटवारी हल्का नंबर 9 तहसील राजिम जिला रायपुर में हल्का पटवारी के पद पर लोकसेवक के रूप में पदस्थ रहते हुए प्रार्थी
शीतकुमार चंद्राकर एवं उसके परिवार की ग्राम कुम्ही एवं ग्राम बकली स्थित भूमि के नक्शा, खसरा एवं ऋण पुस्तिका बनाकर देने के लिए प्रार्थी से 13,000/-रूपये रिश्वत की मांग की तथा रिश्वत प्राप्त की, जो वैध पारिश्रमिक से भिन्न राशि थी ?
(2) क्या आरोपी ने उक्त कृत्य के माध्यम से अपने पद का दुरूपयोग कर, आपराधिक कदाचरण/अवचार किया ?
// अवधारणीय प्रश्न पर निष्‍कर्ष एवं निष्कर्ष के कारण //
11. अवधारणीय प्रश्न क्रमांक-(1) एवं (2) पर निष्कर्ष एवं निष्कर्ष के कारण:- प्रार्थी शीतकुमार चंद्राकर (अ0सा01) का कथन है कि उसकी पैतृक काश्तकारी भूमि ग्राम कुम्ही में सम्मिलित खाते में दर्ज है जिसे उन लोगों के द्वारा विक्रय किया गया था, जिसकी रजिस्ट्री क्रेता के नाम करवाना था, इस संबंध में वे लोग हल्का पटवारी से मिला था। आरोपी की ओर से तर्क किया गया है कि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत राजस्व अभिलेख आर्टिकल ए से टी में प्रार्थी शीत कुमार का नाम नहीं है, अभियोजन द्वारा प्रस्तुत राजस्व अभिलेख में जिन व्यक्तियों के नाम हैं, उनके कथन नहीं कराये गये हैं, जिसका कोई कारण अभियोजन की ओर से नहीं बताया गया है, इसलिए अभियोजन के प्रकरण पर विश्वास नहीं किया जा सकता, प्रकरण में आरोपी ने यह स्वीकार किया है कि जब्ती पत्र प्र0पी08 के माध्यम से उसके द्वारा प्रार्थी को दिये गये दस्तावेजों आर्टिकल ए से टी के राजस्व दस्तावेजों को प्रार्थी से एसीबी ने जब्त किया गया है, दस्तावेज आर्टिकल बी एवं सी में प्रार्थी शीत कुमार का नाम दर्ज है, इसलिए आरोपी की ओर से किया गया उक्त तर्क कि राजस्व अभिलेख में प्रार्थी का नाम दर्ज नहीं हाने एवं अन्य खातेदार का साक्ष्य न करवाने का आधार विश्वास योग्य नहीं है, इसलिए उसका कोई लाभ आरोपी को प्राप्त नहीं होता। 
12. शीतकुमार का यह भी कथन है कि पटवारी द्वारा उनका काम न कर हीला-हवाला करता था, वह तीन-चार बार पटवारी से मिला, वह उसे दिन भर बैठाकर रखता था, वह दिनांक 29.03.2008 को 10-11 बजे आरोपी के कार्यालय में गया, 1-2 घंटा रूका वह पटवारी से मिला तो कागजात बनवाने का पटवारी ने 13,000/-रूपये लूंगा कहा, वह पटवारी को रिश्वत नहीं देना चाहता था, तब रायपुर आया और अपने टीआई मित्र से एसीबी का पता पूछा और वहां जाकर एसीबी में घटना की शिकायत प्र0पी01 दिया था, जहां उसे माइक्रो टेप रिकार्डर में नया केसेट लगाकर दिये थे, और उसे पटवारी से बातचीत रिकार्ड कर लाने के लिए कहे थे, जिसके संबंध में पंचनामा प्र0पी02 बनाये थे, निरीक्षक एस0के0सेन के द्वारा प्रार्थी के उक्त का समर्थन करते हुए दिनांक 29.03.2008 को प्रार्थी शीत कुमार के द्वारा तत्कालीन पुलिस अधीक्षक श्री पुरूषोत्तम गौतम को लिखित शिकायत प्र0पी01 देना, जिसकी तसदीक हेतु उसने टेप रिकार्डर को चालू-बंद करने की विधि बताते हुए टेपरिकार्ड देने का पंचनामा प्र0पी02 बनाया था, जिसका समर्थन नत्थे सिंह अ0सा06 ने किया है।
13. आरोपी की ओर से प्रार्थी द्वारा तीन-चार बार आरोपी के पास जाने और उसे आरोपी द्वारा दिन भर बिठाकर रखने का कथन भी विश्वास योग्य नहीं होना बताया गया है, क्योंकि दिनांक 28.03.2008 को प्रार्थी ने आवेदन दिया और उसे दिनांक 31.03.2008 को नकल मिल गयी, इसलिए आरोपी ने अपना कार्य तत्परता से किया है, प्रार्थी ने अपने परीक्षण में यह भी बताया है कि वे काश्तकारी करते हैं और जमीन को बेच दिये हैं, क्रेता को रजिस्ट्री करवाना था, इस संबंध में हल्का पटवारी से मिले थे, इस साक्षी ने अपने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि नकल की प्रक्रिया की उसे जानकारी नहीं है, शिकायत करने के पहले एक हफ्ते के अंदर तीन-चार बार आरोपी
के पास गया था, परंतु इस कथन से इंकार किया है कि कोटवारों की हडताल होने के कारण पटवारी और तहसीलदार वहां नहीं थे, यह भी स्वीकार किया है कि 28 तारीख को तहसीलदार द्वारा पटवारी को यह निर्देशित किया गया था कि नकल आवेदन बनाकर दे, परंतु प्रार्थी 28 तारीख के पहले आरोपी के पास जाने के संबंध में उसका कोई प्रतिपरीक्षण नहीं किया गया है, इसलिए प्रार्थी का यह कथन विश्वसनीय है कि वह घटना के पूर्व 3-4 बार आरोपी के पास जाकर मिला और उसे राजस्व अभिलेख की मांग की, अतः आरोपी की ओर से लिये गये उक्त बचाव का कोई लाभ उसे प्राप्त नहीं होता ।
14. प्रार्थी ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि जब वह पहली शिकायत लेकर एसीबी कार्यालय गया तो उसकी मुलाकात श्री सेन से हुई थी उसके अतिरिक्त किसी से नहीं हुई, प्रथम शिकायत प्रपी-1 के अवलोकन से दर्शित होता है कि उसमें तत्का0 पुलिस अधीक्षक द्वारा निरीक्षक सेन को प्रकरण में कार्यवाही हेतु निर्देशित किया गया, इसलिए प्रार्थी का उक्त कथन महत्वपूर्ण होना दर्शित नहीं होता, प्रार्थी ने अपने प्रतिपरीक्षण में यह भी स्वीकार किया है कि उसने शिकायतों को निरीक्षक सेन के मार्गदर्शन में लिखा था, एसीबी की कार्यवाही सामान्य पुलिस द्वारा की जाने वाली कार्यवाहियों से भिन्न होती है, इसके अतिरिक्त शिकायत में उन बातों का उल्लेख है जो प्रार्थी के साथ घटित हुई, इसलिए शिकायत के संबंध में श्री सेन के द्वारा मार्गदर्शन देने मात्र के आधार पर उस पर कोई विपरीत उपधारणा नहीं की जा सकती। इस तरह उक्त साक्ष्य में प्रार्थी के द्वारा लिखित शिकायत प्र0पी01 देने और पंचनामा प्र0पी02 बनाने के संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं जो उक्त कार्यवाही को प्रमाणित करता है।
15. प्रार्थी शीत कुमार का यह भी कथन है कि वह टेप रिकार्डर लेकर आरोपी के कार्यालय गया और वहां उससे बातचीत करने पर आरोपी पैसा लेकर आना और कागजात बनाकर रखना बताया, इस बारे में उसने एसीबी वालों से बात किया था, टेप रिकार्डर एसीबी कार्यालय में दिया, तब उसे 31 मार्च 2008 को पिपरोद मोड पर मिलने का निर्देश दिया गया था, जिसका समर्थन एस0के0 सेन ने किया है, प्रार्थी ने अपने परीक्षण में बताया है कि जिस दिन उसे टेप दिया गया, उस दिन आरोपी से बातचीत कर टेप वापस एसीबी के अधिकारी को ले जाकर देना बताया है, जबकि उसे अभियोजन द्वारा प्रतिकूल साक्षी घोषित करने पर और आरोपी की ओर से किये गये प्रतिपरीक्षण में यह बताया है कि दिनांक 29.03.2008 को आरोपी से टेपरिकार्ड में बातचीत होने के बाद उसने टेलीफोन के माध्यम से ही एसीबी को बातचीत रिकार्ड होने के संबंध में जानकारी दिया था और 31 तारीख को पिपरौद मोड़ में मिलने के संबंध में उसे एसीबी वालों ने कहा था, इसलिए प्रार्थी के परीक्षण में आया यह तथ्य कि वह दिनांक 29.03.2008 को आरोपी से बातचीत टेप करने के उपरान्त एसीबी कार्यालय गया था, सही नहीं है बल्कि बातचीत के उपरांत एसीबी वालों को टेलीफोन से सूचना देना और एसीबी वाले उसे 31 मार्च 2008 को पिपरौद मोड पर बुलाने संबंधी कथन प्रमाणित पाया जाता है ।
16. निरीक्षक सेन का यह भी कथन है कि प्रार्थी की उक्त सूचना पर उसने पुलिस अधीक्षक के माध्यम से दो राजपत्रित अधिकारियों को बुलाये जाने हेतु पत्र प्र0पी024 कलेक्टर को भेजा था, जिस पर उनके द्वारा वी0के0सोनवानी और ए0के0शुक्ला को पंच साक्षी नियुक्त करने का पत्र प्र0पी025 प्राप्त हुआ था, दिनांक 29.03.2008 को ट्रेप दल का गठन किया और पंच साक्षियों को दिनांक 31.03.2008 को कार्यालय पहुंचने का निर्देश दिया था, जिसका समर्थन पंच साक्षी अजित कुमार शुक्ला अ0सा05, निरीक्षक जेरोल लकडा अ0सा07 प्रधान आरक्षक नत्थे सिंह अ0सा06 एवं आरक्षक रामप्रवेश अ0सा09 के द्वारा किया गया है तथा यह भी बताया गया है कि उन्हें दी गयी सूचना के आधार पर वे दिनांक 31.03.2008 को सुबह आठ बजे एसीबी कार्यालय से निकले उक्त संबंध में उक्त साक्षियों के कथन अखंडित रहे हैं इसलिए उक्त कार्यवाही प्रमाणित मानी जाती है ।
17. पंच साक्षी अजित कुमार शुक्ला, निरीक्षक जेरोल लकडा, प्रधान आरक्षक नत्थे सिंह, निरीक्षक एस0के0सेन एवं आरक्षक रामप्रवेश का यह भी कथन है कि राजिम के पहले पिपरोद चौक पहुंचे जहां प्रार्थी शीत कुमार मिला, उक्त साक्षी एवं शीत कुमार का यह भी कथन है कि उनका एवं ट्रेप दल के अन्य सदस्यों का एक दूसरे से परिचय कराया गया, प्रार्थी के द्वारा द्वितीय शिकायत आवेदन प्र0पी012 प्रस्तुत किया गया, जिसे पंच साक्षी पढे थे, शीत कुमार, अजित कुमार शुक्ला, एस0के0सेन का यह भी कथन है कि पंच साक्षियों के द्वारा शीत कुमार से शिकायत के संबंध में पूछताछ की गयी और संतुष्ट होने पर द्वितीय शिकायत में अपनी टीप अंकित किये थे तथा शीतकुमार द्वारा प्रस्तुत टेप को सुनकर उसका लिप्यांतरण किये थे और टेप रिकार्ड से केसेट निकालकर उसे सीलबंद कर जब्त किये थे, उक्त साक्षियों का यह भी कथन है कि शीत कुमार द्वारा रिश्वत में दी जाने वाली रकम तेरह हजार रूपये जिसमें पांच-पांच सौ के 26 नोट थे, उनके नंबरों को पंच साक्षी द्वारा नोट कराया गया, जिसका समर्थन नत्थे सिंह, जेरोल लकडा, रामप्रवेश के द्वारा भी किया गया है।
18. शीत कुमार, अजित शुक्ला, नत्थे सिंह, जेरोल लकडा, रामप्रवेश एवं एस0के0सेन का यह भी कथन है कि शीत कुमार द्वारा दिये गये नोटों पर फिनाफ्थलिन पाउडर लगाया गया, प्रार्थी की तलाशी लेने के बाद उसकी जेब में उन नोटों को रखा गया तथा धोवन कार्यवाही की गयी, जिसमें पाउडर लगाने वाले के हाथ की उंगलियों को छोडकर शेष के हाथ धुलाये गये तो घोल का रंग अपरिवर्तित रहा, तत्पश्चात पाउडर लगाने वाले आरक्षक के हाथ की उंगलियों को धुलाये जाने पर घोल का रंग गुलाबी हो गया, जिस पर यह बताया गया फिनाफ्थलिन पाउडर लगे नोट को जो छुएगा उसके हाथ घोल में डुबाने पर घोल गुलाबी हो जायेगा, उक्त गुलाबी घोल को शीशी में सीलबंद कर रखा गया, प्रार्थी को रिश्वत देते समय बातचीत करने के लिए एक टेपरिकार्डर केसेट लगाकर दिया गया, तत्पश्चात प्रारंभिक कार्यवाही पंचनामा बनाया गया, पाउडर लगाने वाले प्र0आरक्षक नत्थे सिंह एवं फिनाफ्थलिन पाउडर को वहीं छोडकर ट्रेप दल के अन्य सदस्य तहसील कार्यालय राजिम के लिए रवाना हो गये। उक्त कार्यवाही के संबंध में उक्त साक्षियों के कथनों में कोई महत्वपूर्ण विरोधाभास नहीं है इसलिए पिपरौद मोड में की गयी उक्त कार्यवाही पर अविश्वास किये जाने का कोई कारण दर्शित नहीं होता, अतः उक्तानुसार कार्यवाही होना प्रमाणित पाया जाता है ।
19. शीत कुमार, अजित कुमार शुक्ला, नत्थे सिंह, जेरोल लकडा, रामप्रवेश एवं एस0के0सेन का यह भी कथन है कि तहसील कार्यालय के कुछ दूर पहले गाडी रोके, प्रार्थी द्वारा पिपरोद मोड से अकेले कार से तहसील कार्यालय राजिम जाना बताया है, जबकि ट्रेप दल के अन्य सदस्यों के द्वारा प्रार्थी और जेरोल लकडा दोनों साथ में पिपरोद मोड से तहसील कार्यालय राजिम जाना बताया है, परंतु उक्त बातें महत्वपूर्ण नहीं हैं, क्योंकि वह पिपरोद मोड से तहसील कार्यालय पहुंचने के संबंध में है, इसलिए उक्त साक्ष्य से यह प्रमाणित पाया जाता है कि प्रार्थी एवं ट्रैप दल के अन्य सभी सदस्य पिपरौद मोड़ से तहसील कार्यालय राजिम पहुंचे।
20. उक्त साक्षियों का यह भी कथन है कि प्रार्थी एवं छाया साक्षी जेरोल लकडा को आरोपी के कार्यालय के अंदर जाने का निर्देश दिया गया, बाकी सदस्य वहीं आसपास खडे हो गये, छाया साक्षी जेरोल लकडा आरोपी के कार्यालय के पास खडा था, आरोपी के कार्यालय के अंदर प्रार्थी गया, प्रार्थी शीतकुमार का यह भी कथन है कि वह आरोपी के कार्यालय के अंदर गया और आरोपी से पूछा कि उसके कागजात तैयार हो गये क्या, वह पैसा लेकर आया है तब आरोपी ने उसे कागजात दिया और कहा कि नोट इसमें लपेटकर रजिस्टर के नीचे रख दे, तो उसने अपनी जेब से रिश्वती रकम निकाल कर कागज में लपेटकर रजिस्टर के नीचे रख दिया, तब आरोपी ने उसके कागजात उसे निकालकर दिया, तब वह आरोपी के कार्यालय से बाहर निकलकर रिश्वत देने का इशारा किया, प्रार्थी के उक्त कथन का समर्थन करते हुए निरीक्षक जेरोल लकडा ने यह भी कथन किया है कि जब वह पटवारी कार्यालय के बाहर खडा होकर देखने लगा तो प्रार्थी ने आरोपी के साथ बातचीत किया और अपनी जेब से रिश्वत निकालकर कागज में लपेटकर टेबल के उपर रखे रजिस्टर में रख दिया और प्रार्थी कागज लेकर बाहर आकर रिश्वत दिये जाने का इशारा किया ।
21. प्रार्थी ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि जब वह रिश्वत देने के लिए आरोपी के कार्यालय में गया तो आरोपी कुछ देर के लिए कार्यालय से बाहर गया था, परंतु इस कथन से इनकार किया है कि जब आरोपी अपने कार्यालय से बाहर आया तो उसने रिश्वत रकम रजिस्टर में रख दिया, परंतु रिश्वत रकम एक कागज में लपेटरकर रखी हुई रजिस्टर से बरामद होना अखण्डित रहा है, प्रार्थी से कागज में लपेट कर रिश्वत रकम रखने के बारे में कोई प्रतिपरीक्षण नही किया गया है, आरोपी कितनी देर के लिए अपने कार्यालय से बाहर गया यह प्रार्थी को मालूम नही था, यदि प्रार्थी को चुपके से रिश्वत रकम रखना था, तो वह कागज में लपेटकर नही रखता, बल्कि सीधा रजिस्टर में दबा देता, इसलिए आरोपी की ओर से लिया गया यह बचाव विश्वास योग्य नही है कि आरोपी के अपने कार्यालय से बाहर आने पर प्रार्थी ने रिश्वत रकम रजिस्टर में रखा था, बल्कि यह दर्शित होता है कि आरोपी द्वारा दिये गये कागज एवं निर्देश पर प्रार्थी ने रिश्वत रकम को कागज में लपेटकर रजिस्टर में रखा था।
22. जेरोल लकड़ा ने इस कथन से इनकार किया है कि प्रार्थी ने एक से अधिक बार आरोपी के कक्ष से रिश्वत देने के समय बाहर आया परंतु इस संबंध में प्रार्थी से कोई प्रतिपरीक्षण नही किया गया है, निरीक्षक सेन ने आरोपी के कार्यालय में खिड़की होना और वहां से लकड़ा द्वारा आरोपी के कार्यालय के अंदर देखना बताया है, पंरतु निरीक्षक लकड़ा से आरोपी के कार्यालय में खिड़की होने के संबंध में कोई प्रतिपरीक्षण नही किया गया है, प्रार्थी एवं अन्य साक्षियों से भी इस संबंध मंे कोई प्रतिपरीक्षण नही किया गया है, इसलिए निरीक्षक सेन के आरोपी के कार्यालय में खिड़की से निरीक्षक लकड़ा द्वारा अंदर देखने संबंधित किया गया कथन सही नही है, पटवारी झनक लहरी ने नक्शा प्र0पी0-11 में निरीक्षक लकड़ा के करण पेड़ के पास होने और वहां से आरोपी के कार्यालय के अंदर की स्थिति नही देख सकना और नही सुन सकना बताया है, जबकि निरीक्षक लकड़ा ने पटवारी द्वारा उससे पूछकर नक्शा बनाने से इनकार किया है, घटना के समय निरीक्षक लकड़ा घटना स्थल पर थे और पटवारी बाद में आया, इसलिए घटना के समय पटवारी द्वारा रिश्वत देते समय निरीक्षक लकड़ा के संबंध में जो स्थिति बतायी गयी है, वह सही दर्शित नही होती, इसलिए उसका कोई लाभ आरोपी को प्राप्त नही होता।
23. प्रकरण की परिस्थिति से यह दर्शित होता है कि प्रार्थी आरोपी के कार्यालय में दरवाजे से गया था, निरीक्षक लकड़ा के कथन से यह प्रमाणित होता है कि वह आरोपी के कार्यालय के बाहर खड़ा था, वहां से प्रार्थी को आरोपी की उपस्थिति में रजिस्टर में रिश्वत रकम कागज में लपेटकर रखना देखना बताया है, आरोपी उस समय अपने कार्यालय में था, यदि प्रार्थी द्वारा रिश्वत रकम आरोपी के टेबल में उसके सामने रजिस्टर में रखने में उसे कोई आपत्ति होती तो इस पर वह निश्चित तौर पर आपत्ति करता, जो उसने नही किया, प्रकरण में प्रार्थी एवं निरीक्षक लकड़ा के साक्ष्य से यह प्रमाणित पाया जाता है कि प्रार्थी ने आरोपी के कार्यालय में जाकर अपने दस्तावेज तैयार होने के संबंध में पूछा, आरोपी द्वारा दस्तावेजो को प्रार्थी को देने पर आरोपी द्वारा प्रार्थी को दिये गये कागज में लपेटकर प्रार्थी ने रिश्वत रकम रजिस्टर में रख दिया। 
24. शीत कुमार, अजित कुमार शुक्ला, नत्थे सिंह, जेरोल लकडा, रामप्रवेश एवं एस0के0सेन का यह भी कथन है कि इशारा प्राप्त होने पर वे आरोपी के कार्यालय के अंदर प्रवेश किये और आरोपी के हाथ पकड लिये तथा आरोपी से परिचय पूछने पर उसने अपना नाम पटवारी कृपाराम दीवान बताया और उन लोगों ने अपना परिचय आरोपी को दिया, आरोपी से रिश्वती रकम के संबंध में पूछने पर आरोपी रिश्वत नहीं लेना बोला, तब प्रार्थी से रिश्वती रकम के संबंध में पूछने पर उसने बताया था कि आरोपी ने रिश्वती रकम अपने हाथ में न लेते हुए कागज में लपेटकर रजिस्टर में रखवा दिया, तब आरक्षक रामप्रवेश के द्वारा घोल बनाया गया, जिसमें प्रार्थी एवं आरोपी के हाथों को छोडकर शेष सदस्यों के हाथ डुबाये गये तो घोल का रंग अपरिवर्तित रहा जिसे शीशी में रखा गया, पुनः घोल तैयार कर आरोपी के हाथ की उंगलियों को डुबाया गया तो भी घोल का रंग अपरिवर्तित रहा, पंच साक्षियों से आरोपी की तलाशी लिवायी गयी, परंतु कोई सामान नहीं मिला, जिसके संबंध में पंचनामा प्र0पी027 बनाया गया।
25. उक्त साक्षियों का यह भी कथन है कि पंच साक्षी के द्वारा आरोपी के टेबल की तलाशी लेने पर बी-1 रजिस्टर के नीचे रखे कागज में लिपटे हुए रिश्वती नोट मिले, जो पांच सौ वाले छब्बीस नोट थे, उनके नंबरों का प्रारंभिक पंचनामा के नंबरों से मिलान किया गया तो वहीं नंबर होना पाया गया, जिसे बरामदगी पंचनामा प्र0पी017 के माध्यम से जब्त किया गया, उसके पश्चात घोल तैयार कर, उसमें रिश्वती रकम को डुबाया गया तो घोल का रंग गुलाबी हो गया जिसे शीशी में रखा गया, उसके पश्चात प्रार्थी के हाथ की उंगलियों को घोल में डुबाया गया तो घोल का रंग गुलाबी हो गया जिसे शीशी में रखा गया, रिश्वती रकम को सुखाकर जब्त कर जब्ती पत्र प्र0पी018 तैयार किया गया था, जिस कागज में रिश्वती रकम मिली थी, उसे भी घोल में डुबाया गया तो घोल का रंग गुलाबी हो गया, उक्त घोल को भी शीशी में रखा गया तथा कागज को सुखाकर जब्ती पत्र प्र0पी019 के माध्यम से जब्त किया गया था, शीशियां जब्त कर जब्ती पत्र प्र0पी020 बनाया गया।
26. उक्त साक्षियों का यह भी कथन है कि प्रार्थी से टेप रिकार्डर प्राप्त कर लिप्यांतरण प्र0पी09 तैयार किया गया तथा प्र0पी010 के माध्यम से जब्त किया गया था, आरोपी के द्वारा रिश्वत रकम प्राप्त करने के पश्चात प्रार्थी को दिये गये राजस्व दस्तावेज आर्टिकल ए से टी को जब्त कर जब्ती पत्र प्र0पी08 बनाया गया था, प्रार्थी ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि आरोपी को रिश्वत देने के बाद वह उसके कार्यालय से निकलकर सौ फिट दूर खडे सेन साहब के पास आकर उन्हें बातचीत होने और कागज मिलने की जानकारी देने और उसके बाद सभी आरोपी के कक्ष में दौडकर जाना बताया है, प्रकरण में टेप दल के सदस्य आरोपी के कार्यालय के आसपास ही खडे थे, स्वाभाविक तौर पर आरोपी के कक्ष से प्रार्थी द्वारा प्राथी के बाहर आने के बाद वे सतर्क हुए और प्रार्थी की सूचना पर वे सब आरोपी के कार्यालय के अंदर तत्काल प्रवेश किये, इसलिए कुछ साक्षियों द्वारा रिश्वत देने के बाद प्रार्थी द्वारा इशारा करने के संबंध में किया गया कथन महत्वपूर्ण विरोधाभास दर्शित नहीं होता क्योंकि ट्रेप दल के सभी सदस्य वहीं आसपास खडे थे, इसलिए प्रार्थी द्वारा आरोपी के कमरे से बाहर आने के बाद ट्रैप दल के सदस्य द्वारा आरोपी के कार्यालय के अंदर जाना आरोपी के कक्ष से कागज में लपेटे रजिस्टर में रखे तेरह हजार रूपये मिलने, प्रार्थी का हाथ धुलाने पर गुलाबी होने, आरोपी एवं अन्य का हाथ धुलाने पर रंग अपरिवर्तित रहने के संबंध में उक्त साक्षियों के द्वारा किया गया कथन आरोपी द्वारा की गयी स्वीकारोक्ति एवं साक्षियों के अखंडित कथनों के आधार पर प्रमाणित पाया जाता है ।
27. निरीक्षक एस0के0सेन का यह भी कथन है कि उसने घटनास्थल का नक्शा बनाये जाने हेतु तहसीलदार को तहरीर प्र0पी028 भेजा था, पटवारी घटनास्थल पर आकर नक्शा प्र0पी011 बनाया था, पटवारी झनक राम लहरे अ0सा03 का कथन है कि तहसीलदार राजिम के निर्देश पर वह पटवारी कार्यालय जाकर घटनास्थल का नक्शा प्र0पी011 गवाहों के बताये अनुसार बनाया था, नक्शा बनाये जाने के संबंध में पटवारी का कथन अखंडित रहा है, जो यह प्रमाणित करता है कि पटवारी द्वारा घटनास्‍थल का नक्शा बनाया गया था, एस0के0सेन का यह भी कथन है कि उसने आरोपी को गिरफ्तार कर गिरफ्तारी पत्रक प्र0पी022 बनाया था, जिसकी सूचना प्र0पी029 तहसीलदार को दिया था, उसने शीत कुमार चंद्राकर, बी.के.सोनवानी, ए0के0शुक्ला, हेमन्त कुमार, नत्थे सिंह, जेरोल लकडा, रामप्रवेश के कथन उनके बताये अनुसार लिया था, जब्तशुदा शीशियों को पुलिस अधीक्षक के पत्र प्र0पी030 के माध्यम से एफ.एस.एल. परीक्षण हेतु भिजवाया था, जिसकी पावती प्र0पी031 है, कवरिंग पत्र प्र0पी032 के माध्यम से एफ.एस.एल. रिपोर्ट प्र0पी033 प्राप्त हुई थी, आरोपी के हाथ को धुलाये गये घोल के संबंध में क्वेरी आवेदन लिखा था, मेमो प्र0पी034 एवं प्रतिवेदन प्र0पी035 है।
28. निरीक्षक जोगेन्द्र सिंह गंभीर का कथन है कि मार्च 2003 से अप्रेल 2007 तक वह निरीक्षक थाना प्रभारी के पद पर पुलिस थाना ई0ओ0डब्लू/ए0सी0बी0 में पदस्थ था, पुलिस अधीक्षक ए0सी0बी0 रायपुर के पत्र क्रमांक 1216/2008 दिनांक 01.04.2008 के साथ आरोपी कृपाराम दीवान के विरूद्ध नंबरी अपराध दर्ज करने हेतु देहाती नालिशी प्राप्त हुई थी, जिसके आधार पर उसने अपराध क्रमांक 07/2008 का प्रथम सूचना पत्र प्र0पी013 दर्ज किया था। निरीक्षक एस0के0सेन का यह भी कथन है कि उसने विवेचना के दौरान आरोपी के विरूद्ध अभियोजन स्वीकृति प्राप्त करने बाबत पुलिस अधीक्षक के माध्यम से सचिव विधि एवं विधायी कार्य विभाग को पत्र भेजा था, जहां से अभियोजन स्वीकृति प्राप्त हुई थी।
29. अरूण कुमार मिश्रा अ0सा02 का कथन है कि वह विधि एवं विधायी कार्य विभाग मंत्रालय रायपुर में सहायक ग्रेड-2 के पद पर पदस्थ है, पुलिस थाना एसीबी के अपराध क्रमांक 07/2008 में अभियोजन स्वीकृति बाबत पत्र प्र0पी013 भेजा गया था, जिसमें तत्कालीन सचिव द्वारा अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी014, कवरिंग पत्र प्र0पी015 के माध्यम से एसीबी को भेजा गया था, इस साक्षी ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी014 किस व्यक्ति ने टाइप किया व किसके निर्देश पर बनाया गया वह नहीं बता सकता तथा उसके सामने श्री राठी ने हस्ताक्षर नहीं किये, वह नहीं बता सकता कि किस आधार पर अभियोजन स्वीकृति दी गयी है, अभियोजन स्वीकृति आदेश प्र0पी014 के अवलोकन से दर्शित होता है कि उसमें विस्तृत रूप से जिन आधारों पर अभियोजन स्वीकृति दी गयी इसका विवरण दर्शाया गया है, उक्त आदेश शासकीय कार्य के सामान्य अनुक्रम में जारी किया गया है, जिस पर अविश्वास करने का कारण दर्शित नहीं होता, इसलिए यह प्रमाणित पाया जाता है कि अभियोजन स्वीकृति विधि अनुसार प्राप्त की गयी थी।
30. आरोपी की ओर से प्रस्तुत लिखित तर्क में प्रार्थी द्वारा नक्शा खसरा, ऋण पुस्तिका की नकल हेतु आवेदन प्रस्तुत करने के संबंध में मौखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य में विरोधाभास होने के कारण प्रार्थी के आचरण में संदेह होना बताया गया है, प्रकरण में आरोपी की ओर से प्रडी-2 से प्रडी-6 के दस्तावेज प्रस्तुत किये गये हैं, जिनमें प्रार्थी ने अपने हस्ताक्षर होना स्वीकार किया है, प्रार्थी ने उक्त आवेदन पत्र राजस्व अभिलेख दिलाये जाने हेतु प्रस्तुत किया है, प्रार्थी ने अपने परीक्षण में आवेदन दिये जाने के संबंध में जानकारी नहीं होना बताया है, परंतु प्रतिपरीक्षण में आवेदन देना स्वीकार किया है, प्रार्थी द्वारा दिये गये आवेदन के आधार पर ही उसे राजस्व अभिलेख प्राप्त हुए हैं, प्रार्थी द्वारा उसे आवेदन देना याद नहीं होना बताया है और आवेदन प्र0डी02 से 6 दिखाये जाने पर देना स्वीकार किया है, इसलिए उसे आवेदन के संबंध में याद नहीं होने मात्र के आधार पर उसके कथन पर अविश्वास नहीं किया जा सकता, इस संबंध में उसके मोैखिक एवं दस्तावेजी साक्ष्य में कोई महत्वपूर्ण विरोधाभास होना दर्शित नहीं होता, इसलिए उक्त आधार का भी कोई लाभ आरोपी को प्राप्त नहीं होता।
31. आरोपी की ओर से लिखित तर्क में यह आधार भी लिया गया है कि निरीक्षक बलदेव सिंह आरोपी से नाराज था और उसके कहने पर प्रार्थी ने आरोपी के खिलाफ झूठी शिकायत की है, निरीक्षक सेन ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि निरीक्षक बलदेव सिंह उसके बेच का है, परंतु निरीक्षक बलदेव सिंह के द्वारा वर्तमान प्रकरण में प्रार्थी के द्वारा शिकायत प्रस्तुत करने से लेकर सारी कार्यवाही किये जाने में बलदेव सिंह की कोई सहभागिता प्रमाणित नहीं हुई है, आरोपी के द्वारा निरीक्षक बलदेव सिंह उससे नाराज होना बताया गया है, परंतु क्यों नाराज था और किसलिए वह आरोपी के विरूद्ध झूठी रिपोर्ट करवाया, इस संबंध में आरोपी की ओर से न तो किसी अभियोजन साक्षी का प्रतिपरीक्षण किया गया है, न ही आरोपी ने अपना साक्ष्य करवाया है, जिससे ऐसा दर्शित होता है कि प्रार्थी की निरीक्षक बलदेव सिंह से पहचान होने मात्र के आधार पर बाद में सोच समझकर उक्त आधार तैयार किया गया है, इसलिए उक्त आधार विश्वसनीय नहीं है, इसलिए उसका कोई लाभ आरोपी को प्राप्त नहीं होता ।
32. आरोपी की ओर से बचाव में यह आधार भी लिया गया है कि अभियोजन साक्षियों के अनुसार रिश्वत की कार्यवाही के बाद जब आरोपी को पकडा गया तो आरोपी ने रिश्वत नहीं लेना बताया था तथा लिप्यांतरण में पैसा लेने और आरोपी द्वारा तेरह हजार रूपये मांगने का उल्लेख नहीं है जो आरोपी द्वारा रिश्वत नहीं मांगने को दर्शित करता है, साक्षी अजीत शुक्ला, निरीक्षक जेरोल लकडा, आरक्षक रामप्रवेश मिश्रा एवं निरीक्षक सेन ने अपने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि आरोपी से पूछने पर उसने रिश्वत नहीं लेना कहा था, तथा प्रार्थी के द्वारा बताये जाने पर रिश्वत की रकम जिस स्थान पर रखी थी, उसकी जानकारी हुई थी, निरीक्षक सेन ने अपने प्रतिपरीक्षण में बताया है कि लिप्यांतरण प्र0पी04 के स से स भाग पर प्रार्थी द्वारा तेरह हजार रूपये के संबंध में बताया है परंतु आरोपी तेरह हजार रूपये मांग रहा हो यह तथ्य नहीं होना स्वीकार किया है, प्रार्थी शीत कुमार, पंच साक्षी अजीत शुक्ला, निरीक्षक जेरोल लकडा, आरक्षक रामप्रवेश मिश्रा, निरीक्षक एस0के0सेन ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि लिप्यांतरण प्र0पी04 एवं पी09 में इस बात का उल्लेख नहीं है कि आरोपी द्वारा रिश्वत के रूप में प्रार्थी से तेरह हजार रूपये की मांग की गयी हो ।
33. लिप्यांतरण प्र0पी04 एवं पी09 के अवलोकन से दर्शित होता है कि उसमें प्रार्थी द्वारा की जा रही बातचीत में आरोपी द्वारा रिश्वत के संबंध में की गयी बातचीत की जो स्थिति है वह आवाज अस्पष्ट है और सुनायी नहीं दे रही है जिससे यह दर्शित होता है कि आरोपी द्वारा प्रारंभ से ही इस बात के लिए सतर्क होते हुए कि किसी से भी ऐसी कोई बातचीत न करे जिससे उसके द्वारा रिश्वत मांगने के संबंध में कोई बात रिकार्ड हो, प्रकरण में यह भी प्रमाणित हुआ है कि आरोपी के कार्यालय में जब प्रार्थी रिश्वत देने गया तो आरोपी रिश्वत की रकम अपने हाथ में न लेकर प्रार्थी को कागज दिया और प्रार्थी ने आरोपी के निर्देश पर उक्त कागज में रूपये लपेटकर आरोपी के टेबल के रजिस्टर में रखा, इस संबंध में भी रिश्वत देते समय प्रार्थी द्वारा आरोपी से जो बातचीत की गयी, उसमें आरोपी के द्वारा जो जवाब दिया जा रहा है, वह भी अस्पष्ट है ।
34. प्रकरण में उक्त परिस्थिति यही दर्शित करती है कि आरोपी द्वारा इस बात की सतर्कता बरतते हुए कि उसके किसी कृत्य से वह रिश्वत के अपराध में न फंसे, वह प्रारंभ से ही सतर्क रहते हुए, बातचीत तथा रिश्वत की रकम प्राप्त करने में सतर्कता बरतता रहा, इसलिए लिप्यांतरण में आरोपी द्वारा पैसा नहीं मांगने, धोवन गुलाबी नहीं होना यही दर्शित करता है कि आरोपी इस संबंध में प्रारंभ से ही सतर्क था और उसके द्वारा जान बूझकर सतर्कतापूर्वक रिश्वती रकम के संबंध में बातचीत इस ढंग से की गयी कि वह रिकार्ड न हो और रिश्वती रकम स्वयं हाथ में प्राप्त नहीं किया, टेपरिकाडर में बातचीत टेप की जाती है तो निश्चित तौर पर वह टेपरिकार्ड प्रार्थी के पास रहता है, उसकी आवाज उसमें टेप होना स्वाभाविक है परंतु आरोपी उससे दूर रहता है और आरोपी अपनी बात धीरे बोले या वह इस लहजे एवं इशारे में बोले कि टेप में रिकार्ड न हो तो वह आवाज टेप में रिकार्ड नहीं होगी, इस तरह प्रकरण में आये उक्त साक्ष्य से यही प्रमाणित पाया जाता है कि आरोपी प्रारंभ से सतर्कतापूर्वक सारी कार्यवाही किया, इसलिए इस संबंध में टेप में रिश्वत के बाबत कोई बातें रिकार्ड नहीं हुई और उस स्थान की बातें रिकार्ड नहीं हुई।
35 प्रकरण में यह अविवादित है कि घटना के समय आरोपी ग्राम कुम्ही का पटवारी थी, प्रकरण में यह प्रमाणित हुआ है कि प्रार्थी द्वारा अपने एवं परिवार के सदस्यों द्वारा अपनी भूमि को विक्रय करने का सौदा किया गया था और उक्त भूमि का विक्रय पत्र निष्पादित करवाना था जिसके लिए उन्हें राजस्व अभिलेख की आवश्यकता थी, जिसे आरोपी से प्राप्त करने के लिए प्रार्थी ने आरोपी से संपर्क किया परंतु आरोपी द्वारा दस्तावेज देने के लिए तेरह हजार रूपये रिश्वत की मांग की गयी जो प्रार्थी के कथन में अखंडित रूप से प्रमाणित हुआ है, प्रार्थी के द्वारा आरोपी के निर्देश पर तेरह हजार रूपये कागज में लपेटकर आरोपी के कार्यालय के टेबल में रखे रजिस्टर में रखा गया और आरोपी द्वारा प्रार्थी को राजस्व अभिलेख की प्रति प्रदान की गयी, इस तरह लिप्यांतरण में आरोपी के द्वारा तेरह हजार रूपये की मांग रिश्वत के रूप में उल्लेख न होने मात्र के आधार पर आरोपी के उक्त कृत्य पर अविश्वास नहीं किया जा सकता ।
36. आरोपी की ओर से माननीय सर्वोच्च न्यायालय की अपराधिक अपील क्रमांक 747/08 वी0सेजप्पा विरूद्ध स्टेट बाय पुलिस इंस्पेक्टर लोकायुक्त चित्रादुर्गा में दिनांक 12 अप्रेल 2016 को पारित निर्णय एवं छ0ग0 उच्च न्यायालय द्वारा 2016(1)-सी0जी0एल0जे0 194 ताम्रध्वज वर्मा विरूद्ध छ0ग0राज्य के न्यायदृष्टांत प्रस्तुत किये गये हैं, उक्त दोनों न्यायदृष्टांतों में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि धारा 7 एवं 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) पी.सी.एक्ट के अपराध को प्रमाणित करने के लिए तीन बातों को प्रमाणित किया जाना चाहिए - 1/आरोपी द्वारा प्रार्थी से वैध पारिश्रमिक से भिन्न अर्थात रिश्वत की मांग करना, 2/प्रार्थी द्वारा आरोपी को रिश्वत दिया जाना एवं 3/आरोपी द्वारा रिश्वत को प्राप्त किया जाना, जहां तक उपरोक्तानुसार सेजप्पा वाले प्रकरण का संबंध है, उसमें छाया साक्षी ओबइया अ0सा02 ने प्रतिपरीक्षण में स्वीकार किया है कि प्रार्थी रामकृष्णप्पा ने रिश्वत की राशि पांच हजार रूपये यह कहते हुए आरोपी को दिया कि वह डीजल खरीदने के लिए जो पांच हजार रूपये लिया था वह वापस कर रहा है, इसके अतिरिक्त दिनांक 08.12.97 से दिनांक 10.12.97 तक आरोपी अपने कार्यालय में नहीं था, इस आधार पर उक्त प्रकरण में आरोपी द्वारा मांग के संबंध में आये साक्ष्य विश्वसनीय न होने के आधार पर आरोपी को संदेह का लाभ दिया गया था।
37. इसी तरह उपरोक्तानुसार ताम्रध्वज वाले प्रकरण में न्यायालय ने यह पाया कि घूस की मांग के संबंध में, रिश्वत की राशि प्राप्त करने के संबंध में, घटनास्थल के संबंध में अभियोजन साक्षियों के कथनों में महत्वपूर्ण विरोधाभास है, इसलिए उनके कथनों पर संदेह व्यक्त करते हुए आरोपी को दोषमुक्त किया गया परंतु वर्तमान प्रकरण में प्रार्थी को अपनी जमीन के विक्रय पत्र के निष्पादन हेतु राजस्व अभिलेख की आवश्यकता थी इसलिए वह आरोपी से इस हेतु मिला, आरोपी के द्वारा उसे कई बार घुमाया गया और तेरह हजार रूपये रिश्वत की मांग की गयी, तब प्रार्थी ने एसीबी कार्यालय में शिकायत की, प्रार्थी को टेपरिकार्डर दिया गया जिसमें आरोपी के साथ हुई बातचीत रिकार्ड की गयी, धोवन की कार्यवाही की गयी, नोटों में पाउडर लगाया गया, प्रार्थी ने आरोपी को रिश्वती रकम दिया, जिसे आरोपी ने प्राप्त किया, तब आरोपी के द्वारा प्रार्थी को राजस्व अभिलेख आर्टिकल ए से टी तक प्रदान किया गया, आरोपी की ओर से उक्तानुसार प्रस्तुत सेजप्पा वाले प्रकरण में यह भी सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि यदि अभियोजन आरोपी द्वारा मांग की गयी रिश्वत की राशि प्रार्थी द्वारा आरोपी को देना और आरोपी द्वारा उसे स्वीकार करने को प्रमाणित करता है तो न्यायालय द्वारा धारा 20 पी.सी.एक्ट के तहत उपधारणा की जा सकेगी ।
38. वर्तमान प्रकरण में आये साक्ष्य से यह प्रमाणित पाया जाता है कि घटना के समय आरोपी लोकसेवक के रूप में पटवारी हल्का नंबर 9 तहसील राजिम, जिला रायपुर मंे पटवारी था, आरोपी ने प्रार्थी से वैध पारिश्रमिक से भिन्न राशि तेरह हजार रूपये राजस्व अभिलेख दिये जाने हेतु मांग किया, उक्त राशि प्रार्थी द्वारा आरोपी को दी गयी, जिसे आरोपी ने स्वीकार किया और प्रार्थी को दस्तावेज दिया, इसलिए धारा 20 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत भी आरोपी पर उसे खंडित करने का उत्तरदायित्व था, जिसे आरोपी खंडित नहीं कर सका है जो आरोपी की अपराध में संलिप्तता को दर्शित करता है ।
39. उक्त कारणवश अभियोजन यह प्रमाणित करने में सफल रहा है कि आरोपी कृपाराम दीवान ने दिनांक 31.0.3.2008 को तथा उसके पूर्व से पटवारी हल्का नंबर 9 तहसील राजिम जिला रायपुर में हल्का पटवारी के पद पर लोकसेवक के रूप में पदस्थ रहते हुए प्रार्थी शीतकुमार चंद्राकर एवं उसके परिवार की ग्राम कुम्ही एवं ग्राम बकली स्थित भूमि के नक्शा, खसरा एवं ऋण पुस्तिका बनाकर देने के लिए प्रार्थी से 13,000/-रूपये रिश्वत की मांग की तथा रिश्वत प्राप्त की, जो वैध पारिश्रमिक से भिन्न राशि थी, इस प्रकार आरोपी ने अपने पद का दुरूपयोग कर, आपराधिक कदाचरण/अवचार किया, इसलिए आरोपी कृपाराम दीवान को धारा-7, 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) के भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अंतर्गत दोषी पाकर दोषसिद्ध ठहराया जाता है।
40. प्रकरण की परिस्थितियों को देखते हुए आरोपी को परिवीक्षा का लाभ दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होता, दंड के प्रश्न पर सुनने के लिए निर्णय थोडे समय के लिए स्थगित किया गया ।
 सही/-
 (जितेन्द्र कुमार जैन)
 विशेष न्यायाधीश(भ्रष्टा0निवा0अधि0)
 एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीष,
 रायपुर, छ0ग0
पुनश्च:- 
41. दण्ड के प्रश्न पर आरोपी तथा उसके अधिवक्ता श्री फरहान के तर्क सुने गये, आरोपी तथा उसके अधिवक्ता ने निवेदन किया कि प्रकरण में आरोपी लम्बे समय से विचारण भोग रहा है, उस पर उसका परिवार आश्रित है, इसलिए उसे कम से कम से दंडित किया जाये।
42. दण्ड के प्रश्न पर विचार किया गया, आरोपी के द्वारा ग्रामीण व्यक्ति से उसकी भूमि के राजस्व अभिलेख की नकल प्रदान किये जाने हेतु रिश्वत की मांग कर प्राप्त किया जाना बताया गया है, प्रकरण की उक्त परिस्थिति को देखते हुए आरोपी कृपाराम दीवान को धारा-7, 13(1)(डी) सहपठित धारा-13(2) भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अपराध में एक-एक वर्ष के सश्रम कारावास एवं बीस-बीस हजार रूपये अर्थदण्ड से दंडित किया जाता है, अर्थदण्ड अदा न करने पर उसे छह-छह महीने का अतिरिक्त सश्रम कारावास भुगताया जाये ।
43. अर्थदण्ड की राशि में से अपील न होने की दशा में अपील अवधि बाद प्रार्थी शीत कुमार को रूपये बीस हजार धारा 357(3) द0प्र0सं0 के अंतर्गत दिया जावे, अपील होने की दशा में माननीय अपील न्यायालय के आदेश का पालन किया जावे ।
44. प्रकरण में जब्तशुदा 13,000/-रूपये अपील न होने की दशा में अपील अवधि बाद प्रार्थी शीतकुमार को दिया जावे एवं प्रकरण में जब्तशुदा शीशियां, घोल, पाउडर, कागज, अपील न होने की दशा में अपील अवधि बाद मूल्यहीन होने से नष्ट किया जावे, अपील होने की दशा में माननीय अपीलीय न्यायालय के आदेश का पालन किया जायेगा।
45. प्रकरण में आरोपी जमानत-मुचलके पर है, उसके जमानत-मुचलके धारा 437ए द0प्र0सं0 के अंतर्गत छह माह के लिए विस्तारित किये जाते हैं, जो उसके पश्चात स्वमेव समाप्त माने जाएंगे ।
निर्णय मेरे निर्देश में टंकित निर्णय खुले न्यायालय में पारित  किया गया। किया गया।
 सही/- सही/-
 (जितेन्द्र कुमार जैन
 विशेष न्यायाधीश(भ्रष्टा0निवा0अधि0) 
 एवं प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश, 
 रायपुर (छ0ग0)

Category

03 A Explosive Substances Act 149 IPC 295 (a) IPC 302 IPC 304 IPC 307 IPC 34 IPC 354 (3) IPC 399 IPC. 201 IPC 402 IPC 428 IPC 437 IPC 498 (a) IPC 66 IT Act Aanand Math Abhishek Vaishnav Ajay Sahu Ajeet Kumar Rajbhanu Anticipatory bail Arun Thakur Awdhesh Singh Bail CGPSC Chaman Lal Sinha Civil Appeal D.K.Vaidya Dallirajhara Durg H.K.Tiwari HIGH COURT OF CHHATTISGARH Kauhi Lalit Joshi Mandir Trust Motor accident claim News Patan Rajkumar Rastogi Ravi Sharma Ravindra Singh Ravishankar Singh Sarvarakar SC Shantanu Kumar Deshlahare Shayara Bano Smita Ratnavat Temporary injunction Varsha Dongre VHP अजीत कुमार राजभानू अनिल पिल्लई आदेश-41 नियम-01 आनंद प्रकाश दीक्षित आयुध अधिनियम ऋषि कुमार बर्मन एस.के.फरहान एस.के.शर्मा कु.संघपुष्पा भतपहरी छ.ग.टोनही प्रताड़ना निवारण अधिनियम छत्‍तीसगढ़ राज्‍य विधिक सेवा प्राधिकरण जितेन्द्र कुमार जैन डी.एस.राजपूत दंतेवाड़ा दिलीप सुखदेव दुर्ग न्‍यायालय देवा देवांगन नीलम चंद सांखला पंकज कुमार जैन पी. रविन्दर बाबू प्रफुल्ल सोनवानी प्रशान्त बाजपेयी बृजेन्द्र कुमार शास्त्री भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम मुकेश गुप्ता मोटर दुर्घटना दावा राजेश श्रीवास्तव रायपुर रेवा खरे श्री एम.के. खान संतोष वर्मा संतोष शर्मा सत्‍येन्‍द्र कुमार साहू सरल कानूनी शिक्षा सुदर्शन महलवार स्थायी निषेधाज्ञा स्मिता रत्नावत हरे कृष्ण तिवारी