Saturday 14 March 2015

गैंगस्टर महादेव महार हत्याकांड फैसला (क्र. 31 से 40)

 

31- अ0सा01 तारकेश्वर सिंह ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 58 में कथन किया है कि उसके पुत्र धनजी के मर्डर के मामले में अपर सत्र न्यायाधीश श्री शर्मा के न्यायालय में उसका कथन हुआ है। अ0सा01 तारकेश्वर सिंह की उक्त स्वीकारोक्ति को दृष्टिगत रखते हुये विशेष लोक अभियोजक द्वारा अ0सा01 तारकेश्वर सिंह के पुत्र की हत्या के मामले में पंजीबद्ध सत्र प्रकरण क्रमांक 122/05 में हुये इस साक्षी के बयान की कण्डिका 15, 16 दिखाकर कुल छः प्रश्न किये गये, तब इस साक्षी ने सभी छः प्रश्नों का उत्तर ‘‘मुझे आज याद नही है, कहकर दिया है‘‘ लेकिन जब इस साक्षी का प्रति परीक्षण आरोपीगण के विद्वान अधिवक्तागण द्वारा दिनांक 24/11/2008 को किया गया, तब इस साक्षी के साक्ष्य की कण्डिका 66 में उससे प्रश्न पुछा गया तब इस साक्षी का यह कथन है कि यह सही है कि उसने सत्र प्रकरण क्रमांक 122/05 की कण्डिका 16 में यह कथन दिया था कि महादेव महार हत्याकांड में वह, उसका लड़का संतोष उर्फ धनजी, गिरवर, चंदन साव, लिंगाराजू गवाह थे। लेकिन इस साक्षी का यह भी कथन है कि उसे उक्त तथ्य की व्यक्तिगत जानकारी नही थी, बल्कि उसने क्राइम ब्राच के इंचार्ज के बताये अनुसार उक्त बात बतायी थी।
32- उक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि अ0सा01 तारकेश्वर सिंह ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 58 में सत्र प्रकरण क्रमांक 122/05 में हुये उसके स्वयं के बयान प्रदर्श पी 34 से संबंधित सभी प्रश्नों का उत्तर ‘‘याद नही होन‘‘ का कथन करके दिया है। लेकिन इसी साक्षी ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 66 में प्रथम तो यह स्वीकार कर लिया है कि उसने प्रदर्श पी 34 के बयान की कण्डिका 16 का बयान दिया था। लेकिन स्वयं यह भी कहता है कि उसे व्यक्तिगत जानकारी नही है। यह व्यक्तिगत जानकारी नही होने की बात प्रदर्श पी 34 के बयान में नही है। अतः अ0सा01 तारकेश्वर सिंह के प्रति परीक्षण दिनांक 01/8/2008 व 24/11/2008 पर विश्वास नही किया जा सकता है। इस साक्षी का आचरण ऐसा नही है कि उसके प्रति परीक्षण दिनांक 01/8/2008 व 24/11/2008 पर विश्वास किया जावे।
33- अ0सा01 तारकेश्वर सिंह के प्रति परीक्षण दिनांक 01/8/2008, 17/10/2008 व 24/11/2008 पर विश्वास नही किये जाने का आठवां कारण इस साक्षी के साक्ष्य की कण्डिका 61, 62 और 63 में किया गया कथन है। इस साक्षी ने उक्त कण्डिकाओं में यह स्वीकार किया है कि उसके पास 12 बोर की बंदुक है, उसके बाद भी उसने रिवाल्वर के लिये आवेदन दिया था और रिवाल्वर के लायसेंस के लिये कलेक्टर के समक्ष समर्थन में शपथ दिया था। इस साक्षी को उसके शपथ पत्र की कण्डिका 14 में लिये गये शपथ को दिखाकर पूछा गया, तब इस साक्षी ने अपने साक्ष्य की कण्डिका 63 में यह स्वीकार किया है कि उसने कलेक्टर के समक्ष रिवाल्वर के लायसेंस के लिये प्रस्तुत आवेदन के समर्थन में शपथपत्र प्रस्तुत किया था, जिसकी कण्डिका 14 में यह लिखा था कि ‘‘वह महादेव महार मर्डर केस का चश्मदीद गवाह है, जिसके कारण उनके विरोधी पक्ष का दबाव हमेशा उसके उपर बना रहता है, जिसके कारण उसे अपने तथा अपने परिवार की सुरक्षा के लिये रिवाल्वर लायसेंस की आवश्यकता है।‘‘ अ0सा01 तारकेश्वर सिंह द्वारा रिवाल्वर लायसेंस प्राप्त करने के लिये जो आवेदन दिया गया था, उसके मूल नस्ती को छत्तीसगढ़ शासन गृह मंत्रालय में सहायक ग्रेड 1 के पद पर पदस्थ अ0सा072 शिवकुमार गोड़ ने लाकर प्रस्तुत किया है, जिसमें जिला मजिस्टेंट की अनुशंसा प्रदर्श पी 140 है, जिसकी प्रतिलिपि प्रदर्श पी 140 सी, तारकेश्वर सिंह द्वारा दिया गया आवेदन प्रदर्श पी 141, प्रतिलिपि प्रदर्श पी 141 सी, मूल शपथपत्र प्रदर्श पी 142, प्रतिलिपि प्रदर्श पी 142 सी और मूल नस्ती जो कुल 52 पन्नों में है, प्रदर्श पी 143 प्रतिलिपि प्रदर्श पी 143 सी है। इसी प्रकार अ0सा073 ऐनकसिंह ध्रुव ने भी जिला मजिस्टेंट कार्यालय में दिये गये लायसेंस के आवेदन से संबंधित नस्ती को लाकर प्रस्तुत किया है, जो प्रदर्श पी 144 है, जिसकी प्रतिलिपि प्रदर्श पी 144 सी है। अतः उक्त समस्त दस्तावेजो का अवलोकन किया गया, जो कि क्रमशः आवेदन पत्र, फार्म ए, शपथपत्र एवं सम्पूर्ण नस्ती है, जिसमें अ0सा01 तारकेश्वर सिंह का बयान प्रदर्श पी 144 सी भी संलग्न है।
34- इस प्रदर्श पी 144 सी के बयान में भी अ0सा01 तारकेश्वर सिंह ने जिला मजिस्टेंट के न्यायालय में यह बयान दिया था कि वह तपन सरकार के विरूद्ध महादेव महार हत्याकाण्ड में मुख्य गवाह है, जिसके कारण तपन सरकार और उसके ग्रुप द्वारा उसे और उसके परिवार को हमेशा डराया और धमकाया जाता है, जिससे वह भयभीत है और उसे अपने परिवार की सुरक्षा हेतु रिवाल्वर की आवश्यकता है। इस प्रकार इस साक्षी ने कलेक्टर दुर्ग के समक्ष जो रिवाल्वर के लायसेंस के आवेदन के समर्थन में जो शपथपत्र प्रस्तुत किया था, उसमें भी चश्मदीद गवाह होने के तथ्य को स्वीकार किया है और यह भी स्वीकार किया है कि उस पर विरोधी पक्ष का दबाव है। अतः अ0सा01 तारकेश्वर के साक्ष्य की कण्डिका 60 से लेकर 63 तक पुछे गये उक्त प्रश्न के उत्तर से भी यही प्रमाणित होता है कि अ0सा01 तारकेश्वर सिंह ने आरोपीगण के डर या दबाव के कारण अपने प्रति परीक्षण दिनांक 01/8/2008, 17/8/2008, 24/11/2008 का बयान दिया है, जो विश्वास के योग्य नही है।
35- अ0सा01 तारकेश्वर सिंह के साक्ष्य के अनुसार उसे क्राइम ब्रांच के इंचार्ज राजीव शर्मा ने डराया था कि वह दिनांक 27/4/2006 को अभियोजन के पक्ष में साक्ष्य प्रस्तुत करें। लेकिन इस प्रकरण में तात्कालीन क्राइम ब्रांच के इंचार्ज अ0सा071 राजीव शर्मा ने देवरी थाना के पास आरोपी तपन से एक क्वालिस वाहन क्रमांक पी.बी. 46 सी. /4318 एवं उसके दस्तावेज जप्ती पत्र प्रदर्श पी 110 के अनुसार जप्त कर आरोपी तपन एवं जप्तशुदा वाहन व दस्तावेज थाना सुपेला के सुपुर्द किया था। इसके अतिरिक्त अ0सा071 राजीव शर्मा ने इस प्रकरण में कोई अन्य कार्यवाही नही की है। अतः ऐसी स्थिति में यह समझ के परे है कि अ0सा071 राजीव शर्मा अ0सा01 तारकेश्वर सिंह को क्यो उक्त अनुसार दबाव देंगे, जबकि अ0सा071 राजीव शर्मा की न तो मृतक महादेव से कोई मित्रता या रिश्तेदारी है, और न ही उनकी आरोपीगण से कोई शत्रुता है एवं उन्होंने प्रकरण में कोई विवेचना भी नही की है।
36- अ0सा01 तारकेश्वर सिंह के मुख्य परीक्षण दिनांक 27/4/2009 पर विश्वास करने का नवम कारण यह है कि अ0सा071 राजीव शर्मा से उनके प्रतिपरीक्षण में आरोपी सत्येन माधवन एवं तपन सरकार के विद्वान अधिवक्ता द्वारा इस आशय का एक भी सुझाव नही दिया गया है कि उन्होंने अ0सा01 तारकेश्वर सिंह को दिनांक 27/4/2006 के पहले न्यायालय में अभियोजन के पक्ष में साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिये डराया या यह कहकर धमकाया था कि वह उसके पुत्र धनजी के मर्डर के केस को बिगाड़ देगा।
37- उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अ0सा01 तारकेश्वर सिंह के साक्ष्य दिनांक 27/4/2006 में किये गये कथन (परीक्षण एवं प्रतिपरीक्षण मिलाकर) एवं अ0सा07 चंदन साव के मुख्य परीक्षण दिनांक 02/8/2007 को किया गया कथन उक्त उल्लेखित सभी कारणों से विश्वास के योग्य है। आरोपीगण के विद्वान अधिवक्तागण ने इस न्यायालय के समक्ष यह भी तर्क प्रस्तुत किया है कि कोई भी न्यायालय साक्षियों के साक्ष्य मे किये गये कुछ कथनों को सत्य और कुछ कथनों को असत्य मानकर आरोपीगण के विरूद्ध निष्कर्ष नही दे सकते हैं, लेकिन आरोपीगण के विद्वान अधिवक्तागण का उक्त तर्क स्वीकार योग्य नही है, क्योंकि ‘‘भारत में यह सिद्धान्त लागू नही है कि यदि कोई साक्षी एक तथ्य में मिथ्या है, तो वह सभी तथ्य में मिथ्या होगा।‘‘ अतः उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि अ0सा01 तारकेश्वर सिंह का साक्ष्य दिनांक 27/4/2006 एवं अ0सा07 चंदन साव के मुख्य परीक्षण दिनांक 02/8/2007 का कथन पूर्णतः विश्वसनीय है। जबकि अ0सा01 तारकेश्वर सिंह का प्रतिपरीक्षण दिनांक 01/8/2008, 17/10/2008, 24/11/2008 उन्हें डराकर या धमकाकर या Win Over करके दिलवाया गया है। सुक्ति Falsus in uno, falsus in omnibus भारत में लागू नही होने के संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय के निम्न न्यायदृष्टांत अवलोकनीय है:-
1- Kulwinder Singh v. State of Punjab, (2007) 10 SCC 455, 2- Ganesh v. State of Karnataka, (2008) 17 SCC 152, 3- Jayaseelan v. State of Tamil Nadu, (2009) 12 SCC 275, 4- Mani @ Udattu Man and Ors. v. State represented by Inspector of Police, (2009) 12 SCC 288 and 5- Balraje @ Trimbak v. State of Maharashtra, (2010) 6 SCC 673).
38- अतः उक्त स्थिति में सर्वप्रथम निम्न विधिक प्रश्न उत्पन्न होता है कि:-
1- दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत किसी साक्षी का कथन लेखबद्ध करने का अधिकार किसी मजिस्टेंट को है या नही है ?
2- यदि कोई साक्षी न्यायालय में दं0प्र0सं0 की धारा 164 के कथन से मुकर जाता है तो क्या मजिस्टेंट के समक्ष हुये दं0प्र0सं0 की धारा 164 के कथन का उपयोग आरोपीगण की दोषसिद्धी के लिये किया जा सकता है ?
3- पक्षद्राही साक्षियों के साक्ष्य का क्या साक्ष्यिक मूल्य होता है?
4- यदि कोई साक्षी अपने मुख्य परीक्षण में किये गये कथनों का कतिपय अंतराल के बाद प्रतिपरीक्षण होने पर, मुख्य परीक्षण के कथनों से मुकर जाता है तो ऐसे साक्षी के मुख्य परीक्षण में किये गये कथनों का क्या साक्ष्यिक मूल्य होता है?
इस संबंध में आरोपी तपन सरकार एवं सत्येन माधवन के विद्वान अधिवक्ता द्वारा प्रस्तुत न्यायदृष्टांत 1999 क्रिमनल लॉ जर्नल 3976 का अवलोकन किया गया। लेकिन इस न्यायदृष्टांत में अजनबी व्यक्तियों ने न्यायालय से सम्पर्क किया था कि उनका साक्ष्य लिया जावे, तब माननीय उच्चतम न्यायालय ने यह अवलोकित किया था कि यदि अजनबी व्यक्तियों के लिए मजिस्टेंट का न्यायालय खोल दिया जाए तब मजिस्टेंट के समक्ष बहुत से ऐसे व्यक्ति साक्ष्य देने हेतु उपस्थित होने लगेंगे जो आरोपी के द्वारा प्रायोजित होगे। वर्तमान में पास्को एक्ट में दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत साक्षियों के कथन लेखबद्ध किये जाने का प्रावधान भी किया गया है। जबकि इस प्रकरण में अ0सा059 रामजीवन देवांगन ने घटना के प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों का साक्ष्य दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत लिपिबद्ध किया है। वस्तुतः प्रस्तुत न्याय दृष्टांत में माननीय उच्चतम न्यायालय ने प्रकरण के तथ्य और परिस्थितियों के तहत यह अभिनिर्धारित किया है कि किसी मजिस्टेंट को दं0प्र0सं0 की धारा 164 के तहत साक्षियों का कथन लेखबद्ध करने की अधिकारिता नही है। अतः प्रस्तुत न्यायदृष्टांत 1999 क्रिमनल लॉ जर्नल पेज 3976 का कोई लाभ तथ्य एवं परिस्थितियों की भिन्नता के कारण आरोपीगण को नही दिया जा सकता है।
39- अब यह न्यायालय इस निर्णय की कण्डिका 46 में उल्लेखित उक्त चारों प्रश्नों के उत्तरों को प्राप्त करने की ओर अग्रसर हो रहा है।
विधिक प्रश्न क्रमांक 1 और 2 का उत्तर
40- दं0प्र0सं0 की धारा 164 के संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय का न्यायदृष्टांत RAMPRASAD VS. STATE OF MAHARASHTRA [1999 CRI.L.J. 2889 (SC)]  में माननीय उच्चतम न्यायालय ने पैरा 15 में
यह अवलोकित किया है कि:-
"15. Be that as it may, the question is whether the Court could treat it as an item of evidence for any purpose. Section 157 of the Evidence Act permits proof of any former statement made by a witness relating to the same fact before any authority legally competent to investigate the fact but its use is limited to corroboration of the testimony of such a witness. Though a police officer is legally competent to investigate, any statement made to him during such an investigation cannot be used to
corroborate the testimony of a witness because of the clear interdict contained in Section 162 of the Code. But a statement made to a Magistrate is not affected by the prohibition contained in the said section. A Magistrate can record the statement of a person as provided in Section 164 of the Code and such a statement would either be elevated to the status of Section 32 if the maker of the statement subsequently dies or it would remain within the realm of what it was originally. A statement recorded by a Magistrate under Section 164 becomes usable to corroborate the witness as provided in Section 157 of the Evidence Act or to contradict him as provided in Section 155 thereof."

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